भजन संग्रह
भाग २
96 58090 380] 9॥0॥ | ९09५ ॥॥॥0॥2॥09॥॥ 20 /0॥0॥८॥800॥॥|
भक्त ग्रह दूसरा भा
संग्रहकर्ता--
भ्रीवियोगी हरिजी
५.०
पता- गीताप्रेस, गोरखपुर
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मुद्रक तथा प्रकाशक
घनरश्यामदास जालान
गीताप्रेस, गोरखपुर
गदर) दो आना
१ बार ५००० घं० १९८७ बि०
२ बार ५००० सं० १९८८ वि०
? बार ७००० सें$* १९९० बि०
४3 बार ७००० सं० १०९०१ जिं०
७ बार ५००० सं० १९९४ बि०
६ बार ५००० सं० १९९७ त्रि०
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
श्रीहरिः
वक्तव्य
भजन-संग्रहके इस दूसरे भागकों हमने दो
विभागोंमें विभक्त कर दिया है) पहले विभागमें
ब्रजके महात्माओंकी बानियाँ और दूसरेमें आत्मानुभवी
प्रेमी सन््तोकि अनुमवके रंगमें रंगे कुछ शब्द
संग्रहीत किये गये हैं ।
पहले विमागमें श्रीकृष्ण-प्रेमाणंवमें. निमझ्न
महापुरुषोंके रसभरे भजन हैं । महात्मा सूरदासजीके
पद पहले भागमें आ चुके हैं, क्योंकि ठलसी और
कबीरसे हम उन्हें प्रथत् नहों कर सके। इस
निकुज्ञम अश्छापके अन्य अनन्य भक्तों तथा हित-
हरिवंश, स्वामी हरिदास, गदाघर भट्ट, हरिराम
व्यास आदि बज-रस-मघुकरोंकी सुललित गुज्लार
हम सुनते हैं। इन सब महंत्माओंने नन्दनन्दन
कृष्णचन्द्रकी मधुर ल्लोलाओंका प्रत्यक्ष अनुभव
किया था; इसमें सन्देह नहीं। अपने अनुभवोंको
इन्होंने अनुपम पदोंसे अंकित किया है। पढ़ और
खुनकर हमारा मलिन हृदय क्ृष्ण-रसमें उन्मत्त
होकर मयूरवत् दृत्य करने लगता है। ज्ज-बानीमें
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(॥0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥09५86॥79.00॥॥
[४]
वह सामथ्य है कि स्वयं श्रजराजकुमारको हमारे
हृदय-आँगनमें मानो किलक-किलककर बालकेलि
कराने लगती है। तब फिर किस अभागेका मन
मचलकर व्रजमण्डलके इन भक्त महात्माओँकि
पदाँकी ओर आकर्षित न होगा ?
दूसरे विभागमें नानकः दादूदयाल, रेदास,
मल्कदास आदि सन््तोंके पदोंका संक्षिस संग्रह है ।
सन््तशिरोमणि कबीर पहले भागमें आ चुके हैं।
सूर और तुल्सीका संग हम उन्हें केसे छुड़ाते !
वास्तवमें ये शब्द सद्ुरुके प्रेम-ब्ाण हैं। इनसे जो
घायल हुआ) वह कृतकृत्य ह्वो गया। वेराग्य और
अनुरागकी झाँकी जेसी इन सन्त-बानियाँमें मिलती
है, वेसी अन्यत्र दुर्लभ है ।
क्या कभी ऐसा दिन आयगा; जब हम सब
इन पुनीत पदोंके प्रेम-रसमें डूब जायेंगे, लगनके
इन दाब्द-बा्णोंसे घायरक हो जायेंगे ? भगवान
शीघ्र वह दिन लावें, यही हमारी कामना है ।
मोहन-निवास$ | वियोगी हरि
पन्ना
9 58090 390] 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
श्रीहरिः
अकारादि-क्रमसे विषय-सूची
[ पहला खण्ड |
हितहरिवंश
भजन पृष्ठ
तातें भैया, मेरी सों) कृष्ण-गुन संचु.. *** १८
प्रीति न काहु कि कानि बिचारे २०
मोहन लालके रैंग राची न श्ट
यह जु एक मन बह्दुत ठौर करि *** १७
रहो कोउ काहू मनहि दिये 7० 5|
खामी हरिदास
काहूको बस नाहिं तुम्हारी कृपातें 5४% - २४१
गही मन सब रसको रस सार “ २५
जोलों जीवे तोला हरि भजु रे मन ** २४
ज्योंही ज्योंह्ी तुम राखत हो ञ- 5 ११
तिनका बयारिके बस * र२
प्रेमसमुद्र रूपरस गहिरे; केसे छागे घाट. *** २५
मन लगाइ प्रीति कीजे कर करवा सो. **' २३
हरिके नामको आलस क्यों -* रहे
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
की,
भजन पृष्ठ
हरिको ऐसोइ सब खेल ** २४
हित तो कीजे कमलनेनसों न रर२
गदाधर भट्ट
आजु ब्रजराजको कुँवर बनते बन्यो ** ३४
कब्रे हरि; कृपा करिहों सुरति मेरी 5 * ३०
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके ०3७५५ 78
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक 5८%. देह
झूलत नागरि नागर लाछ न रेईे
दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया ०४-2७
नमो नमो जय श्रीगोबिंद ** २८
श्रीगोबिंद पद-पल्लव सिरपर बिराजमान '“* २७
सखी, हों स्याम रंग रँंगी “४०7 रद
सुंदर स्थाम सुजानसिरोमनि 226 पड
हरि हरि हरि हरि रट रसना मम “* २९
है दरितें हरिनाम बड़ेरो 5११... ईं०
नन्ददास
जो गिरि रुचे तो बसी श्रीगोवर्द्धन बन ४१
सम कृष्ण कट्टिये उठि भोर ०
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(७)
भजन प्र्ष्ठ
कुम्भनदास
जो पै चोंप मिलनकी होय न डी
नैन भरि देख्यो नंदकुमार “० ४२
मगतकों कहा सीकरी काम न डर
हिलगिन कठिन है या मनकी 7७०, डे
परमानन्ददास
कौन रसिक है इन बातनकी ४« स्द
जसीदा तेरे भांगकी कही न जाय "४... ४७
जियकी साधन जिय ही रही री ६०० - हडद
ब्रजके बिरही लोग बिचारे ०) ड५
मेरो माई माघोसों मन लाग्यो -"* ४८
कष्णदास
जबतें स्याम सरन हों पायी न्न्न आर
बाछू दसा गोपाल्की सब काहू प्यारी ४९
मो मन गिरिघर छत्रिपे अटक्यों “7 ८६०
व्यासजी
ऐसे ही बसिये त्रजबीधिन “5 ५.
कहा कहा नहिं सहत सरीर न्न्ल्ण्७
कहत सुनत बहुतै दिन बीते ल्ः ६६
जैये कोनके अब द्वार ञ-* ७६
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0॥0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(८)
भजन प्र्ष्ठ
जो दुख होत बिमुख घर आये “० ६१
जो सुख होत भगत घर आये “। एड
धरम दुरथों कलिराज दिखाई 5055 5६६
नव चक्र चूड़ा र॒पति मन साँवरो "५३
परम धन राधे नाम अधार ** ६७
भजो सुत; सॉँचे स्थाम पिताहि १९७० ५४८
रसिक अनन्य हमारी जाति *** ५४
राघा-बल्लभ मेरी प्यारो बाल ५१
बृंदाबनकी सोभा देखे मेरे नेन सिरात ** ५२
साधन बैरागी जड़ बंग ** ० ६०
सुने न देखे भगत मिखारी 5 एछेरे
हरिदासनके निकट न आवत 27 5
हरि बिनु को अपनो संसार ब्ड्क धप
श्रीभट्ट
जुगुलकिसोर हमारे ठाकुर ७१
बलि-बलि श्रीराघे-नंदनदना “ ७१
बसो मेरे नैननिमें दोठ चंद गा ७२
ब्रजभूमि मोहिनी में जानी * ६९
मदनगुपाल, सरन तेरी आयों ४६३ सह
9 58090 390|6 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥
(९)
भजन पृष्ठ
राधे, तेरे प्रेमकी कापे कहि आबे न" ७१
सेब्य हमारे हैं पिय प्यारे *** ७०
स्थामा-स्थाम-पद पावें सोई ४ ७०
सूरदास मदनमोहन
चली री; मुरली सुनिये, कान्ह *" ७७
नंदजू मेरे मन आनंद भयो; हों 5 छह
प्रगट मई सो मा जिभुवनकी "न छ५्
मधुके मतबारे स्याम) खोलो प्यारे पलके.. '** ७६
मेरे गति तुमहीं अनेक तोप पाऊँ *" ७५
नागरीदास
किते दिन ब्रिन बृंदाबन खोये ५७७४-८
चरचा करी कैसे जाय *०" ७९
जो मेरे तन होते दोय "० ७९
दरपन देखत, देखत नाहीं ««« ८०
दुर्दु भातिनकी मैं फल पायी । ८३
ब्रजबासीते हरिकी सोभा +" ८४
ब्रज-सम और कोउ नहिं धाम -- ८५
भगति बिन हैं सब लोग निखट्टू 8 टूर
हमारे मुरलीवारों स्थास ** ७८
9 58090 390]6 9॥0॥ उ ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(१०)
भजन पृष्ठ
हरि जू अजुगत जुगत करेंगे हेड हर
हमारी सब ही बात खुधारी न. ८२
भगवतरसिक
इतने गुन जामें सो संत १ हु
जय जय रसिक रवनी रवन शव ९२
नमो नमो बृंदाबनचंद ब्हड हर
परसपर दोठ चकोर दोउ चंदा *-* ८८
बेषघारी हरिके उर सालें ... ८९
लखी जिन लालकी मुसक्यान 55. ठुंद
नारायण स्वामी
करु मन; नंदर्नंदनकों ध्यान “" ९६
चाहै तू योग करि भ्कुटीमध्य ध्यान घरि *** १०१
जाहि लगन लगी घनस्यामकी * ९३
टेर सुनों ब्रजराज-दुलारे । १०७
देख सखी नव छेल छबीले *"" १००
नयनों रे; चित-चोर बताबो *** १०२
नंदनैंदनके ऐसे नैन ** ९७
प्रीतम: तू मोहिं प्रानते प्यारों *** ९५
बेदरदी) तोद्दि दरद न आवैे 87
मनमोहन जाकी दृष्टि परत *०% ९७
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(११)
भजन पृष्ठ
मूरख, छॉड़ि बृथा अभिमान *"* १०६
मोहन बसि गयो मेरे मनसें बजा हक
मोपै कैसी यह मोहिनी डारी *१* १००
या साँवरेसों मैं प्रीति लगाई _ग्ज हट
रूपरसिक; मोहन, मनोज-मन-हरन ** १०३
सखि; भेरे मनकी को जाने ४जःः -हड़
स्थाम दगनकी चोट बुरी री 7४50 ६७
ललितकिशोरी
अब का सोबे सखि ! जाग जाग न २०९
अब तौ तेरिय हाथ बिकानी न १२१
अब कुलकानि तजेही बनेंगी ** १२३
कमलमुख खोलों आजु पियारे “* १२३
दुनियाके परपंचोंमे हम मजा नहीं कछु पायाजी ११५
नैन चकोर; मुखचंदहुकों बारि डारों.. *** १२०
मन) पछितेहों भजन बिनु कीने *-* १०८
मुसाफ़िर) रेन रही थोरी “" १०८
मुरकि मुरकि चितवन चित चोरे *₹«5 १३८
मैं तुब पदतर रेनु रसीली ** श२२
मोहनके अति नैन नुकीले न ११३
रे निरमोही, छबि दरसाय जा *** ११४
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(१२ )
भजन पृष्ठ
लटक लटक मनमोहन आवनि *" १०५,
लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीले-से "*”' ११४
लाभ कहा कचन तन पाये “* ११२
साधो, ऐतिइ आयु सिरानी “ १११
[ दूसरा खण्ड ]
दादुद्याल
अरे मेरा अमर उपावणहार रे नल्लश्ह२
अहो नर नीका है हरिनाम --- श३७
आवब पियारे मीत हमारे “"' १३१
इत है नीर नहावन जोग न १३०
ऐसा राम हमारे आग 5 ६२७
कबहूँ ऐसा बिरह उपावे रे “न श्३े५
कोइ जाने रे मरम माधइया केरो “हल १३४
क्यों बिसरें मेरा पीव पियारा ** शर४
जगसूँ कहा हमारा ** १३१
जागि रे सब रेण बिहाणी श३्द
तब हम एक भये रे भाई नन्न्श्२९
तूँहीं मेरे रसना तुही मेरे बना *** १३९
तू साँचा साहिब मेरा नल श्डड
तौलछगि जिनि मारे यू मोहिं नल १२५
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
( १३)
भजन छड्ठ
नूर रद्मा भरपूर; अमीरस पीजिये “** १४१
पंडित राम मिलै सो कीजे *** १३८
बटाऊ रे चलना आज कि काल -* १३३
बाबा नाहीं दूजा कोई *** १४०
बिरहणिकों सिंगार न भावे “१२५
मन मूरिखा तें योंहीं जनम गवायी ““* १४०
मेरे मन भेया राम कहो रे *** श्र४
मेरा मेरा छोड़ गँवारा *** १३०
राम रस मीठा रे) कोइ पीवे साधु सुजाण *"” १२७
सोई सुद्ागनि साँच सिंगार “** १२८
सोई साध-सिरोमणी, गोबिंद गुण गाबे. **" १४२
संग न छॉड़ों मेरा पावन पीव **« शर२६
हिंदू ठुरक न जाणों दोइ “** १४३
रेदास
अब हम खूब वतन घर पाया “** १४८
अब कैसे छुटे नाम रट लागी १० १ ए५्
आज दिवस लेऊँ बलिदह्वारा -'* १५३
ऐसो कछु अनुमौ कहत न आवे **" १४६
कवन भगति ते रहे प्यारो पाहुनो रे... १५४
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
( १४)
मजन ह्षठ
गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ "न शडण्
जब रामनाम कहि गावैगा **" १४७
जो तुम तोरो राम में नाहि तोरों न १७५१
देहु काली एक पियाला । १७०
पार गया चाहै सब कोई *+ १७०
यह अंदेस सोच जिय मेरे “* १७५१
रामा हो जग जीवन मोरा *"* १४७
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ । १४९
से कहा जाने पीर पराई नन्न शप्र
मल्कदास
अब तेरी सरन आयो राम ** १५७
ऐ. अजीज ईमान तू, काहेको खोवे *” १६३
कौन मित्यवें जोगिया हो “' १५८
गरब न कीजे बावरे, हरि गरब प्रहारी **' १६३
तेरा में दोदार-दिवाना “ज> 2हहूढ
दरद-दिवाने बावगे, अल्मस्त फकीया_*' १६४१
दीनबन्धु दीनानाथ मेरी तन हेरिये ४" शद५
नाम हमारा खाक है; हम खाकी बन्दे. *** १६२
ना वह रीहे जप-तप कीन्दे ** १६४
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(१५)
भजन ल् पृष्ठ
राम कट्दो राम कहो; राम कहो बावरे. **' १६४
सदा सोहागिन नारि सो **" १५७७
साँचा तू गोपाल, साँच तेरा नाम है. ** १५८
हरि समान दाता कोउ नाह्ीं **' १५६
हमसे जनि लागे तू माया *"* १६१
चरनदास
अब घर पाया हो मोहन प्यारा -" १७५
कोइ दिन जीवे तो कर गुजरान १७५
गुरु हमरे प्रेम पियायो हो -* १७४
जिन्हें हरिभगति पियारी हो -* १७३
झूलत कोइ कोइ संत लगन हिंडोलने. ***" १७२
डुक रंगमहलमें आव कि निरगुन सेज बिछी **" १६६
हुक निरगुन छेला यूँ, कि नेह लगाव री *” १६७
तरसें मेरे नेन हेली, राम-मिलन कब होयगो. १६७
प्रेमनगरके माहिं होरी होय रही *** १६९
मो बिरहिनकी बात हेली, बिरहिन होइ जानिहे १६८
वह पुरुषोत्तम मेरा यार १७१
समझ रस कोइक पावे हो "० १७०
साधो निंदक मित्र हमारा *" १७३
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
(१६ )
भजन पृष्ठ
सन सुरत रेंगीडी हो कि हरि-सा यार करो १६६
गुरु नानक
अब में कौन उपाय करूँ डप हट
काहे रे बन खोजन जाई “०९ ६१७९
जगतमें झूठी देखी प्रीत *** १८४
जो नर दुखमें दुख नहिं माने ** १८२
प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे न १८०
मुरसिद मेरा मरहमी, जिन मरम बताया *"" १७८
यह मन नेक न कह्मों करे *"' १८३
या जग मीत न देख्यो कोई *** १८१
राम सुमिर, राम सुमिर, एड्टी तेरो काज है'** १७७
सब कछु जीवतको ब्योहार ** १७७
हों कुरबाने जा पियारे *** १७८
दरिया साहब
कहा कहूँ मेरे पिउकी बात *** १८७
जाके उर उपजी नहिं भाई श्ट५
जो धुनियाँ तौ भी में राम तुम्हारा *** १८६
बाबल कैसे बिसरो जाई 5 १८७
रामनाम नहिं हिरदे घरा १ ८८
24222
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
भगवान् ओर उनकी ह्ाादिनी शक्ति श्रीराधाजी
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
3० ओऔपरमात्मने नमः
भजन-संग्रह
दूसरा भाग ( पहला खण्ड )
+>ई६०६१७०३५०
हितहरिवंश
(१) गोरी
यह जु एक मन बहुत ठौर करि
कहि कौने सचु पायो।
जहँँ तहँ बिपति जारि जुबती ज्यों
प्रगण पिंगला गायो ||
हैँ तुरंग पर जोर चढ़त हृठि
परत कौन पे धायो।
कहि धों कौन अंक पर राखे
ज्यों गनिका सुत जायो ||
हितहरिबंंस प्रपंच. वंच सब
काल. ब्याठकोी खायो।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
८ भजन-संग्रह भाग २
यह जिय जानि स्याम-स्यामा पद-
कमल संगि सिर नायो ॥
(२) पद
तातें भैया, मेरी सौं, कष्ण-गुन संचु ।
कुत्सित बाद विकारहिं परघन
सुनु सिख परतिय बंचु ।
मनि गुन पुंज जु ब्रजपति छाँडत
हितहरिबंस सुकर गहि कंचु ॥ १॥
पायो जानि जगतमें सब जन
कपटी कुटिल कलिजुगी टंचु।
इहि परलोक सकल सुख पावत,
मेरी सौं, कृष्ण-गुन संचु ॥ २॥
(३) बिलावल
मोहन छालके रँग राची |
मेरे रुयाछ परो जिन कोऊ,
बात दसोदिसि माची॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
हितहरिवंश १९
कंत अनंत करो किनि कोऊ,
नाहि£. घारना साँची।
यह जिय जाहु भले सिर ऊपर,
हों तु प्रगठट हे नाची ॥
जाग्रत सयन रहत ऊपर मनि,
ज्यों कंचन सँग पाँची।
हितहरिबंस डरो काके डर,
हों नाहिन मति काँची।॥
(४) मैरवी
रहो कोठ काहू मनहि दियें।
मेरे प्राननाथ श्रीस्यामा,
सपथ करों तिन ढियें।॥
जे अवतार कदंब भजत हैं,
घरि दृढ़ ब्रत ज्ु हियें।
तेऊ उमगि तजत मरजादा,
बन बिहार रस पियें॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
२० भजन-संग्रह भाग २
खोये रतन फिरत जे घर घर,
कौन काज इमि जियें।
हितहरिबंस अनतु सचु नाहीं,
बिन या रसहिं लियें॥
(५) बिद्दाग
प्रीति न काहु कि कानि बिचारे |
मारग अपमारग विथकित मन,
को. अनुसस्त॒ निवारे ॥
ज्यों पावइस सरिता जल उमगत,
सनमुख.. सिंधु सिधारे |
ज्यों नादहिं मन दिये कुरंगनि,
प्रगट पारधी मारे ॥
हितहरिबंसहि लग सारँंग ज्यों
सलभ सरगैरहिं जारै ।
नाइक निपुन नवल मोहन ब्रिनु
कौन अपनपी हारै ॥
रा
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
स्वामी हरिदाल २१
खामी हरिदास
(६) विभास
ज्योंहीं ज्योहीं तुम राखत हो,
त्योंहीं त्योंहीं रहियतु हैं हो हरि ।
और अचरचै पाइ धरों,
सु तौ कहों कौनके पेंड भरि ||
जदपि हों अपनो भायो कियो चाहीं,
कैसे करि सकी जो तुम राखौ पकरि |
कहि हरिदास पिं जराके जनावरल्ीं,
तरफराइ रद्मो उड़िवेको कितोउ करि॥
(७)
काहको बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें,
सब होय बिहारी ब्रिहारिनि |
और मिथ्या प्रयंच काहेको भाषिये,
सो तो है हारनि॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
२२ भजन-संग्रह भाग २
जाहि तुमसों हित ताहि तुम हित करौ,
सब्र सुख कारनि |
श्रीहरिदासके खामी स्यामा कुंजबिहारी,
प्राननिके आधारनि ॥ २॥
(८) आखावरी
हित तौ कीजे कमलनैनसों,
जा हित आगे और हित लागौ फीको ।
के हित कीजे साधुसँगतिसों,
जाबै कल्मपष जी को॥१॥
हरिको हित ऐसो जेसो रंग मजीठ,
संसार हित कसूंभि दिन दुतीको।
कहि हरिदास हित कीजे बिहारीसों,
और न निबाहु जानि जी को ॥ २॥
(९)
तिनका बयारिके बस |
ज्यों भावै त्यों उड़ाइ ले जाइ आपने रस ||
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
स्वामी हरिदास रे
अह्लोक सिवलोक, और छोक अस।
कह हरिदास बिचारि देख्यो बिना बिहारी नाहीं जस
(१०)
हरिके नामको आल्स क्यों,
करत है रे काल फिरत सर साँपें।
हीरा बहुत जवाहर संचे,
कहा भयो हस्ती दर बाँषें॥
बेर कुबेर कछू नहिं जानत,
चढ़ो फिरत है काॉँपें।
कहि हरिदास कछू न चलत जब,
आवत. अंतकी आँवें॥
(११)
मन लगाइ प्रीति कीजें कर करवा सों,
ब्रजबीथिन दीजे सोहिनी |
बूंदाबन सों बन उपबन सों,
गुंग.' माठ कर पोहिनी॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
२छ भजन-संग्रह भाग २
गो गोखुतन सों, म्रृग म्गछुतन सों,
और तन नेक न जोहिनी।
श्रीहरिदासके स्वामी स्थामा कुंजबिहारी सों,
चित ज्यों सिर पर दोहिनी |
(१२) कल्यान
हरिको ऐसोइ सब खेल।
मृग-तुस्ला जग ब्याप रही हैं,
कहूँ बिजोरो न बेल ॥
घनमद जोबनमद ओ राजमद,
ज्यों. पंछिनमें. डेल ॥
कह हरिदास यहै जिय जानो,
तीरथको सो मेल ॥
(१३ )
जौ लीं जीव तो छों हरि भजु रे मन,
और बात सब बादि।
दिस चारिको हला भत्र तू,
कहा लेइगो लछादि॥१॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
स्वामी हरिदास
मायामद गुनमद जोबनमद, झ्षऋछ
भूल्यो नगर बिबादि।
कहि हरिदास लोभ चरपट भयो,
काहेकी छागे फिरादि ॥ २ |
(१७४)
प्रेमसमुद्र रूपरस गहिरे, केसे छागै घाट |
वेकारयो दे जानि कहावत,
जानि पनोकी कहा परी बाट।॥
काहको सर परे न सूधो,
मारत गाल गली गली हाट।
कहि हरिदास ब्रिहारिहिं जानो,
तकौ. न औधट घाट [|
( १५७ ) बिहाग
गहो मन सब रसको रस सार।
लोक बेद कुल करमे तजिये, भजिये नित्य बिहार ॥
गृह कामिनि कंचन धन त्यागौ, सुमिरौ स्थाम उदार ।
कहि हरिदास रीति संतनकी, गादीको अधिकार ||
5 कर्णि:0 न
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
२६ भजन-संग्रह भाग २
गदाधर भट्ट
( १६)
सखी, हों स्याम रंग रँगी।
देखि बिकाइ गयी वह मूरति,
सूरति माहिं. पगी॥ १॥
संग हुतो अपनो सपनो सो,
सोइ रही रस खोई।
जागेहु आगे दृष्टि परे सखि,
नेकु न नन््यारो होई॥२॥
एक जु मेरी अँखियनिमें निसि-
दयोस र्यों करि भौन ।
गाइ चरावन जात सुन्यों सखि,
सो धौं कन्हैया कौन ॥ ३॥
कासों कहां कौन पतियावे,
कौन करे बकबाद |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥5॥099५86॥79.00॥॥
गदाघर भट्ट २७
केसे के कहि जात गदाधर,
गूँगेकी गुड़ खाद ॥ 9॥
( १७ ) विभास
दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया ।
नितप्रति सखा सिंगार सँवारत,
नित आरती उतारति मैया॥ १॥
नितप्रति गीत बाद्य मंगल घुनि,
नित सुर मुनिवर बिरद कहैया |
सिरपर श्रीत्रजराज राजवित,
तैसेई ढिग बलनिधि बल भैया ॥ २ |
नितग्रति रासबिलास ब्याहबिधि,
नित सुर-तिय सुमननि बरसेया ।
नित नव नव आनंद बारिनिधि,
नित ही गदाघर लेत बलेया।॥ ३॥
( १८ ) ध्ुपद
श्रीगोत्रिंद पद-पछवत्र सिर पर बिराजमान,
केसे कहि आवबे या सुखको परिमान |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
२८ भजबन-सग्रह भाग २
ब्रजनरेस देस बसत काछानल हर त्रसत ,
बिल्सत मन हुल्सत करि लीछामृत पान ॥ १ ॥
भीजे नित नयन रहत प्रभुके गुनग्राम कहत ,
मानत नहिं त्रिविध ताप जानत नहिं आन ।
तिनके मुखकमल दरस पावन पद-रेनु परस ,
अधम जन गदाधरसे पावें सनमान || २॥
( १९ ) क्रो
नमो नमो जय श्रीगोबिंद |
आनँदमय ब्रज सरस सरोवर,
प्रगटित ब्रिमल नील अरविंद || १॥
जसुमति नीर नहे नित पोषित,
नव-नव ललित लाड़ सुखकंद ।
ब्रजपति तरनि प्रताप प्रफुछित,
प्रसरित खुजस सुवास अमंद || २॥
सहचरि जार मराल संग रँग,
रसभरि नित खेलत सानंद |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गदाधर भट्ट २९
अलि गोपीजन नेन गदाघर,
सादर पिवत रूपमकरंद || ३ ॥
( २० ) सारंग
हरि हरि हरि हरि रट रसना मम |
पीवति खाति रहति निधरक भई,
होत कहा तोकों स्रम॥१॥
तैं तो सुनी कथा नहिं मोसे,
उघरे अमित महांघम |
ग्यान ध्यान जप तप तीरथ ब्रत,
जोग जाग बिनु संजम | २॥
हेमहरन ह्विजद्रोह. मान-मद,
अरु पर गुरु दारागम।
नामगप्रताप प्रबव पावकके,
॥॒ होत जात सलभ्नासम ॥ ३॥
इहि कलिकाल करार ब्याल बिष-
ज्वाल विषम भोये हम।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
३३० भजन-संग्रह् भाग २
ब्िनु इहि मंत्र गदाधरके क्यों,
मिटिहे।. मोह महातम || ४ ||
(२१ ) आसावरी
है हरितें हरिनाम बड़ेरो।
ताकों मूढ़ करत कत झेरों ॥ १॥
प्रग/ दरस मुचकुंदहिं दीन््हों,
ताह आयुसु भो तप केरो ॥ २॥
सुतहित नाम अजामिल लीनों,
या भत्रमें न कियो फिरि फेरो ॥ ३॥
पर-अप्वाद स्वाद जिय राच्यौ,
ब्रथा करत बकबाद घनेरों || 9 ॥
कौन दसा हेंहे जु गदाधर,
हरि हरि कहत जात कहा तेरो ॥ ५॥
(२२ ) सारंग टः
कब्रे हरि, कृपा करिहों छुरति मेरी ।
और न कोऊ काटनकों मोह बेरी ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गदाधर भष्ट ३१
काम लोभ आदि ये निरदय अहेरी ।
मिलिके मन मति मृगी चह्ूँधा घेरी ॥२॥
रोपी आइ पास पासि दुरासा केरी |
देत वाहीमें फिरि फिरि फेरी ॥३॥
परी कुपथ कंटक आपदा घनेरी।
नेक ही न पावति भजि भजन सेरी ॥9॥
दंभके आरंभ ही सतसंगति डेरी।
करे क्यों गदाधर बिनु करुना तेरी |॥५॥
( २३ ) दंडक
जयति श्रीराधिके सकल्सुखसाधिके
तरुनिमनि नित्य नव्तन-किसोरी ।
कृष्णतनु लीन मन रूपकी चातकी
कृष्णमुख हिमकिरिनकी चकोरी ॥१॥
कृष्णदग भंग बिखामहित पश्मिनी
कृष्णटग मृगन बंधन सुडोरी ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9४॥८5॥099५86॥79.00॥॥
झ्ट्रे भजन-सगह भाग २
कृष्ण-अनुराग मकरंदकी मधुकरी
कृष्ण-गुन-गान रस-सिंघु बोरी ॥२॥
बिमुख परचित्त ते चित्त जाको सदा
करत निज नाहकी चित्त चोरी।
प्रकृति यह गदाघर कहत केसे बने,
अमित महिमा इते बुद्धि थोरी ॥३॥
( २४ ) दंडक
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक
गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन |
नंद-नूप-गेहिनी गर्भ आकर रतन
सिष्ट-कष्टद ध्ृष्ट दुष्ट दानव दमन ॥१॥
बल-दलन-गर्ब-पव॑त-बिदारन
ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजघर धीर।
बिबिध बेला कुसछ मुसल्धर संग ले
चारु चरणांक चित तरनि-तनया-तीर ॥२॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58990 396] 9॥0॥ | ९(0/9/५
रादाधर भ्रष्ट ३३
कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य
वृंदारन्य भूषन मधुर तरु।
मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन
बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु ॥३॥
गदाधरबिषर ब्रष्टि करुना-दृष्टि करू
दीनको त्रिबिध संताप ताप तवन |
में सुनी तुब कृपा कृपन-जन-गामिनी
बहुरि पैहै कहा मो बराबर कबन ॥४॥
( २५ ) हिंडोल
झूलत नांगरि नागर छाल ।
मंद मंद सब सखी झुलावति,
गावति गीत रसाढ ॥?॥
फरहराति पट पीत नीलके,
अंचल चंचरू. चाल |
मनहूँ परसपर उमेँगि ध्यान छब्रि,
प्रगण भई तिहि. काल ॥२॥
भ० भा० २३०७७२---
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
३४ भजन खग्रह भाग २
सिलसिलात अति प्रिया सीस तें
लटकति बेनी नाल |
जनु पिय मुकुट बरहि भ्रमबस तहँ,
ब्याली बिकल ब्रिहाल ॥३॥
मलही माल प्रियाकी उरशझी,
पिय तुलती दल माल |
जनु सुरसरि रबितनया मिलिकै,
सोमित खेनि मराल ॥४॥
स्थामल गौर परसपर प्रति छबि,
सोभा बिसद बिसाल |
निरखि गदाधर रसिक-कुँवरि मन,
परयो सुरस जंजाल ॥ण॥
( २६ ) गोरी
आजु ब्रजराजको कुँबर बनते बन्यो,
देखि आवत मधुरं अपर र॑जित बेनु ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गदाधघर भट्ट ७
मघुर कलगान निज नाम सुनि ख्वन-पुठ,
परम प्रमुदित बदन फेरि हूँकति घेनु॥ १॥
मदबिधूर्णित नैन मंद बिहँसनि बैन,
कुटिल अछकाबली ललित गोपदरेनु |
गखाल-बालनि जाल करत कोलाहलनि,
संग दलतालघुनि रचत संचत चैनु ॥२॥
मुकुटकी लटक अरु चटक पटपीतकी,
प्रगट अंकुरित गोपी मनहिं मैंनु ।
कहि गदाधर जु इहि न्याय ब्रजसुंदरी
बिमल बनसालके बीच चाहतु ऐनु ॥३॥
( २७ ) गारी
सुंदर स्थाम सुजानसिरोमनि,
देलँ कहा कहि गारी हो ।
बड़े लोगके ओऔगुन बरनत,
सकुचि उठत मन भारी हो ॥१॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
३६ भजन-संग्रह भाग २
को करि सके पिताको निरनो
जाति-पाँति को जाने हो।
जाके मन जैसीयै. आबत
तैसिय. भाँति बखाने हो ॥२॥
माया कुटिल नटी तन चितबत
कौन बड़ाई पाई हो।
इहि चंचल सब जगत बिगोयो
जहँँ. तहाँ भई हँसाई हो ॥३॥
तुम पुनि प्रगट होइ बारे तें
कौन भलाई कीनी हो।
मुकति-बधू उत्तम जन लायक
ले अधमनिकों दीनी हो॥५श॥
बसि दस मास गरम माताके
इहि आसा करि जाये हो।
सो घर छाँड़ि जीभमके छालूच
भये द्वो पूत पराये हो ॥५॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गदाघर भद्ट ३७
बारेतें. गोकुल. गोपिनके
सूने घर तुम डाटे हो।
पैठे तहाँ निसंक रंक टों
दधिके भाजन चाटे हो ॥४॥
आपुू कहाइ घनीको. ढोटा
भात क्ृपन हो माँग्यो हो ।
मान भंग पर दूजे जाचतु
नंकु सैँकोच न लाग्यों हो ॥७॥
छोलुप तातें गोपिनके तुम
सूने भवन ढँढोरे हो।
जमुना नहात गोप-कन्यनिके
निलज निपट पट चोरे हो ॥८॥
बेनु बजाइ बिछठास करत बन
बोलि पराई नारी हो।
ते बातें मुनिरज सभामें
हे निसंक बिस्तारी हो ॥९॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
३८ भजन-संग्रद्द भाग २
सब कोउ कहत नंदबाबाको
घर भरथो रतन अमोले हो |
गर गुंजा सिर मोर-पखौवा
गायनके संग डोल हो ॥१०॥
साधु-समामें बेठनिहारो
कौन तियन सँग नाचे हो |
अग्रज संग... राज-मारग्मे
कुबजहिं देखत छाचे हो ॥११॥
अपनि सहोदरि आपुहि छल करि
अरजुन संग नसाई हो |
भोजन करि दासी-छुतके घर
जादव-जाति लजाई हो ॥१२॥
ले ले भजे नृपतिकी कन्या
यह थौं कौन बड़ाई हो ।
सतभामा. गोतमें . बिबाही
उल्टी चाल चलाई हो ॥११॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
गदाधर भट्ट 8
बहिन पिताकी सास कहाई
नैकहु लाज न आई हो।
ऐसे भाँति बिघाता दीन्हीं
सकल लोक ठकुराई हो ॥१४॥
मोहन बसीकरन चट चेटक
मंत्र जंत्र सब जाने हो |
तात भले जु भले सब तुमको
भले भले करि माने हो ॥१०॥
बरनों कहा जथा मति मेरी
बेदहु पार न पाबै हो।
भ्र गदाघर पग्रभुकी महिमा
गावत ही उर आवै हो ॥१६॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
३० भजन-संग्रह भाग २
ननन््द॒दास
( २८ )
राम-कृष्ण कहिये उठि भोर।
अवध-ईस वे धनुष परे हैं,
यह ब्रज-माखन-चोर ॥१॥
उनके छत्र चँवर सिंहासन,
भरत सत्र॒हन लछमन जोर ।
इनके लकुट मुकुट पीताम्बर,
नित गायन- सँग नंद-किसोर ॥२॥
उन सागरमें सिला. तराई
इन राख्यौ गिरि नखकी कोर ।
'नंददास” प्रभ॒सब तजि भजिये,
जैसे निरखत चंद चकोर ॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नन्ददास छ१
(२९ )
जो गिरि रुचे तो बसौ श्रीगोवर्धन,
गाम रुचे तो बसौ नँदगाम |
नगर रुचे तौ बसौ श्रीमधुपुरी,
सोभासागर अति अभिराम॥ १॥
सरिता रुचे तो बसौ श्रीजमुनातट,
सकल मनोरथ पूरन काम |
नंददास॒ कानन रुचे तौ,
बसा भूमि बुंदाबन-घाम ॥ २ ॥
शक
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
छ२ भजन-संग्रह भाग २
कुम्भनदास
( ३० ) सारग
भगतकों कहा सीकरी काम |
आबत « जात फ्न््हैया टूटी
बिसरि गयो हरिनाम ॥ १ ॥
जाको मुख देखे दुख लागे
ताकों करन परी परनाम |
कुंभनदास लाल. गिरघर बिन
यह सब झूठा घाम॥२॥
( ३१ ) घनाश्री
नैेन भरि देख्यो नंदकुमार।
ता दिनतें सब भूलि गयो हों
बिसरयो पेन परवार॥ १ ॥
बिन देखे हों बिकल भयो हों
अंग अंग सब हारि।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
कुम्भनदास ७३
ताते सुधि है साँवरि मूरतिकी
लोचन भरि भरि बारि॥ २॥
रूप-रास पैमित नहीं मानों
कैसे मिले लो कनन््हाई |
कुंभनदास प्रभु॒ गोबरघन-घर
मिलिये बहुरि री माइ॥३॥
( ३२ ) धनाश्री
हिलगिन कठिन है या मनकी।
जाके लिये देखि मेरी सजनी
लठाज गई सब तनकी॥ १ ॥
धरम जाउ अरु लोग हँसौ सब
अरु गात्री कुल गारी।
सो क्यों रहै ताहि बिनु देखे
जा जाकौ हितकारी ॥ २॥
रसलहुबधक निमिख न छाँड्त है
ज्यों अधीन मृग गानों।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
३४७ भजन-पंग्रह भाग २
कुंभनदास सनेह परम श्री-
गोबरघन-घर जानों ॥ ३॥
(३३ ) सारंग
जो पे चोंप मिलनकी होय।
तो क्यों रहै ताहि ब्रिनु देखें
ठाख करो जिन कोय | १॥
जो यह बिरह परसपर ब्याये
जो कछु जीवन बने |
लोकलाज कुछकी मरजादा
एकौ चित्त न गनै॥ २॥
कुभनदास ग्रमु जाय तन छागी
और न कछू सुहाय |
गिरघरछाल तोहि ब्रिनु देखें
छिन छिन कलप बिहाय || ३ ॥
++६६०६४६७०३*
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
परमानन्ददास ५
परमानन्ददास
(३४) बिहागरो
ब्रजके बिरही लोग बिचारे |
ब्रिग गोपाऊ ठगेसे ठाढ़े
अति दुखल तन हारे॥ १॥
मात जसोदा पंथ निहारत
निरखत साँझ सकारे।
जो कोइ कान्ह कान्ह कहि बोलत
अँखियन बहत पनारे॥ २॥
यह मथुरा काजरकी रेखा
जे निकसे ते कारे।
परमानंद खामि बिनु ऐसे
ज्यों चंदा बिनु तारे॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
४६ भजन-पसंग्रह भाग २
( ३५ ) कान्हरा
कौन रसिक है इन बातनकौ ।
नंद-नँंदन बिन कासों कहिये
सुन री सखी मेरो दुख या मनकौ || १ ॥
कहाँ वह जमुनापुलिन मनोहर
कहाँ वह चंद सरद रातिनकौ |
कहाँ वह मंद सुगंध अमल रस
कहाँ वह प्रटपद जलजातनकौं || २ ॥
कहाँ वह सेज पौढ़िबी बनकौ
फूल बिछौना म्रदु पातनकौ।
कहाँ वह दरस परस परमानँद
कोमल तन कोमलू गातनकौ || ३ |
( ३६ ) सारंग
जियकी साधन जिय ही रही री |
बहुरि गोपाल देखि नहीं पाए
बिलपत कुंज अहीरी ॥ १ ॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
परमानन्दंदास ३७
एक दिन सोंज समीप यहि मारग ,
बेचन जात दही री।
प्रीतके लएँ दानमिस मोहन
मेरी बाँह गही री॥२॥
बिन देखे घड़ि जात कलप सम
बिरहा अनल दही री।
परमानंद खामि बिन दरसन
नैन न नींद बही री॥३॥
( ३७ ) बिलावर
जसौदा तेरे भागकी कही न जाय ।
जो मूरति ब्रह्मादिक दुरलूम
सो प्रगटे हैं आय॥ १॥
सिब नारद सनकादि महामुनि
मिलिबे करत उपाय।
ते नँदलाऊू धूरि-घूसर-बपु
रहत गोद लिपटाय॥ २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
इट भजन-संग्रह भाग २
७>५-कब०23-त२3लन- 5 «.
बदन देखि मुप्तुकार।
झूली मेरे छाल बलिद्दारी
परमानंद जस गाइ॥ ३॥
( २८ ) पूरणी
मेरी माई माघोसों मन लाग्यो।
मेरी नेन अरु कमलनैनकों
इकठोरोी करि मान््यो॥ १॥
लोक बेदकी कानि तजी में
न्यौती अपने आन्यो।
इक गोबिंद चरनके कारन
बैर सबनसों ठान्यौ॥ २॥
अब को भिन्न होय मेरी सजनी !
दूध मिल्यो जैसे पान््यो।
परमानंद. मिली. गिरघरसों
है पहली पहचान्यो॥ ३ ॥
+-+---#शैु--७-----
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
( ३० ) देवगंधार
जबतें स्थाम सरन हाँ पायी ।
तें भेंट मई. श्रीबल्लभ,
हे निज पति नाम बतायो ॥ १ ॥
और अविद्या छोड़ि मलिन मति,
खुतिपष.. आस
स जन चह जुग खोजत,
अब निहचे मन
( ४० ) बिलावल
गोपालकी सब कांहू प्यारी ।
जसुमति महतारी ॥ १॥
सिर कुलहि बिराजै |
पाय नूपुर बाजै ॥ २ ॥
दढ़ायो ।
हम आयो ॥ २ ॥
बाल दसा
है ले गोद खिलावहीं,
पीत औँगुलि तन सोहहीं
छुद्रघंटिका कटि बनी,
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
० भजन-संग्रह भाग २
मुरि मुरि नाचै मोर ज्यों सुरनर मुनि मोहे ।
कृष्णदास प्रभु नंदके आँगनमें सोहै || ३ ॥
(४१ ) गोरी
मो मन गिरिधरछबिंपे अठक्यो।
ललित त्रिभंग चाल्ये चलिकै,
चिबुक चारु गड़ि ठटठक्यों॥ १॥
सजल स्याम घन बरन लीन हे,
फिर चित अनत न भटक्यौ |
कृष्णदास किये प्रान निछांवर,
यह तन जग सिर. पठक्यो ॥ २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
व्यासजी पृ
व्यासजी
( ४२ ) सारंग
राधा-बछमभ मेरौ .यारौ।
सरबोपरि सबहीकी ठाकुर,
सब सुखदानि हमारी ॥ १ ॥
ब्रजः ब्रंदाबन नाइक सेवा-
लाइक स्याम उज्यारो
प्रीती रीत पहचाने जाने
रसिकनकौ रखवबारो ॥ २॥
स्याम कमल-दल-लोचन मोचन,
दुख नैननको तारौ ॥
अवतारी सब अवतारनकौ
महतारी महतारी ॥ ३ ॥
मूरतिबंत काम गोपिनको
गाय. गोपको गारौ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
घर भजन-संग्रह भांग २
व्यासदासकों प्रावः सजीवन
छिनमर हृदय न ठारो ॥ 9 ॥
( ७३ ) सारंग
बंदाबनकी सोभा देखे मेरे नैन सिरात ।
कुंज निकुंज पुंज सुख बरसत
हरघषत सबको गात॥ १ ॥
राधा मोहनके निज मंदिर
महाप्रलय नहिं. जात।
ब्रह्मतें उपय्यी न अखंडित
कबहूँ. नाहि&. नसात॥ २॥
फनिपर रत्रि तरि नहिं बिराट महँ
नहिं संपष्या नहिं प्रात ।
माया कालरहित नित नूतन
सदा छूढल फल पात ॥ ३॥
निरमुन॒ सगुन॒ ब्ह्मतें न्यारौ
बिहरत सदा सुद्ात।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
व्यासजी जे
ब्यास बिलास रास अदभुत गति,
निगम अगोचर बात ॥ ४ ॥
( ४७ ) चचोेरों
नव चक्र चूड़ा नृपति मन साँवरौ,
राधिका तरुनिमनि पढ़रानी।
सेस ग्रह आदि बेकुंठ परिजंत सब्र
लोक थानैत ब्रज राजधानी ॥ १॥
मेघ छयानत्रै कोटि बाग सींचत जहाँ,
मुक्ति चारो तहाँ भमरति पानी |
सूर ससि पाहरू पव्रन जन इंदिरा,
चरनदासी भाट निगम बानी | २॥
घर्म कुतवाल सुक सूत नारद चारु,
फिरत चर चारि सनकादि ग्यानी |
सत्तगुन पीरिया काल बँधुवा जहाँ,
कम बस काम रति खुख निसानी ॥ ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
७9 भजन-संग्रह भाग २
कनक मरकत घरनि कुंज कुसुमिति महल,
मध्य कमनीय सयनीय ठानी।
पल न बिछुरत दुऊ जात नहिं तहँ कोऊ,
ब्यास महलनि लिये पीकदानी | 9 ॥
( ४५ ) चनाश्री
हरिदासनके निकट न आवत प्रेत पितर जमदूत ।
जोगी भोगी संन््यासी अरु पंडित मुंडित धूत ॥
ग्रह गन्नेस सुरेस सित्रा सिब डर करि भागत भूत |
सिधि निधि बिधिनिषेध हरिनामहिं डरपत रहत कुपूत
सुख-दुख पायप-पुन्य मायामय इईंति-भीति आकूत ।
सबकी आसत्रास तजि ब्यासहिं भावत भगत सपूत ॥
( ४६ ) सारंग
रसिक अनन्य हमारी जाति।
कुलदेवी राधा, बरसानौ खेरौ,
बत्रजवासिन सों पाँति॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥09५86॥79.00॥॥
वब्यासजी जज
गोत गोपाल, जनेऊ माल,
सिखा सिखंडि, हरि-मंदिर भाल |
हरिगुन नाम बेद घुनि सुनियत,
मूज पखावज, कुस करताल ॥ २॥
साखा जमुना, हरि-लीला पटकरम
प्रसाद पग्रानः घन रास ।
सेवा बिधि-निषेध जड़ संगति,
बृत्ति सदा बंदाबन बास ॥ ३ ॥
समृति भागवत, कृष्ण नाम संध्या,
तरपन गायत्री जाप |
बंसी रिषिं जजमान कलपतरु
ब्यास न देत असीस सराप ॥ 8 ॥
( ४७ )
ऐसे ही बसिये ब्रजबीथिन |
साधुनके पनवारे चुनि चुनि,
उदर पोषियत सीधिन || १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
पद भजन-संग्रह भाग २
3ल >>ल तल जज लत -+लघ >3लघ >+त+ल ल् जल जल न् जल न् लक लत + + +७>++>ह लत
धूरनमेंके बीनि. चिनगठा
र्छा कीजे सीतन।
कुंज कुंज प्रति लोटि लगे जउड़ि
रज॒ ब्रजकी अंगीतन ॥ २॥
नितप्रति दरस स्थाम-स्यामाको
नित जमुना जछ पीतन ।
ऐसेहि व्यास रुचे तन पावन
ऐसेहि मिलत अतीतन ॥ ३ ॥|
( ४८ )
जैये कौनके अब द्वार।
जो जिय होय प्रीति काहुके दुख सहिये सौ बार ॥
घर-घर राजस तामस बाढ़यो, धन-जोबनको गार ।
काम-बिबस द्वे दान देत नीचनकों होत उदार ॥
साधु न सुझत बात न बूझत ये कलिके ब्योहार |
ब्यासदास कत भाजि उबरिये परिये मॉँझीधार ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
कहा कहा नहिं सहत सरीर।
स्याम-सरन बिनु करम सहाइन,
जनम-मरनकी पीर ॥ १ ॥
करुनावंत साधु-संगति बिनु,
मनहिं. देय को धीर।
भगति भागवत बिनु को मेटै,
सुख दे दूखकी भीर |२॥
बिनु अपराध चहूँ दिसि बरषत
पिसुन बचन अति तीर।
कृष्ण-कृपषा कबचीतें.. उबरे
पावे तबरही सीर॥ ३ ॥
चेतहु भेया, बेगि बढ़ी कलि-
कार. नदी गंभीर ।
ब्यास बचन बलि बुूंदाबन बसि,
सेबहु कुंज कुटीर ॥ 9 |॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
८ भजन-संग्रह भाग २
(५० )
भजो सुत, साँचे स्थाम पितादि |
जाके सरन जात ही मिटिहै
दारुन दुखकी दाहि ॥ १॥
कृपाबंत भगवंत सुने में
छिनि छाँड़ो जिनि ताहि।
तेे सकल मनोरथ पूज्जें
जो मथुरा लौं जाहि ॥ २॥
वे गोपाठ दयाल दीन तू,
करिंहेँ कृपा निबाहि।
और न ठौर अनाथ दुखिनकौं
में देख्यी जग माँहि ॥ ३॥
करुना बरुनालयकी महिमा ह
मोपे कही न जाहि।
ब्यासदासके प्रभुकी सेवत
हारि भई कह काहि ? || ४ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9४॥८5॥09५86॥79.00॥
च्यासजी ९
बीच + 3 +त3त चल तल >> + तल जज त++
(५१ ) सारंग
धरम दुरयों कलिराज दिखाई ॥
कीनों पग्रगट प्रताप आपनौ
सब बिपरीति चलाई।
धन भौ मीत, घरम भौ बेरी
पतितनसों हितवाई ॥ १॥
जोगी जती तपी संन्यासी
त्रतः छाँड्यो अकुलाई |
बरनासमकी कौन चलवै
संतनहूमें आई ॥ २॥
देखत संत भयानक लागत
भावते ससुर जमाई।
संपति सुकृत सनेह् मान चित
ग्रह-ब्यौहार बड़ाई ॥ ३॥
कियो कुमंत्री लोभ आपुनों
महामोह जु सहाई।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
६० भजन-संग्रह भाग २
न्खिक्ब्ल््ख्च्श्न्््ख्त्व्व््ल्थ्ख्त्खखि्ख्ख्खध्ख्च्जल्खिध्कष् कल ल्व्जजलजल ली बल
काम क्रोघ मद मोह मत्सरा
दीन्हीं देस दुहाई।॥ ४ ॥
दान लेनकीं बड़े पातकी
मचलनकों बँभनाई |
लगन मरनकों बड़े तामसी
बारी कोटि. कसाई ॥ ५ |
उपदेसनकों गुरू. गुसाई
आचरनें अधमाई ।
व्यासदासके . सुक्रत. सौकरे-
में गोपाल सहाई ॥ ६॥
(५२ )
साधन बैरागी जड़ बंग।
धातु रसायन औषध सेवत
निसिदिन बढ़त अनंग ॥ १॥
सुक-बचननकी रंग न लाग्यो
भयोी न संस मंग।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
9 58990 396] 9॥0॥ | ९(0/9/५
व्यासजी ६१
बिष बिकार गुन उपने ब्रित लगि
सबे करत चित मंग॥ २॥
बनमें रहत गहत कामिनि कुच
सेवत पीन उतंग।
घनि धनि साधु ! दंभकी मूरति,
दियो छाँड़ि हरि-संग ॥ ३॥
लोम बचन बाननि अँग-अंगनि
सोमभित निकर निरषंग।
ब्यास आस जम पासि गरे,
तिहि भावे राग न रंग ॥ 9४ ॥
(५३ )
जो दुख होत बिमुख घर आये।
ज्यों कारों छागे कारी निसि,
कोटिक बीछू खाये ॥ १॥
दुपहर जेठ. जरत बारूमें
घायन लौन ढगाये।
॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
६२ भजन-संग्रह भाग २
काँटन माँझ फिरें बिनु पनहीं,
मूड. टोछा खाये॥ २॥
ज्यों बॉझ्हिं दुख होत सौतिकौ
सुंदर बेटा जाये।
देखत ही मुख होत जितो दुख
बिसरत नहिं बिसराये ॥ ३ ॥
भटकत फिरत निलज बरजत ही
कूकर ज्यों झहराये।
गारी देत ब्रिलम नहिं मानत
फूलत दमरी पाये॥ 9 ॥
अति दुख दुष्ट जगतमें जेते
नैक न मेरे भाये।
मूलि दरस नहिं कीजो वाकौ,
ब्यास बचन बिसराये ॥ ५ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
न्यासजी ६३.
(५७ )
सुने न देखे भगत भिखारी ।
तिनके दाम-कामकौ लोभ न
जिनके. कुंजबिह्ारी ॥ १॥
सुक नारद अरु सिवर सनकादिक,
जे अनुरागी भारी।
तिनको मत भागवत न समुझे
सबकी बुधि पचि हारी ॥ २॥
रसना. इंद्री दोऊ बेरिन
जिनकी अनी अन्यारी।
करि. आहार बिहार परसपर
बैर करत बिभचारी ॥ ३ ॥
बिषइनिकी परतीति न ढरिसों
प्रीति रीति बाजारी।
व्यास आस-सागरमें. बूड़ें
आई भगति बिसारी | 9 ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
ही भजन-संग्रह भाग २
हक आल दीप नी, बीती अमल जल बटन रा मेनन अल अब 7 कम यह जम रा न अमल 3० कलम]
(५५ )
जो सुख होत भगत घर भाये |
सो सुख होत नहीं बहु संपति,
बाँझहिं.. बेटा जाये ॥ १॥
जो सुख होत भगत चरनोदक
पीवत गात लगाये।
सो सुख सपनेह नहिं पैयत
कोटिक तीरथ नहाये ॥ २॥
जो सुख भगतनकौ मुख देखत
उपजत दुख बिसराये।
सो सुख होत न कामिहि कबहूँ
कामिनि उर लपटाये ॥ ३ ॥
जो सुख कब्रहुँ न पैयत पितु घर
सुतकौ पूत खिलाये।
सो सुख होत भगत बचननि सुनि
नैननि नीर बहाये ॥ 9 ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
व्यासजी हज
जो सुख होत मिलत साधुनसों
छिन छिन रंग बढ़ाये।
सो सुख होत न नेक ब्यासकौं
लंक सुमेरह पाये ॥ ५॥
(५६)
हरि ब्रिनु को अपनों संसार।
माया मोह बँध्यो जग बूड़त,
काूू नदीकी धार॥ १॥
जैसे संघट होत नाबमें
रत न पैले पार।
सुत संपति दारा सों ऐसे
बिछुरत लगे न बार॥ २॥
जेसे सपने रंक पाय निधि
जाने कछू न सार।
ऐसे छिनभंगुर देहीके
गरबहि,. करत गँँबार ॥ ३ ॥
भ० भा० २--३
9 58090 390] 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
द्द भजन-संप्रह भाग रे
कस अर की
जेसे अँधरे टेकत डोलत
गनत न खाइ पनार।
ऐसे ब्यास बहुत उपदेसे
सुनि.-सुनि गये न पार॥ 9॥
(५७ )
कहत सुनत बहुते दिन बीते
भगति न मनमें आई।
स्यामकृपा बत्रिनु, साधुसंग बिनु
कहि कौने रति पाई॥१॥
अपने अपने मत-मद भूले
करत आपनी भाई।
कहो हमारी बहुत करत हैं,
बहुतनमें प्रभुताई ॥ २ ॥
में समझी सन काहु न समझी,
में सबहिन समझाई |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
व्यासजी ६७
भोरे भगत हुते सब तबके,
हमरे बहु चतुराई ॥ ३॥
हमहीं अति परिपक्च भये
औरनिरक सत्रे कचाई |
कहनि सुहेली रहनि दुहेली
ब्रातनि बहुत बड़ाई॥ ४॥
हरिमंदिर माला धरि, गुरु करि
जीवनके सुखदाई |
दया दीनता दासभाव बिनु
मिलें न ब्यास कन्हाई ॥ ५॥
(५८ ) कान्हरा
परमध्नन राघे नाम अधार।
जाहि. स्थाम मुरलीमें टेरत,
सुमिरत बारंबार | १ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
६८ भजन-संग्रह भाग २
च्न््ल्च्व्व्च्च्ल्चल््न्ख्लब्च्न््न्च्यचय्ख्व््््िव््क्ल्क् ललित तट पट चल बल जज
जंत्र-मंत्र. औ बेद तंत्रमें,
सब तारकौ तार।
श्रीसुक प्रगट कियो नहीं यातें
जानि सारकौ सार॥२॥
कोटिन रूप धरे नँद-नंदन,
तऊ न पायी पार।
ब्यासदास अब प्रगट बखानत,
डारि भारमें भार ॥ ३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
श्रीभट्ट ६९
श्रीभट्
(०९ ) पद
मदनगुपाठ, सरन तेरी आयौ।
चरनकमठकी . सरन दीजिये,
चेरो करि राखी घर जायो ॥ १॥
धनि-बनि मात-पिता सुतनबंधू,
धनि जननी जिन गोद खित्शयौ।
घधनि-धनि चरन चलत तीरथकों,
धनि गुरुजन हरिनाम सुनायी ॥२॥
जे नर बिमुख भये गोबिंदसों,
जनम अनेक महादुख पायो।
श्रीमटके प्रभु दियो अभय पद,
जम डरप्योौ जब दास कहायो ॥ ३॥
( ६० )
ब्रजभूमि मोहिनी में जानी।
मोहन कुंज मोहन बूंदाबन मोहन जमुनापानी ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
छछ भजन-संग्रह भाग २
मोहन नारि सकल गोकुछकी बोलति अमरतबानी |
श्रीभटके प्रभु मोहन नागर मोहनि राघारानी ॥२॥
(६१ )
सेब्य हमारे हैं पिय प्यारे ब्रंदा-बिपिन-बिलासी ।
नंद-नंदन ब्रृषभानु-नंदिनी चरन अनन्य उपासी १
मत्त प्रनयत्रस सदा एकरस त्रित्रिव निकुंजनिवासी |
श्रीमट जुगुलरूप वंसीवट सेवत सब सुखरासी ।२।
(६२)
स्यामा स्याम पद पार्वें सोई
मन-बच-क्रम करि सदा नित्य जेहि
हरि-गुरु पदपंकज रति होई ॥ १ ॥
'नंदसुत्रन बृषभानुसुता पद
भजें तजे मन आने जोई।
श्रीमत अटकि रहे खामीपन
आन बत्रतै माने सब छो३॥ २ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
श्रीभट्ट ७१
(६३ )
जुगुलकिसोर हमारे ठाकुर।
सदा सरबदा हम जिनके हैं,
जनम-जनम घरजाये चाकर ॥१॥
चूक परे परिरें न कहूँ,
सबही भाँति दयाके आकर ।
जै श्रीभद्र प्रगट त्रिभुवनमें,
प्रनतनि पोपत परम सुघाकर ॥ २॥
( ६४ )
बलि-बलि श्रीराधे-नदनदना ।
मेरे मनकी अमित अघटना को जाने तुम बिना ॥
मलेइ चारु चरन दरसाये ढूँढ़त फिरिहों ब्रंदाबना ।
जै श्रीमट स्थामा स्यामरूप पे निवछावर तन-मना ॥
(६५ )
रात्रे, तेरे प्रेमकी कापे कहि आवे ।
तेरीसी गोपफी तो बनि आबे॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
छर भजन-संग्रह भाग २
निज जिलजल कल जन न ++ २५०२०६ २०+०५७८४+ तल क्ल् 3५ 2 ०ल बटर ४ -त 5 > चल 3 न् सब लत स्ल कल तल ते
मन-बच-क्रम दुरगम सदा तापै चरन छुवावे |
जै श्रीमट मति ब्ृषभानु तेज प्रताप जनाबे ||
(६६)
बसौ मेरे नेननिमें दोउ चंद ।
गौरबदनि ब्ृषभानुनंदिनी,
स्थामब्रन नँंदनंद || १ ॥
गोकुल रहे. लुभाय रूपमें,
निरखत आनंदकंद ।
जे श्रीमद्र प्रमरस-बंबन,
क्यों छूट बढ़ फंद॥ २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
सूरदास मदनमोहन छह
सूरदास मदनमोहन
( ६७ ) बधाई
नंदजू मेरे मन आनंद भयो, हों
गोबरवबन तें आयौ।
तुम्हरे पुत्र भयो, हों सुनिके
अति आतुर उठि धायो ॥ १॥
बंदीजन अरु भिच्छुक सुनि सुनि
देस देस तें आये।
इक पहले ही आसा लछागे
बहुत दिनन ते छाये॥ २॥
ते पहिरें कंचन मनि मुकता
नाना बसन अनूप।
मोहि. मिले मारगमें मानों
जात कहँके भूष॥ ३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
७४ भजन-संग्रह भाग २
तुम तो परम उदार नंदजू
जोइ माँग्या सोइ दीनों।
ऐसी और कौन त्रिभुकनमें
तुम सरि साकौ कीनों॥ 9 ॥
रुच्छ हेतु तो परवों रहों हों
ब्िनु देखे नहिं जैहों।
नंदराइ झुनि बिनती मेरी
तब बिंदा भलि हेहों ॥ ५॥
दीजे मोहिं कृपा करि साई
जो हों आयी मॉँगन।
जसुमति-छुत अपने पाइनि चलि
खेलत आबे आँगन ॥ ६ ॥
जब तुम मदनमोहन कहि टेरौ
यह सुनि हों घर जाउँ।
हों ता तेरी घरकों ढाढ़ी
सूरदास मो नाउँ॥७॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
सूरदास मदनमोहन जज
(६८ )
प्रगट भई सोमभा त्रिभुवनकी भानु गोपके आई ।
अदभुत रूप देखि ब्रजबनिता रीज्ञीं लेत बलाइ |
नहिं कमला, नहिं सची,नहीं रति उपमाह न समाइ |
जा हिंत प्रगट भए ब्रजभूषन धन्य पिता घन माढ |
जुग जुग राज करो दोऊ जन इत तुब उत नँदराइ ।
उनके मदनमोहन तेरे स्यामा सूरदास बलि जाइ ||
(६९ ) देख
मेरे गति तुमहीं अनेक तोष पाऊँ।
चरन-कमल-नख-मनिपर बिपे-सुख बहाऊँ।
घर घर जो डोलीं तो हरि तुम्हें लजाऊँ ॥१॥
तुम्हरी कहाएई कहों कौनको कहाऊँ।
तुमसे प्रभु छोंडि कहा दीननकों धाऊँ॥२॥
सीस तुम्हें नाय कहो कौनकौ नवाऊँ।
कंचन उर हार छाँड़ि काच क्यों बनाऊँ।॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
७६ भजन-लंग्रह भाग २
सोभा सब्र हानि करूँ जगतकों हँसाऊँ।
हाथीतें उतरि कहा गदहा चढ़ि घाऊँ॥०॥
कुमकुमकी लेप छाँड़ि काजर मुँह लाऊँ।
कामचेनु घरमें तज अजा क्यों दुह्ाऊँ॥७॥
कनकमहल छाँड़ि कक्योंडब परनकुटी छाऊँ।
पाइन जो पेणौ ग्रभु तो न अनत जाऊँ॥६॥
सूरदास मदनमोहन जनम जनम गाऊँ।
संतनकी पनहीकी रच्छक कहाऊँ॥ज।॥
( ७० ) बिलावल
मघुके मतवारे स्याम, खोलो प्यारे पलकें ।
सीस मुकुट लटा छुटी और छुटी अछकें ॥१॥
सुर-नर-मुनि द्वार ठाढ़े दरसहेतु किलकें।
नासिकाके मोति सोहैं बीच छाल छल्कें ॥२॥
कटि पीतांबर मुरली कर स्त्रन कुँडल झलकें ।
सूरदास मदनमोहनन दरस देंहों भलकें ॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
सूरदास मदनमोहन छ्छ
(७१ ) देस
चली री, मुरली सुनिये, कान्ह बजाई जमुनातीर ।
तजि लोकलाज कुलकी कानि गुरुजनकी भीर |
जमुनाजल थकित भयो बछा न पार्बें छीर।
सुरबिमान थकित भये थक्ित कोकिल-कीर ||
देहकी सुधि बिसरि गई बिसरों तनकौ चीर |
मात-तात बिसर गये बिसरे बालक-बीर ||
मुरली-धुनि मधुर बाजे केसेके धरों धीर।
सूरदास मदनमोहन जानत हो परपीर॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
७८ भजन-संग्रह भाग २
अलीज बिल कलघ9 २ ५ लत
नागरीदास
(७२ )
हमारे मुरलीवारो स्थाम।
बिनु मुरुठछी बनमाल चन्द्रिका,
नहिं. पहिचानत नाम ॥ १॥
गोपरूप बरृंदाबन-चारी,
ब्रज-जन पूरन. काम ।
याहीसों हित चित्त बढ़ी नित,
दिन-दिन पछ छिन जाम ॥२॥
नंदीसुर॒ गोबरघन . गोकुल,
बरसानों बिखाम |
नागरिदास द्वारका मथुरा,
इनसों. कैसो काम |३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नागरीदास ७९
( ७ई )
चरचा करी केसे जाय ।
बात जानत कछुक हमसों, कहत जिय थहराय ॥
कथा अकथ सनेहकी, उर नाहिं आवत और ।
बेद सम्ृती उपनिषदकों, रही नाहिंन ठौर॥
मनहिमें है कहनि ताकी, सुनत स्रोता नंन।
सोडब्र नागर लोग बूझत, कहि न आबत बेन॥
(७७ )
जो मेरे तन होते दोय ।
में काहुतें कछु नहिं कहतौ,
मोतें कछु कहतौ नहिं कोय ॥१॥
एक जु॒ तन हरि-बिमुखनके
सेंग. रहतो देस-बिदेस |
बिबिधर भाँतिके जग-दुख-सुख जहाँ
नहीं भगति-लबलेस ॥२॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
८० भजन-संग्रह भाग २
एक जु तन सतसंग रंग रोँगि,
रहता अति सुख पूर।
जनम सफल कर लेतौ ब्रज बसि,
जहँ... ब्रज जीवनमूर ॥३॥
हैँ तन बिन हे काज न हूहैं,
आयु सु छिन-छिन छीजे।
नागरिदास एक तनते अब,
कहो कहा करि लीजें ॥४॥
( ७५ )
दरपन देखत, देखत नाहीं |
बालापन फिरि प्रगट स्याम कच,
बहुरि स्वेत है जाहीं ॥१॥
तीन रूप या मुखके पलटे,
नहिं. अयानता . छूटी।
नियरे आवत मृत्यु न सूझत,
आँखें. हियकी फटी ॥२॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
नागरीदास ८१
कृष्ण-भगति-सुख लेत न अजहू,
बुद्ध देह दुखरासी |
नागरिया सोई नर निहचैे,
जीबत नरकनिवासी | ३
(७८ )
हरि जू अजुगत जुगत करेंगे ।
परबत ऊपर बहल काँचकी, नीके छे निकरेंगे ॥
गहिरे जल पाषान नाव बिच, आछी भाँति तरेंगे ।
मैंन तुरंग चढ़े पावक बिच, नाहीं पिघरि परेंगे ॥
याहू ते असमंजस हो किन, प्रभु दृढ़ कर पकरेंगे |
नागर सब आधीन कृपाके, हम इन डर न डरेंगे॥
(७७ )
दुई्ूँ माँतिनकौ मैं फछ पायो।
पाप किये ताते बिमुखन सँग, देस-देस भठकायी ॥
तुच्छ कामना हित कुसंग बसि, झूठे लोभ लुभायौ |
कौन पुन्य अब बूंदाबन, बरसाने सुबस बसायो ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥09५86॥79.00॥॥
ढ्२ भजन-संग्रह भाग २
आनँदनिधि ब्रज अनन्य-मंडली,उर लगाय अपनायो
सुनि बेहकों दुरलभ सो सब, रस-बिल्यस दरसायो ॥
स्थामा-स्याम दास नागरकौ, कियो मनोरथ भायौ ॥॥
(७८ )
हमारी सत्र ही बात सुधारी।
कृपा करी श्रीकुंजविहारिनि, अरु श्रीकुंजबिहारी ॥
राख्यो अपने बूंदाबनमें, जिहि ठाँ रूप उजारी |
नित्य केलि आनंद अखंडित, रसिक संग सुखकारी ||
कलह कलेस न ब्यापे इहि ठाँ, ठोर बिस्त्र तें न्यारी ।
नागरिदासहिं जन्म जितायो, बलिहारी बलिद्वारी ||
(७९ )
भगति ब्रिन हैं सब लोग निखटू टू ।
आपसमें लड़िबे भिड़िबेकों, जेसे जंगी टट टू ॥
नित उनकी मति श्रमत रहत है,जेसे लोलप लट् टू ॥
नागरिया जगमें वे उछरत, जिहि बिधि नटके बट्टू ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नागरीदास <्झे
( ८० )
किते दिन ब्रिन बूंदाबन खोये।
योंही ब्रथा गये ते अब लीं,
राजस रंग समोये ॥ १॥
छाँड़ि पुलिन फूलनिकी सैया,
सूल सरनि सिर सोये।
भीजे रसिक अनन्य न दरसे,
बिमुखनिके मुख जोये ॥ २॥
हरि ब्रिहारकी ठौरि रहे नहिं,
अति अभाग्य बल बोये |
कलह सराय बसाय भठ्यारी,
माया राँड बिगोये ॥ ३ ॥
इक रस हाँके सुख तजिके हाँ,
कब्रों हँसे कबों रोये ।
कियो न अपनो काज, पराये
भार सीसपर ढोये ॥ 9 ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
८8 भजन-संग्रह भाग २
पायो नहिं आनंद लेस मैं,
सत्रे देस टकटोये।
नागरिदास बसे कुंजनमें,
' जब सत्र ब्रिवि सुख भोये ॥ ५ ||
(८१)
ब्रजबासीतें हरिकी सोभा।
ब्रैन अथर छत्रि भये त्रिभंगी,
सो वा ब्रजकी गोमा ॥ १ ॥
ब्रज बन धातु ब्रिचित्र मनोहर,
गुंज-पुंड अति सोहें ।
ब्रजमोरनिकोी पंख सीसपर,
ब्रज-जुबती मन मोहें || २॥
ब्रज-रज नीकी लगति अलकपै,
ब्रज द्रम फल अरु माल |
ब्रज गउवनके पाछे आछे,
आबत मद गज चाल | ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नागरीदास ८५
ब्स्ल्ल्ल्व्ष्ल्विप्लप्टिप लत हलक न्चिट चल ला लास्ट + + चल पन् पड न्ब न्च न पल ल बल क् ह+ ५ ढ3ल५ल्५ 2५८५ >5४+५त७त५न्५त तरल 4७४७
बीच छाल ब्रजचंद सुहाये,
चहूँ ओर ब्रज गोप।
नागरिया परमेसुरहुकी
ब्रज ते बाढ़ी ओप ॥ 9॥
(८२ )
ब्रज-सम और कोउ नहिं घराम।
या ब्र॒जमें परमेसुरहके
सुधरे सुंदर नाम ॥ १॥
कृष्ण नाँत्र यह सुन्यो गर्गतें,
कान्ह कान्ह कहि बोलें ।
बालकेलि-7स मगन भये सत्र,
आनैंद-सिंघ... कलोले ॥ २॥
जसुदानंदन, . दामोदर, . नव-
नीत-प्रिय, दधिचोर |
चीरचोर, चितचोर, चिकनियाँ,
चातुर, नवलकिसोर ॥ ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9४॥८5॥09५86॥79.00॥
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भजन-संग्रह् भाग २
राधा-चंद-चकोर, साँवरो,
गोकुल्चैंद,.. दघिदानी ।
श्रीव्ृंदाइनचंद,. चतुर॒ चित,
राघारमन,
बल्लभ-सुत,
रासबिहारी,
विपिनबिहारी,
छेलबिहारी,
गोपीनाथ,
9 58000 32909] 9॥0॥ 2
प्रेम-रूप-अभिमानी ॥ ४ ॥
सु राधघाबल्लम,
राधाकांत, रसाढ ।
गोपीजन-बल्लभ,
गिरविर-धचर, छब्रिजाढ || ५ ॥
रतसिकत्रिहारी,
कुंजत्रिहारी, स्याम |
बंकबिहारी,
अटल. बिहारइभिराम ॥ ६ ॥
टालबिहारी,
बनवारी, रसकंद ।
मदनमोहन, . युनि
बंसीधर गोत्रिंद ॥ ७ ॥
86[090/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नागरीदास ८७
भी आ ब ज या की कक
ब्रजलोचन, ब्रजरमन, मनोहर,
ब्रजउत्सव, ब्रजनाथ |
ब्रजजीवन, ब्रजबह्ठम सबके,
ब्रजकिसोर, .. सुभगाथ ॥ ८ ॥
ब्रजमोहन, ब्रजभूषन, सोहन,
ब्रजनायक ब्रजचंद |
ब्रजनागर, ब्रजलैल, . छबीले,
ब्रजवर, श्रीनंदनंद ॥ ९ ॥
ब्रज आनंद, ब्रजदूलह नितहीं,
अति सुंदर ब्रजलाल |
ब्रज. गउबनके पाछे आछईहे,
सोहत ब्रजगोपाल ॥ १० ॥
ब्रज-संबंधी नाम लेत ये,
ब्रजकी लीला गाबै।
नागरिदासहि मुरलीवारो,
ब्रजको ठाकुर भाव ॥ ११॥
-059#६0 ४४+६:१---
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
८८ भजन-संग्रद्द भाग २
भगवतरसिक
(८३ ) पद
लखी जिन ठालकी मुसक्यान |
तिनहिं. बिसरी बेदबिधि, जप,
जोग, संयम, ध्यान ॥ १॥
नेम, ब्रत, आचार, पूजा,
पाठ, गीता, ज्ञान ।
रसिक भगवत द्रग दई असि,
ऐंचिके मुख म्यान॥ २॥
( ८४)
परसपर दोउ चकोर दोउ चंदा ।
दोउ चातक, दोउ खाती, दोठउ घन,
दोठ दामिनी अमंदा ॥ १ |
दोड अरबिंद, दोऊ अछि लूुपट,
दोउ छोहा, दोड चुंबक ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
भग़वतरसिक ८
दोउ आशिक, महबूब दोउ मिलि,
जुरे जुराफा अंबक | २॥
दोउ मेघ, दोठ मोर, दोउ मृग,
दोड राग-रस-भीने |
दोउ मनि बिसद, दोउ बर पन्नग,
दोउ बारि, दोड मीने ॥ ३ ॥
भगवतरसिक बिहारिनि प्यारी,
रसिक बिहारी प्यारे।
दोउ मुख देखि जियत अधपरामृत
पियत होत नहीं न्यारे ॥ ३॥
( ८५ ) सारंग
बेषधारी हरिके उर सालें।
लोभी, दंभी, कपटी नट-से,
सिस्नोदरकों पाले ॥ १॥
गुरू भये घर पघरमें डोलें,
नाम घनीको बेंचें।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
९० भजन-सग्रह भाग २
परमारथ सपने नहिं जानें,
पैसनहीकों. खैंचैं ॥ २॥
कब्रहुँक बकता है बनि बैठे,
कथा भागवत गावें |
अरथ अनरथ कछू नहिं भाषैं,
पैसनहीकों थधार्वें ॥ ३॥
कब्रहुँक हरिमंदिरकों सेवैं,
करें निरंतर बासा।
भाव मगतिकी लेस न जानें,
पैसनहीकी आसा ॥ 9॥
नाचें, गावें, चित्र बनावें,
करें काब्य चटकीली |
साँच बिना हरि हाथ न आबे,
सब रहनी हैं ढीली ॥ ५॥
त्रिनु बिबेक-बेराग, भगति बिनु,
सत्य न एकौ मानो।
भगवतबिमुख कपट चतुराई,
सो पाखंडे जानी ॥ ६॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
भगवतरसिक ५१
बल ८५ >39>प>सलपल खत > तल >क्लेलपल+ 2४०४ लपन्प न्लल 2 चल् 3 नली ह+ २५०++५७८५८४८४७८६०९८६/४०४;३५४०४०६०००
(८६)
इतने गुन जामें सो संत |
श्रीभागबत मध्य जस गावत,
श्रीमुख्ल कमछाकंत ॥ १॥
हरिकौ भजन साधुकी सेवा,
सर्वभूत पर दाया।
हिंसा, ठोम, दंम, छल त्यागै,
बिषसम देग्वे माया ॥२॥
सहनसील, आसय उदार अति,
घधीरजसहित, बिबेकी ।
सत्यनचन सबकों सुखदायक,
गहि अनन्य ब्रत एकी ॥ ३ ॥
इंद्रीजित, अभिमान न जाके,
करे जगतकों पावन।
भगवतरसिक ताछखुकी संगति
| तीनहूँ ताप नसावन || 9 ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
९२ भजन-संग्रह भाग २
(८४७) गोरी
नमो नमो ब्रंदाबनचंद ।
नित्य, अनंत, अनादि, एकरस,
पिय प्यारी बिहरत खच्छंद ॥ १ ॥
सत्त-चित्त-आनंदरूपमय
खग-म्ग, दुम-बे डी बर बूंद |
भगवतरसिक निरंतर सेवत,
मधुप भये पीवत मकरंद | २॥
( ८८ ) मन
जय जय रसिक खनीरबन |
रूप, गुन, छावन्य, प्रभुता, प्रेम पूरन भत्रन ॥
बिपति जनकी भानबेकों, तुम बिना कहु कबन |
हरहु मनकी मलिनता, ब्यापँ न माया पवन ॥
बिषय रस इंद्री अजीरन, अति करावहु पवन |
खोलिये हियक्रे नयन, दरसे सुखद बन अवन॥
चतुर, चिंतामनि, दयानिवि, दुसह दारिद दवन |
मेटिये भगवत व्यथा, हँसि मेंटिये तजि मत्रन [|
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9 58990 396] 9॥0॥ | ९(0/9/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥09५86॥79.00॥॥
नारायण स्वामी बे
नारायण खामी
(८९ ) आसावशी
सखि, मेरे मनकी को जाने।
कासों कहां सुने जो चित दै,
हितकी बात बखाने ॥ १ ॥
ऐसो को है अंतरजामी,
तुरत पीर पहिचाने।
नारायन जो बीत रही है,
कब कोई सच माने ॥ २॥
(९० ) सोरठ
जाहि लगन लगी घनस्यामकी ।
घरत कहूँ पग, परत हैं कितहूँ,
भूल जाय सुधि धामकी ॥ १ ॥
छबि निहार नहिं रहत सार कछु,
घरि पछ निसिदिन जामकी |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9४॥८5॥09५86॥79.00॥
९७ भजन-संग्रह भाग २
जित मुँह उठे तिते ही धांतै,
सुरति न छाया घामकी || २ ॥
अस्तुति निंदा करों भले ही,
मेड़ तजी कुछ-गामकी ।
नारायन बौरी भई्ट डोछे,
रही न काट्ठ कामकी ॥ ३ ॥
(९१)
मोहन बसि गयो मेरे मनमें ।
लोक-ल्ाज कुछ-कानि छूटि गई,
याकी . नेह-लगनमें || १ ॥
जित देगखों तितही वह दीखें,
घर-बाहर, आँगनमें ।
अंग-अंग.. प्रति रोम-रोममें,
छाइ रहो तन-मनमें || २॥
कुंडल-झलक कपोलन सोहै,
बाजूबंद भुजनमें ।
कंकन कढित ललित बनमाला,
नूपुर-धुनि चरननमें || ३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
नारायण स्वामी क््जु
चपल नैन, भ्रकुटी बर बाँकी,
ठाढ़ी सधन लतनमें |
नारायन त्रिन मोल बिकी हीं,
याकी नैंक हसनमें ॥ 9 ॥
(९२ )
मनमोहन जाकी दृष्टि परत,
ताकी गति होत है और और ।
नसुददात भवन, तन असन बसन,
बनहीकों धाव्रत दौर दौर ॥ १॥
नहिं घरत धीर, हिय वरत पीर,
ब्याकुल है मटकत ठौर ठौर ।
कब अँसुवन भर नारायन मन,
झाँकत डोलत पौर पौर ॥ २॥
(०९३ ) खमाच
प्रीतम, तू मोहिं प्रानते प्यारी।
जो तोहि देखि हियो सुख पावत,
सो बड़ भागनवारी ॥ १ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
९६ भजन-प्ंग्रह भाग २
तू जीवनधन सरबस तू ही,
तुही इसनकौ तारो।
जो तोकों पलभर न निहारूँ,
दीखत जग अँधियारी ॥ २॥
मोद बढ़ावनके कारन हम,
मानिनि रूपहिं. थधारो।
नारायन हम दोउ एक हैं,
फूल सुगंध न न्यारो ॥ ३॥
( ९.७ ) बिहाग
करु मन, नंदनँदनको ध्यान।
यहि अवसर तोहिं फिर न मिलेगी,
मेरी क्यों अब मान॥ ? ॥
बूँघवारी अलके. मुखपै,
कुंडल झलकत कान ।
नारायन अल्साने. नेना,
झूमत रूपनिधान ॥ २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
नारायण स्वामी ९७
च््््ल्ल््क्च्ख्नल््न्सशश्श््क्कलस्कफकतल खली डी लटड जा ७४5
(९५ ) झझोटी
स्थाम इगनकी चोट बुरी री ।
ज्यों ज्यों नाम लेति तू बाकौ,
मो घायलपै नौन पुरी री॥ १॥
ना जानों अब सुध-बुध मेरी,
कौन बिपिनमें जाय दुरी री ।
नारायन नहिं छूंटत सजनी,
जाकी जासों प्रीति जुरी री ॥ २॥
(९६ ) कान्हरा
नंदनंदनके ऐसे नेन।
अति छबत्रि भरे नागके छोना,
डरति डसें करि सैन ॥ १॥
इनसम सातबर मंत्र न होई,
जादू, जंत्र, तंत्र नहिं कोई ।
एक दृष्टिमें मन हरि लेबैं,
करि देवें बेचैन ॥ २॥
भे० भा? ३--७४--
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
९८ भजन-संग्रह भाग २
कक पा की
चितवनमें घायल करि डारं,
इनपै कोटि बान लै बारें |
अति पैने, तिरछे हिय कसकें,
खास न देवैं लेन ॥ ३॥
चंचल चपल . मनोहर कारे,
खंजन-मान-लजावन हारे ।
नारायन झुन्दर, मतवारे,
अनियारे, दुख-देन || ४॥
रख न पा मन की आम कट कक की
( ९७ ) काफी
या साँबरेसों मैं प्रीति छगाई।
कुल-कलंकतें. नाहिं. डरौंगी,
अब तो करों अपनी मनभाई || १ ॥
बीच बजार पुकार कहाँ मैं,
चाहै करौ तुम कोटि बुराई ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मृदु मुसकनि मेरे बट आई ॥ २॥
बिनु देखे मनमोहनकौ मुण्व,
मोहि लगत त्रिमुवन दुखदाई |
नारायन तिनकों सब फीकी,
जिन चाखी यह रूप-मिठाई ॥ ३ ॥
(९८ )
बेदरदी, तोहि दरद न आवे |
चितबनमें, चित बस करे मेरौ,
अब काहेकों आँख चुरावे ॥ १ ॥
कबसों परी द्वार तेरे,
बिन देखे जियरा घबरावे।
नारायन महबूब. साँवरे,
घायल करि फिर गैल बताबे )| २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
बृ०० भजन-संग्रह भाग २
(९९०, ) नट
देख सखी नव छैल छबीलो,
प्रातसमय इततें को आबे ।
कमलसमान बड़े दृग जाके,
स्याम सलोनो मृदु मुसकावे || १॥
जाकी सुन्दरता जग बरनत,
मुख-सोभा लम्बि चंद लजावे |
नारायन यह कियों वही है,
जो जसुमतिकौ कुँवर कहावे |॥ २ |)
( १०० ) ईमन
मोपे कैसी यह मोहिनी डारी।
चितचोर छल. गिरियारी ॥
प्रहकारजमें जी न लछगत है,
खानपान लगे खारी।
निपट उदास रह्त हों जबते,
सूरत देखि तिहद्ाारी ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
नारायण स्वामी १०१
अल - जज ज+ज>-
संगकी सखी देति मोहि धीरज,
बचन कहत हितकारी।
एक न छगत कही काहूकी,
कहति कहति सत्र हारी ॥२॥
रही न ठाज सकुच गुरुजनकी,
तन-मन छुरति व्रिसारी |
नारायन मोहिं समुझि बाबरी,
हँसत सकल नर-नारी ॥ ३ ॥|
( १०१ ) कवरित्त
चाहे तू योग करि भ्रकुटीमध्य ध्यान धरि,
चाहे नाम-रूप मिध्या जानिकै निहार ले |
निरगुन, निरभय, निराकार ज्योति ब्याप रही,
ऐसो तक्त्ग्यान निज मनमें तू धार ले || १ ॥
नारायन अपनेकौ आप ही बखान करें,
मोतें वह मिन्न नहीं? या जिधि पुकार ले ।
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
१०२ भज़न-संग्रह भाग २
जौलीं तोहि नन््दकौ कुमार नहि इश्टि परयो,
तौलों तू मले बैठि ब्रह्मकों बिचार छे ॥ २॥
( १०२ ) बिहाग
नयनों रे, चित-चोर बतावी ।
तुमहीं रहत भवन रखवारे,
बाँके बीर कहावोी ॥ १॥
तुम्हे बीच गयो मन मेरी,
चाहै सौंहँ. खावी।
अब क्यों रोबत हो दइमारे,
कहुँ तो थाह छगाबो ॥ २॥
घरके भेदी बेढि द्वार पै,
दिनमें घर छुटवावौ ।
नारायन मोद्दि बस्तु न चहिये,
लेनेहार दिखाबी ॥ ३ ॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नारायण स्वामी १०३,
( १०३ ) छावनी
रूपरसिक, मोहन, मनोज-मन-
हरन, सकल-गुन-गरबीले |
छैल-छब्रीले चपललोचन
चकोर चित चटकीले ||टेक॥
रतनजटित सिर मुकुट छटक रहि
सिमट स्याम लट घछुँघुरारी ।
बाल बिहारी. कन्हैयालाल,
चतुर, तेरी बलिहारी ॥
लोलक मोती कान कपोलन
झलक बनी निरमल प्यारी |
जोति उज्यारी, हमें दरबार
द्र्स दे. गिरियारी ॥
बिज्जुछटठा-नी दंतछठा सुख
देखि सरदससि सरमीले ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
बृ०छ भजन-संग्रदद भाग २
छेछ-छब्री ले, चपललोचन
चकोर चित चटकीले | १ ॥
मंद हँसन, मृदु बचन तोतले
बय किसोर भोली-भाली |
करत चोचले, अमोलक अधर
पीक रच रही लाडी ॥
फूल गुछाब चिबुक सुंदरता,
रुचिर कंठकछन्नि बनमाली |
कर सरोजमें, बुंद मेंहँदी
अति अमंद है प्रतिपाली ॥
फूलछरी-सी नरम कमर कर-
धनीसब्द हैं. तुरसीले।
छेल-छबी ले, चपललोचन
चकोर चित चटकीले | २॥
झँगुली झीन जरीपट कछनी,
स्यामल गात सुहात भले।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
नारायण स्वामी बू०ज
चाल निराली, चरन कोमल-
पंकजके पात भले॥
पग नूपुरझनकार परम उत्तम
जघुमतिके तात भले ।
संग. सखनके, जमुनतट
गो-बछरान चरात भले॥
ब्रज-जुत्रतिनकी प्रेम निरखि कर
घर-घर माखन गटकीले |
छेल-छब्री ले, चपललोचन
चकोर चित चटकीले ॥ ३॥
गाबैं बाग-बिदास चरित हरि
सरद-रैन रस-रास करें।
मुनिजन मोहैं, क्रष्ण, कंसादिक
खल-दलूू. नास करें॥
गिरिधारी महराज सदा श्री-
ब्रजबून्दाबन बास करें ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१०६ भजन-संग्रह भाग रे
हरिचरित्रिकों स््रन सुन सुन
करि अति अभिलाष करें।॥
हाथ जोरि करि करे बीनती
ज्ञारायन!ः दिर दरदीले।
छैल-छत्री ले, चपललोचन
चकोर चित चटकीले॥ ४॥
(१०४ ) कालिंगड़ा
मूरख, छाँड़ि ब्रथा अभिमान |
औसर बीति चल्यो है तेरी, दो दिनकौ मेहमान ॥
भूप अनेक भये प्रथित्रीपर, रूप तेज बलवान ।
कौन बच्यो या काल ब्यालतें मिटि गये नाम-निसान
घवल धाम, घन, गज, रथ, सेना, नारी चंद्र समान ।
अंत-समै सबहीकों तजिके, जाय बसे समसान ॥
तजि सतसंग श्रमत बत्रिषयनमें, जा बिधि मरकट खान
छिन भरि बैठि न सुमिरन कीन्हों, जासों होय कल्यान
रे मन मूढ़, अनत जनि भटके, मेरी कह्मयौ अब मान ।
नारायन ब्रजराज-ऊुँवरसों, बेगहि करि पहिचान |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
नारायण स्वामी १०७
््नशलि्िलिल््ल्ि्ल्न्य्््च्क्ल्त्त्क््क्लक्कतप्कक्प्कतल्््क्तललललतक्लत्कल्खखजजलजत 5
( १०५ )
टेर सुनों ब्रजराज-दुलारे ।
दीन मलीन हीन सब गुनते,
आय पययो होँ द्वार तिहारे ॥ टेर॥
काम क्रोध अरु कपट मोह मद,
सो जाने निज प्रीतम प्यारे।
_श्रमत रह्मों सँग इन बिषयनके,
तुब पदकमल न मैं उर घारे॥ १॥
कौन कुकर्म किये नहीं मैंने,
जो गये भूल सो लिये उधारे।
ऐसी खेप भरी रचि पत्रिकों,
चकित भये लखिक्े बनिजारे [| २ |
अब तौ एकबार कहौ हँसिके,
आजहिते तुम भये हमारे।
याहि. क्रपाते नारायनकी
बेगि लगैगी नाव किनारे |३॥
9 58090 3296|6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥5॥099५86॥79.00॥॥
१०८ भजन-संग्रह भाग २
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ललितकिशोरी
( १०६ ) झँझोटी
मन, पछितैही भजन बिनु कीने ।
घन-दोलत कछु काम न आते,
कमलनयन-गुन चित बिनु दीने ॥ १ ॥
देखतकी यह जगत सँगाती,
तात-मात अपने सुख भीने।
लब्तिकिसोरी दुंद मिटे ना,
आनंदकंद बिना हरि चीने॥ २॥
(१०७ ) गोरी
मुसाक्रिर, रेंने रही थोरी।
जागु-जागु सुख-नींद त्यागि दें,
होत बस्तुकी चोरी॥ १॥
मंजिल दूरि भूरि भवसागर,
मान कूर मति मोरी।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
छलितकिशोरी १०५९
ललितकिसोरी हाकिमसों डरु,
करें. जोर बरजोरी || २॥
(१०८ ) पोल
अब का सोते सम्बि | जाग जाग।
रैन ब्रिह्ात जात रस बिरियाँ,
चोलीके बँद ताग ताग॥ १ ॥
जोबन उमंग सफल कर बौरी,
आन-कान सब त्याग त्याग ।
ललितकिसोरी छठ. अनँदवा,
पीतमके गर छाग छाग॥ २ ॥
(१०९ )
लटक लटक मनमोहन आवनि |
झूमि झूमि पग बरत भूमिपर
गति मातंग. छजावनि॥ १ ॥
गोखुर-रेनु अंग अँग मंडित,
उपमा दग सकुचावनि |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
११० भजन-संग्रह भाग २
नव घने मनु झीन बदरिया,
सोभा रस बरसावनि॥ २॥
बिगसति मुखलेों कानि दामिनी,
दसनावलि दमकावनि ।
बीच-बीच घनघोर. माधुरी,
मघुरी बेनु बजावनि॥ ३ ॥
मुकतमाल उर लछसी छबीली,
मनु बग-पाँति सुहावनि।
बिंदु. गुल गुपाल-कपोलन,
इंद्धू छबि छावनि।॥ ४॥
रुनन झुनन किंकिनि-धुनि मानों
हंसनिकी चुहचावनि |
बिहुलित अल्क धूरिघूसर तन,
गमन लोटि भुत्र आवनि | ५ ||
जँघिया लसनि कनक-कछनी पै,
: पटुका ऐंचि बँधावनि |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
छरलितकिशोरी १११
कद शीट बी पनजन की जा को अर
पीतांबर फहरानि मुकुटछबि,
नटवर बेस बनावनि॥ ६ ॥
हलनि बुलाक अधर तिरछौंही,
बीरी सुरंग रचावनि।
ललितकिसोरी फूल-झरनिया
मधुर मघुर बतरावनि॥ ७ ॥
(११० ) ईमन
साधो, ऐसिई आयु सिरानी।
लगत न लाज लजावत संतन,
करतहिं दंभ छदंब बिहानी ॥ १ ॥
माला हाथ छलित तुलसी गर,
अँग अँग मगबत छाप छुह्यनी ।
बाहिर परम बिराग भजनरत,
अंतस मति पर-जुबति नसानी [| २ |
मुखसों ग्यान-ध्यान बरनत बहु,
कानन रति नित बिषय-कहानी|
््ख्श््श्््ध्ख््ख्ख्््ल््ख्ल्िल्प्कल जज जज जज बीज
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
११२ भजन-संग्रह्द भाग २
2 लक की सम मा मकान लक बन ली कमर अजीत अर की लीक पल जीन मल
ललितकिसोरी कृपा करो हरि,
हरि संताप सुहृद, खुखदानी || ३ ||
(१११ ) बिहाग
छाभ कहा कंचन तन पाये।
भजे न मदुल कमल-दलू-छोचन,
दुख-मोचन हरि हरखि न ध्याये || १ ॥
तन-मन-घन अरपन ना कीन्हों,
प्रान प्रानपति गुननि न गाये ।
जोबन, घन, कलघौत-घाम सब,
मिथ्या आयु गँवाय गँवाये॥ २॥
गुरुनन गरब, बिमुख-रँग-राते,
डोलत सुख संपति बिसराये।
लक्तिकिसोरी मिट ताप ना,
बिनु दृढ़ चिंतामनि उर लये॥ ३ ॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मोहनके अति नैन नुकीले |
निकसे जात पार हियराके,
निरखत निपट गँसीले ॥ १॥
ना जानों बेघन अनियनकी,
तीन छोकते न्यारी।
ज्यों ज्यों छिदत मिठास हियेमें,
सुख छागत खुकुमारी ॥ २ ॥
जबसों जमुना कूल ब्रिडोक्यो,
सब निसि नींद न आवबे।
उठत मरोर बंक चितवनियाँ,
उर॒ उतपात मचाबै॥ ३॥
ललितिकिसोरी आज मिल,
जहवाँ कुलकानि विचारों |
आग लछगै यह छाज निगोडी,
हुग भरि स्याम निहारों ॥ ४ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
११8 भजन-संग्रह भाग २
( ११३ ) खेमटा
रे निरमोही, छबि दरसाय जा |
कान चातकी स्याम बिरह घन,
मुरली मघुर सुनाय जा॥१॥
ठलितकिसोरी नैन चकोरन,
दुति मुखचंद दिखाय जा।
भयी चहत यह प्रान बयगोही,
रूसे पथिक मनाय जा॥२॥
(११७४ ) कवित्त
लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीलेसे,
कटीले औ कुटीले, चटकीले, मटकीले हैं ।
रूपके लुभीले, कजरीले, उनमीले, बर-
छीले, तिरछीलेसे, फँसीले औ गँसीले हैं |॥
ललितकिसोरी झमकीले, गरबीले, मानों,
अति ही रसीले, चमकीले औ रोँगीले हैं ।
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
छब्ीले, छकीले, अरु नीलेसे नसीले आली
नेना नैंदलालके नचीले ओऔ नुकीले हैं ॥
( ११५ ) झूलना
दुनियाके परपंचोंमें.. हम
मजा नहीं कछु पाया जी ।
भाई-बंधु.. पिता-माता, पति,
सबसों चित अकुछाया जी ||
छोड़-छाड़ घर, गाँव-नाँव कुल,
यही पंथ मनभाया जी।
लल्तिकिसोरी आनैँदघन सों
अब हडढि नेह लगाया जी ॥ १ ॥
क्या करना है संतति-संपति,
मिध्या सब जग माया है ।
शाल-दुशाले, हीरा-मोती-
में मन क्यों भरमाया है ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
११६ भजन-छंग्रह भाग २
माता-पिता, पती-बंधू. सब
गोरखंध बनाया है।
लछक्तिकिसोरी आनँदधन हरि
हिरदे कमल बसाया है || २॥
बन-बन फिरना बिहतर हमको
रतनभवन नहीं भात्रै हैं ।
ठतातरे पड़ रहनेमें. छुख
नाहिन सेज सुहावे है ॥
सोना कर घरि सीस भर्र अति
तक्या ख्याल न आबे है।
लल्तिकिसोरी नाम हरीका _
जपि-जपि मन सचुपावै है || ३॥
तजि दीनीं जब दुनियाँ-दोलत
फिर कोईके घर जाना क्या |
कंद-मूल-फल पाय रहें. अब
खद्ग-मीणा खाना क्या |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥9.00॥॥
लकितकिशोरी ११७
छिनमें साही बकसें हमको
मोती-माल-खजाना क््या।
ललितकिसोरी रूप. हमारा
जाने ना तहेँं आना क्या ॥ ४ ॥
अष्टसिद्धि नवनिद्धि. हमारी
मुट्ठीम,॑ हरदम रहती ।
नहीं जबाहिर, सोना-चाँदी,
त्रिमुवनकी संपति चहतीं ॥
भावैं ना दुनियाकी बातें
दिल्वरकी चरचा सहती।
ललितिकिसोरी_ पार लगाव
मायाकी सरिता बहती ॥ ५॥
गौर-स्याम बदनारबिंदपर
जिसको बीर मचलते देखा |
नैन-बान, मुसक्यान संग फँस
फिर नहिं नेक सँभलते देखा|॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥089५86॥79.00॥॥
११८ भजन-संग्रह भाग २
ललितकिसोरी जुगुठल. इझ्कर्मे
बहुतोंका घर धलते देखा ।
ड्बा प्रेमसिंघुका कोई
हमने नहीं उछलते देखा ॥ ६ ॥
देखा री, यह नंदका छोरा
बरछी मारे जाता है।
बरछी-सी तिरछी चितत्रनकी
पैनी छुरी चलाता है।॥
हमको धायलूः देख बेदरदी
मंद-मंद. मुसकाता है।
ललितकिसोरी जखम जिगरपर
नौनपुरी बुरकाता है ॥ ७॥
(११६ ) सारंग
मुरकि मुरकि चितबनि चित चोरे |
ठुमकि चलन हेरी दे बोलनि,
पुछकनि. नंदकिसोरै ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥089५86॥79.00॥
छलितकिशोरी ११०
सहरावनि. गैयान चौंकनी,
थपकन कर बनमाडी |
गुहरावनि के नाम सबनकौ,
घौरी घूमर आली ॥ २॥
चुचकारनि चट झपटि बिचुकनी,
हूँ. हूँ रहो रँँगीली।
नियरावनि चोरखनि मगहीमें,
झुकि बछियान छत्नीली || ३ ॥
फिरकैयाँ छे. नितत. अछापन,
बिच ब्रिच तान रसीली |
चितबनिं ठिठुकि उढकि गैयासों,
सीटी भरनि रसीडठी॥ 9 ॥
चाँपन अधर सेन दे चंचल,
नेनन मेलि कटठारी।
जोरन कर हा हा करि मोहन,
मुसकन ऐंडि बिहारी ॥ ५ ॥
बाँह उठाय उचकि पग टेरनि,
इते किते हो स्थामा।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१२० भजन-संग्रह भाग २
निकसी नई आज तेैं बनरिंह,
मोरे ढिग अभिरामा || ६ ॥
हरुते खोर साँकरी जुबतिन,
कहत गुलाम तिहारौ |
मिलियौ. रेन मालती कुंजे,
तहँ पिक अरुन निहारो ॥ ७ ॥
काहु झटक चीर लकुटीतें,
काहू.. परी दबावे।
काहू अंग परसि काहू तन,
नेनन कोर नचावे || ८ ॥
उरझ्त पट नूपुरसों पाछे
झुकि झुकि कै सुरझावे ।
लल्तिकिसोरी छल्ति लाड़िली,
दुृग संकेत बताबे | ९॥
(११५७ ) खमाच
नेन चकोर, मुखचंदहूकों बारि डारों,
बारि डारों चित्तहिं मनमोहन चितचोरपै ।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
ललितकिश्ञोरी १२१
प्रानह्कों बारि डारों हँसन दसन लाल,
हेरन कुटिलता औ लोचनकी कोरपै॥१॥
बारि डारों मनहिं सुअंग अँग स्यामा-स्याम,
महल मिलाप रस रासकी झकोरपै |
अतिहि सुघर बर सोहत त्रिमंगीलल,
सरबस बारोौं वा ग्रीवाकी मरोरपै ॥२॥
(११८)
अब तौ तेरिय हाथ ब्रिकानी ।
मृदु बोलन मुसक्यान माधुरी,
तन मन नेन समानी॥ १ ॥
लोक-लाज, कुल-कानि तजी सब,
जामें तुव रुचि चीनी।
घरम-करम ब्रत-नेम सब्ै सो,
तोई रँग-रस भीनी॥२॥
तुब॒ कारन यह मेष बनायोौ,
प्रगट उघरि करि नाची।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
इरर॑ भजन-संग्रह साग २
नाउँ कुनाउँ घरों किन कोऊ,
हों नाहिंन मति काँची॥ ३॥
होनी होय सो होय भले ही,
तन-मन लगन लगी है।
ललितक्सोरी लाल. तिहारे,
मति अनुराग पगी है॥9॥
(११९ ) अल्दैया
में तुब पदतर रेनु रसीली।
तेरी सखरि कौन करि सके, ..
प्रेममरई मूरति गरबीलठी॥ १॥
कोटिड प्रान वारनें. करिकै,
उरिन न तोसों प्रीति रँगीली ।
अपनी ग्रेम-छटठा -करुना करि,
दीजे दान दयाल छब्रीली | २॥
का मुख करों बड़ाई राई,
ललितकिसोरी केलि हठीली ।
प्रीति दसांस सतांस तिहारी,
मोमें नाहिन नेह नसीली॥ ३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
ललितकिशोरी बर३
(१२० ) प्रभाती
कमलमुख खोली आज़ु पियारे।
बिगसित कमल कुमोदिनि मुकल्ति,
अलिगन मत्त गुँजारे ॥ १ ||
प्राची देसि रबि थार आरती
लिये ठनी निवछारे।
ललितक्सोरी सुनि यह बानी
कुरकुट बिसद पुकारे।
रजनी राज बिंदा माँगे बलि,
निरखी पलक उधघारे ॥२॥
(१२१ ) अल्दैया
अब कुलकानि तजेही बनेगी।
पठक-ओट सत कोटि कलप सम,
बिछुरत हिये कैटारि हनेगी॥ १ ॥
छल्तिकिसोरी अंत एक दिन
तजिबेदइ जब तान तनेंगी।
फिर का सोच देहु तिल अंजुलि
लेहु अंक रसकेलि छनेगी || २ ॥
+--०-0;9८००-.-
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
3» श्रीपरमात्मने नमः
दूसरा भाग ( दूसरा खण्ड )
९397७...
दाददयाल
5 ( १२२ ) गोरी
मेरे मन भैया राम कहो रे ॥ टेक ॥
रामनाम मोहिं सहजि सुनावै |
उनहिं चरण मन कीः
रामनाम ले संत सुहाबे | नी
कोई कहे सत्र सीस सहौ रे
वाहीसों मन जोरे राखो | ०
नीकै रासि लिये निब
का है." दो
हत-खुनत तेरौ कछू न जावे | कि
पाप निछेदन सोई छह रे॥०॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥9.00॥॥
दादूद्याल १२७
बल डिटडवििलचिट बल रजत टन ज स्तल प्लस >+ल५ 2 0टपन्+ घ ५८५ की >> ५८
दादू रे जन हरि-गुण गावो।
कालहि जालहि फेरि दहौ रे॥ ५॥
(१२३ )
त्रिरहणिकी सिंगार न भात्रे |
है कोइ ऐसा राम मिलावें |॥टेक॥
ब्रिंसे अंजन-मंजन, चीरा |
बिरह-ब्रिथा यह ब्यापै पीरा || १ ॥
नोसत थाके सकल सिंगारा ।
है कोइ पीड़ मिटावनहारा ॥ २॥
देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा।
निसदिन चितव॒त चातक नीरा | ३ ॥
दादू ताहि न भावत आना |
राम बिना भई मृतक समाना ॥ ४ ॥
( १२७ 2
तोलगि जिनि मारे तूँ मोहिं |
जौलगि मैं देखीं नहिं तोहिं || टेक॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
१२६ भजन-संग्रह भाग २
इबके बिछुरे मिलन कैसे होइ |
इहि बिधि बहुरि न चीन्हें कोइ ॥ १॥
दीनदयाल दया करि जोइ।
सब सुख-आलनँद तुम सूँ होइ ॥२॥
जनम-जनमके. बंधन खोइ३ |
देखण दादू अछि निशि रोह ॥३॥
(१२५ )
संग न छाँड़ी मेरा पावन पीव।
मैं बलि तेरे जीवन जीव || टेक ||
संगि तुम्हारे सब खुख होइ।
चरण-कँवल मुख देखों तोहि ॥१॥
अनेक जतन करि पाया सो३।
देखों नैनों तौ सुख हो ॥२॥
सरण तुम्हारी अंतरि बास।
चरण-कँबल तहँ देहु निवास ॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
दादूदयाल १२७
अब दादू मन अनत न जाइ |
अंतर बेधि रह्मो लौ छाई ॥9॥
( १२६ )
ऐसा राम हमारे आबेै।
बार पार कोइ अंत न पावै ॥ टेक॥
हल्का भारी क्द्मा न जाइ।
मोल-माप नहिं रह्मा समाइ ॥ १॥
कीमत-लेखा नहिं. परिमाण ।
सब पचि हारे साध सुजाण ॥ २॥
आगी पीछो परिमित नाहीं।
केते पारिष आवहिं जाहीं। ३॥
आदि-अंत-मधि लखे न कोई |
दादू देखे अचरज हो ||५॥
( १२७ )
राम रस मीठा रे, कोइ पीते साधु सुजाण ।
सदा रस पीवै प्रेमसूँ , सो अबिनासी प्राण ॥ टेक ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥089५86॥79.00॥
4२८ भजन-संग्रह भाग २
नीजीजीजी ली टी ली अली डीजल हल न्
इहि रस मुनि लागे सत्रे, ब्रह्मा-बिसुन-महेस |
सुर-नर साधू-संत जन, सो रस पीते सेस ॥१॥
सिध-साधक जोगी-जती, सती सब्र सुखदेव |
पीवत अंत न आवई, ऐसा अलख अमेव ॥२॥
इहि रस राते नामदेव, पीपा अरु रेदास ।
पिवत कबीरा ना थक््या, अजहूँ प्रेम पियास ॥३॥
यह रस मीठा जिन पिया, सो रसही माहिं समाइ।
मीठे मीठा मिलि रह्या, दादू अनतन जाइ ॥9॥
(१२८ )
सोई सुहागनि साँच सिंगार।
तन-मन लाइ भज भरतार |टेक।
भाव-भगत प्रेम-ले लाबै |
नारी सोई सुख पात्र ॥ १॥
सहज सँतोष सील जब आया।
तब्र नारी नाह अमोलिक पाया || २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
दादूदयाल १२५९
तन मन जोबन सौंपि सब दीन््हा।
तब कंत रिझ्नाइ आप बस कीन्हा|। ३ ॥
दादू बहरि बियोग न होई।
पिवसूँ प्रीति सुहागनि सोई॥ 9 ॥
( १२९ )
तब हम एक भये रे भाई।
मोहन मिल साँची मति आई ॥| टेक॥
पारस परस भये सुखदाई।
तब दुनिया दुरमत दूरि गमाई॥ १ ॥
मल्यागिरी मरम मिलि पाया।
तब बंस-बरण-कुल भरम गँवाया ॥ २ ॥
हरि जल नीर निकट जब आया।
तब बूँद बूँद मिल सहज समाया ॥ ३ ॥
नाना भेद भरम सब भागा।
तब दादू एक रंगे रँग छागा || 9 ॥
भ० भा० २-५---
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१३० भजन-संग्रह भांग २
( १३० )
इत है नीर नहावन जीग।
अनतहिं भरम भूला रे लोग ॥टेक॥
तिहि. तटि न्हाये निर्मल हो३ ।
बस्तु अगोचर ठे रे सोइ॥ १॥
सुघट घाट अरु तिरिबों तीर ।
बैठे तहाँ जगत-गुर पीर॥ २॥
दादू न जाणै तिनका भेत्र।
आप लखावे अंतर देव॥ ३॥
( १३१ ) माली गोड़ी
मेरा मेरा छोड. गँँवारा,
सिरपर तेरे सिरजनहारा।
अपने जीव बिचारत नाहीं,
क्या ले गइत्आा बंस तुम्हारा |टेक|॥
तब मेरा कत करता नाहीं,
आवत है हंकारा।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
दावृदयालक १३१
काल-चक्रसूँ खरी परी रे,
बिसर गया पर-बारा॥ १ ॥
जाइ तहाँ का संयम कीजै,
बिकेट पंथ गिरघारा।
दादू रे तन अपना नाहीं,
तो कंस भयो सँसारा॥ २॥
( १३२ ) कल्यान
जगसे कहा हमारा । जब देख्या नर तुम्हारा ॥टेक॥
परम तेज घर मेरा | सुख-सागर माहिं बसेरा ॥ १ ॥
झिलिमिलि अति आनंदा | पाया परमानंदा || २ ॥
जोति अपार अनंता । खेलें फाग बसंता || ३ ॥
आदि अंत असथाना | दादू सो पहिचाना ॥ ४ ॥
( १३३ ) कान्हड़ा
आब पियारे मीत हमारे ।
निस-दिन देखूँ पाँव तुम्हारे टेक
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१8३२ भजन-संग्रह् भाग २ $
सेज हमारी पीव सँवारी।
दासि तुम्हारी सो धन बारी || १॥
जे तुझ पाऊँ अंग लगाऊँ।
क्यूँ समझाऊँ बारण जाऊँ।॥ २॥
पंथ. निहारूँ बाट सँवारूँ।
दादू तारूँ तन मन वारूँ॥ ३ ॥
( १३७ ) केदारा
अरे मेरा अमर उपावणहार रे |
खालिक आशिक. तेरा ॥टेका।
तुमसूँ. राता तुमसूँ माता ।
तुमसूँ छागा रंग रे खाल्कि | १ ॥
तुमसूँ खेला वुमसूँ. मेला ।
तुमसँ प्रेम-सनेह रे खालिक |॥ २ ||
तुमसूँ . छेणा तुमसूँ देणा।
तुमहींसूँ रत होइ रे खालिकि || ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥9.00॥
दादुदयाल १४३
खालिक मेशसा आसिक तेरा।
दादू अनत न जाइ रे खालिक|॥ ४ ॥
( १३५ )
बटाऊ रे चलना आज कि काल |
समझ न देखे कहा सुख सोबे,
रे मन राम सँभाल |टेक॥
जेस तरबर॒ बिरख बसेरा,
पंखी . बैठे आइ।
ऐसे यह सत्र हाट पमारा,
आप आप के जाइ॥ १॥
कोइ नहिं तेरा सजन सँगाती,
जिनि खोते मन मूल |
यह संसार देखि मत भूले,
सबही सेंबल फूछ | २॥
तन नहिं तेरा, धन नहिं तेरा, ;
कहा रद्यो इहिं लागि।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥०४८॥089५86॥79.00॥
१३४७ भजन-संग्रह भाग २
दादू हरि बिन क्यूँ खुख सोचे,
काहे न देखे जागि॥ ३ ॥
(१३६ )
कोइ जाने रे मरम माघइया केरी |
कैसे रहे करे का सजनी प्राण मेरो ॥टेक॥
कौण बिनोद करत री सजनी,
कौणनि संग. बसेरी ।
संत-साध गति आये उनके,
करत जु प्रेम घनेरों॥ १॥
कहाँ. निवास बास कहाँ,
सजनी गन तेरो।
घट-घट.. माहें. रहे निरंतर,
ये दादू नेरो॥ २॥
( १३७ ) मारू
क्यों बिसरे मेरा पीव पियारा।
जीवकी जीवन प्राण हमारा ॥टेक॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
दादूदयाल १३७
क्यौंकर जीवे मीन जल बिदुरें,
तुम बिन प्राण सनेही |
चिंतामणि जब करतें छूटे,
तब दुख पावे देही ॥ १॥
माता बालक दूध न देबै,
सो कैसे करि पीबे।
निरघनका घन अनत भुलाना,
सो कैसे करि जीवै॥ २॥
बरखहू राम सदा सुख अमरित,
नीझर॒ निरमल धारा।
प्रम फियाहा भर भर दीजे,
दादू दास तुम्हारा॥ ३ ॥
( १३८ )
कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे।
पित्र बिन देखें जीव जावै रे ॥टेक।॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१३६ भजन-संग्रह' भार १२
ब्रित हमारी सुनो सहेली।
पित्र बिन चेन न आत्रै रे॥
ज्यों जल मीन भीन तन तब्ठफै |
पिव बिन बच्नर बिहावे रे॥ १ ॥
ऐसी प्रीति प्रेमको लागे।
ज्यों पंखी पीर सुनावै रे॥
त्यों मन मेरा रहें निसबासुर ।
कोई पीयकूँ आणि मिञत्रै रे ॥ २ ॥
तो मन मेरा घीरज धरई।
कोइ आगम आणि जणावै रे ॥
तो सुख जीव दादूका पावे |
पल पिवर्जी आप दिखाते रे॥ ३ ॥
( १३९ )
जागि रे सब्र रेण बिहाणी।
जाइ जनम अँजुलीको पाणी ॥टेक॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/5॥099५86॥79.00॥॥
दादूदयाल १३७
घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावे।
जे दिन जाइ सो बहुरि न आबे ॥ १॥
सूरज-चंद. कहें. समझाड़ |
दिन-दिन आब घटती जाइ॥ २ ॥
सखर-पाणी तखर-छाया |
निसदिन काल गरासै काया।। ३ ॥
हंस बठाऊ प्राण पयाना।
दादू आतम राम न जाना || ४॥
(१४० ) रामकली
अहो नर नीका है हरिनाम |
दूजा नहीं नॉउ बिन नीका, कहिले केवल राम |टेक।
निरमल सदा एक अबिनासी, अजर अकल रस ऐसा
टृढ़ गहि राखि मूल मन माही, निरख देखि निज कैसा
यह रस मीठा महा अमीरस, अमर अनूपम पीवे।
राता हहै प्रेमसूँ माता, ऐसे जुगि जुगि जीवे | २ |॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१३८ भजन-संग्रह् भाग २
दूजा नहीं और को ऐसा, गुर अंजन करि सूझे।
दादू मोटे भाग हमारे, दास बमेकी बूझे ॥ ३ ॥
( १४१ )
पंडित राम मिले सो कीजै।
पढ़ि-पढ़ि बेद पुराण बखाने,
सोई तत कहि दीजै ॥ठेक॥
आतम रोगी बिषम ब्रियाधी,
सोइ करि ओऔपब सारा।
परसत प्राणी होई परम सुख,
छूटे सब संसारा ॥ १॥
ये गुण इंद्री अगिनि अपारा,
तासन जले सरीरा।
तन-मन सीतल होइ सदा सुख,
सो जह नाबौ नीरा ॥ २॥
सोई मारग हमहिं बताबौ,
जिहि पँथ पहुँचैं पारा।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
दादूदयाल १६९
भूल न परे उल्ठ नहिं आवे,
सो कुछ करद ब्रिचारा ॥ ३॥
गुर उपदेस देहु कर दीपक,
तिमर मिटे सब सूच्े ।
दादू सोई पंडित ग्याता,
राम-मिलनकी बूझे ॥ ४ ॥
( १४२ ) आसावरी
तूँहीं मेरे रसना तूँहीं मेरे ब्रेना ।
तूँहीं मेरे ख्वना तूँहीं मेरे नेना॥।टेक।।
तूँहीं मेरे आतम कँत्रल मँझारी ।
तूँहीं मेरे मनसा तुम्ह परिवारी॥१॥
तूँहीं मेरे मनहीं, तूँहीं मेरे साँसा ।
तूँहीं मेरे सुरतैं प्राण निवासा ॥२॥
तूँहीं मेरे नख-सिख सकल सरीरा ।
तूँहीं मेरे जिय रे ज्यूँ जल नीरा ॥३॥
तुम्ह ब्रिन मेरे और कोई नाहीं |
तूँहीं मेरी जीवनि दादू माँढी ॥॥४॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥09५86॥79.00॥॥
१४० भजन-संग्रह भाग २
बाबा नाहीं दूजा कोई।
एक अनेकन नाँत्र तुम्हारे, मोपें और न होई ॥टेक।
अलख इलाही एक तँ, वहीं राम रहीम |
तूँहीं मालिक मोहना, कैसो नाँउ करीम ॥ १ ॥
सार सिरजनहार तँ, तू. पावन तूँ पाक ।
तूँ काइम करतार तेँ, तूँहरिहाज्ञिरआप ॥ २॥
रमिता राजिक एक तूँ, तेँ सारँग सुबहान ।
कादिर करता एक तँ, तूँ साहिब सुछतान ॥ ३ ॥
अविगत अछह एक तूँ, गनी गुसाई एक ।
अजब अनूपम आप है, दादू नाँव अनेक ॥ 9 ॥
( १४४ ) देवगंचार
मन मूरिखा तैं यौंहीं जनम गँवायों।
सारकेरी सेवा न कीन्हीं,
इहि कलि काहेकूँ आयौ ॥टेक॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
दादूदयाल १४१
मकबरा या आप अर की बम थ
जिन बातन तेरौ छूटिक नाहीं
सोई मन तेरो भायौ।
कामी है त्रिषयासंग लाग्यो,
रोम रोम लपटायौ ॥ १॥
कुछ इक चेति बिचारी देखो,
कहा पाप जिय लायौ।
दादूदास भजन करि लीजें
सुपनि जग डहकायो ॥ २॥
( १४५ ) परज
नूर रह्या भरपूर, अमीरस पीजिये।
रस मोहेँ रस होइ, छाहा लीजिये ॥टेक॥
परगट तेज अनंत, पार नहिं पाइये।
झिलिमिलि झिलिमिलि होइ, तहाँ मन लाइये || १ ॥
सहजैं सदा प्रकास, ज्योति जल पूरिया |
तहाँ रहै निज दास, सेवग सूरिया | २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
१४२ भजन-संग्रह भाग २
>> ५>> >>... ५ल्+>ल्वलच्क व जक् जज चलन डट १ ह +ह+++न जल जलजप्ट विजन
सुख-सागर वार न पार, हमारा बास है ।
हंस रहें ता माहिं, दादू दास है॥ ३॥
( १४६ ) डोड़ी
तूँ साँचा साहिब मेरा।
करम करीम कृपाल निहारी, मैं जन बंदा तेरा ॥टेक॥
तुम दीवाान सबहिनकी जानों, दीनानाथ दयाला |
दिखाइ दीदार मौज बंदेकूँ, काइम करौ निहाला ॥
मालिक सच्चै मुल्किके सार, समरथ सिरजनहारा ।
खैर खुदाइ खलकमें खेलत, दे दीदार तुम्हारा ॥
मैं सिकस्ता दरगह तेरी, हरि इजूर तेँ कहिये ।
दादू द्वारे दीन पुकारै, काहे न दरसन लहिये ॥
( १४७ ) बिलावल
सोई साध-सिरोमणी, गोबिंद गुण गावे ।
राम मजै बिषिया तजै, आपा न जनावे ॥|टेक॥
मिथ्या मुख बोले नहीं, पर-निंद्या नाहीं ।
ओऔगुण छोड़े गुण गहै, मन हरि-पदमाईी || १ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
दादूदयाल १४३
निरबरी सत्र आतमा, पर आतमजाने।
सुखदाई समता गहै, आपा नहिं आने ॥ २ ॥
आपा पर अंतर नहीं, निरमछ निज सारा ।
सतबादी साचा कहै, लैलीन बिचारा ॥ ३ ॥
निरमे भज न्यारा रहै, काहू लिपत न होई ।
दादू सब्र संसारमें, ऐसा जन कोई ॥ ४॥
( १४८ ) गोरी
हिंदू तुकक न जाणों दोइ।
सार सबका सोई है रे,
और न दूजा देखों कोइ |टेक॥
कीट-पतंग.. सब जोनिनमें,
जल-पल संगि समाना सोड ।
पीर पैगंबर. देवा-दानव,
मीर-मलिक मुनि-जनकों मोहि|| १ -
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
पृ७७ भजन-संग्रह भाग २
या शा सी सा की आज आन आय जम
करता है रे सोई चीन्हों,
जिन वै क्रोध करे रे कोइ |
जैसे आरसी मंजन कीजै,
राम-रहीम देही तन धो ॥ २ ॥
साँइ्केरी सेत्रा.. कीजै,
पायो धन काहेकौं खोइ |
दादू रे जन हरि भज लीजें,
जनम जनम जे सुरजन होइ || ३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
रिदास पथ
रैदास
( १४९ )
गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ।
गावनहार को निकट बताऊँ ॥ठेक॥
जबलग है या तनकी आसा,
तबलग करे पुकारा।
जब मन मिल्यौ आस नहिं तनकी,
तब को गावनहारा ॥ १॥
जबलग नदी न समुद समावे,
तबलग बढ़े हँकारा।
जब मन मिल्यौ राम-सागरसों,
तब यह मिटी पुकारा | २॥
जबलग भ्रगति मुकतिकी आसा,
परम तत्व सुनि गावे।
जहँ-जहँ आस घरत है यह मन,
तहँ-तहँ कछू न पाव॥ ३॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१४६ भजन-संग्रहद्द भाग २
छाड़े आस निरास परमपद,
तब सुख सति कर होई।
कह रैदास जासों और करत है,
परम तल अब सोई॥ ४॥
(१५० )
ऐसो कछु अनुभच कहत न आबे। हे
साहिब मिले तो को बिलगाबे | ठेक॥
सबमें हरि है हरिमें सब है,
हरि. अपनो जिन जाना।
साखी नहीं और कोइ दूसर,
जाननहार सयाना ॥ १ ॥
बाजीगरसों. राचि रहा,
बाजीका मर्म न जाना।
बाजी झूठ साँच बाजीगर,
जाना मन पतियाना ॥ २ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥०॥०४॥८5॥0५86॥9.00॥॥
रैदास ३४७
मन थिर होइ तो कोइ न सूझै,
जाने जाननहारा |
कह रेदास त्रिमल बिबेक सुख,
सहज सरूप सँमभारा ॥ ३॥
(१५१ )
जतब्र रामनाम कहि. गावैगा,
तब भेद अमेद समावैगा |टेक॥
जे सुख ह्ले या रसके परसे,
सो सुख का कहि गाबैगा | १ ॥
गुरु परसाद भई अनुभौ मति,
बिषघ अमरित सम धावैगा || २॥
कह रेदास मेटि आपा-पर,
तब वा टठौरहि पावैगा || ३॥
( १५२ )
रामा हो जग जीत्रन मोरा।
तूँ न बिसारि राम में जन तोरा ||टेक||
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
१४८ भजन-संग्रह भाग २
जिम मन भम न न पम्प भर भीम न भी अप मय पी ली जी रा नर भी की
संकट सोच पोच दिनराती।
करम कठिन मोरि जाति कुजाती ॥ १ ॥
हरहु बिपति भावे करहु सो भाव |
चरण न छाड़ों जाब सो जाब ॥ २॥
कह ॒रेंदास कछु देहु अलंबन |
बेगि मिले जनि करो बिलंबन || ३ ॥
( १५३ )
अब हम खूब वतन घर पाया।
ऊँचा खेड़ा सदा मेरे भाया ॥टेक॥
बेगमपूर सहरका. नाम
फिकर अँदिश नहीं तेहि ग्राम ॥ १ ॥
नहिं जहाँ साँसत लानत मार |
हैफ न खता न तरस जवाल ॥ २ ॥
आवब न जान रहम ओजूद |
जहाँ गनी आप बसे माबूद ॥ ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
रैदास १३४५९
आय पक था आज जा जय न से चीन से की यम का आप अभी
जोई सैलि करे सोई भावै।
मरहम महलमे को अटठकाते ॥ ४ ॥
कह रेदास खलास चमारा ।
जो उस सहर सो मीत हमारा ॥ ५ |
(१५७ )
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥ठेका
धनतर दूध जो बछरू जुठारी।
पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥ १ ॥
मलयागिर बेघियो मभुअंगा।
बिष अमृत दोड एके सगा ॥ २॥
मन ही पूजा मने ही धूप।
मन ही सेऊँ सहज सरूप ॥ ३॥
पूजा अरचा न जानूँ तेरी।
कह रेदास कबन गति मेरी ॥ ४ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥089५86॥79.00॥॥
१७० भजन-संग्रह्द भाग २
की चीन बन चमक
(१५५ )
देहु कछाली एक पियाला।
ऐसा अबधू है मतवाला |टेक॥
हे रे कल्ाली तें क्या क्या।
सिरका-सा तें प्याला दिया ॥ १ ॥
कहै कलाली प्याला देऊ।
पीवनहारेका सिर लेऊकँ॥ २॥
चंद-सूर दोड सनमुख होई।
पीवै प्याझ मै न कोई॥ ३॥
सहज सुनमे भाठी सखे।
पावै रेदास गुरुमुख दखे॥ 9 ॥
( १५६ )
पार गया चाहै सब कोई।
रहि उर बार पार नहिं होई ॥टेक॥
पार कहैँ उर वारसे पारा।
बिन पद परचे खञ्रमै गँवारा ॥ १ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
रैदास १ण१
पार परम पद मंझ मुरारी |
तामें आप रमे बनवारी ॥ २॥
पूरन ब्रह्म बसै सब ठाई।
कह रेदास मिे सुख साई || ३ ॥
( १५७ )
यह अंदेस सोच जिय मेरे।
निसिबासर गुन गाऊँ तेरे ॥ठेक॥
तुम चिंतत मेरी चिंतहु जाई।
तुमचिंतामनि हौ इक नाई ॥ १ ॥
भगत-हैत का का नहिं कीन्हा।
हमरी बेर भये बलहीना ॥ २ ॥
कह रेदास दास अपराधी ।
जेहि तुम द्वो सो भमगति न साधी॥ ३ ॥
(१५८ )
जो तुम तोरौ राम मैं नाहिं तोरों |
तुमसे तोरि कबनसे जोरों ॥टेक ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥०४॥८5॥0५86॥79.00॥॥
१७०३: भजन-संप्र् भाग २
तीरयथ बरत न करों अँदेसा।
तुम्हरे चरन कमल क भरोसा ॥ १ ॥
जहाँ जहाँ जाओं तुम्हरी पूजा।
तुम-सा देव और नहिं दूजा | २॥
मैं अपनो मन हरिसों जोरों |
हरिसों जोरि सबनसों तोरबों | ३ ॥
सबही पहर तुम्हारी आसा।
मन क्रम बचन कहै रेदासा ॥ ४ ॥
(१५९, )
सो कहा जाने पीर पराई।
जाके दिलमें दरद न आई ॥टेक)
दुखी दुद्दागिनि द्वोइ पियहीना,
नेह निरति करि सेव न कीना |
स्थाम-प्रेमका. पंथ. दुह्ेला,
चलन अकेला कोइ संगन हेला || १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
रैदास १७३
सुखकी सार सुहागिनि जाने,
तन-मन देय अंतर नहिं आने |
आन सुनाय और नहीं भाषै,
राम रसायन रसना चाखे |२॥
खालिक तौ दरमंद जगाया,
बहुत उमेद जवाब न पाया।
कह रैदास कब्नन गति मेरी,
सेवा बंदगी न जानूँ तेरी ॥ ३॥
( १६० ) गोड़
आज दिवस लेऊँ बलिहारा।
ह मेरे घर आया रामका प्यारा ॥ठेक॥
ऑँगन बँगला भवन भयो पावन।
हरिजन बैठे हरिजस गावन ॥ १॥,
करूँ. डंडबत चरन पखारूँ।
तन-मन-घन उन ऊपरि वारूँ॥ २॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१७४ भजन-संग्रह भाग २
कथा कहें. अरु अरथ बिचारे।
आप तरैं औरनको तारें॥३॥
कह रैदास मिलें निज दासा।
जनम जनमके कार्टें पासा ॥ ४॥
(१६१ )
कबन भगतिते रहे. प्यारो पाइनो रे
घर घर देखों मैं अजब अभावनो रे ॥टेका॥
मैला मैला कपड़ा केता एक धोऊँ।
आये आवे नींदहि कहाँलें सोऊँ ॥ १ ॥
ज्यों ज्यों जोड़े त्यों त्यों फाटे।
झूठे सबनि जरै उठि गयो हाटे ॥ २॥
कह रैदास परो जब लेख्यो।
जोई जोई कियो रे सोई सोई देख्यौ॥ ३ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥09५86॥79.00॥॥
रैदास १०
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( १६२ )
अब कैसे छुटे नाम रट छागी |[टेक|
प्रभुजी, तुम चंदन, हम पानी |
जाकी अँग अँग बास समानी ॥ १॥
प्रभुजी, तुम घन बन, हम मोरा |
जैसे चितवत चंद चकोरा ॥२॥
प्रभुजी, तुम दीपक, हम बाती |
जाकी जोति बरें दिन राती ॥ ३॥
प्रमुजी, तुम मोती, हम धागा।
जैसे सोनहि मिलत खुहागा ॥ ४ ॥
प्रभुजी, तुम स्वामी, हम दासा |
ऐसी भगति करे रेदासा ॥ ५॥
-॥*$8-*+%-
9 58990 396] 9॥0॥ | ९(0/9/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१७५६ भजन-सग्रह भाग २
ट्रक आस सी आय आज आन सी की आओ आज आम
(१६३ )
हरि समान दाता कोउ नाहीं।
सदा बिराजैं संतनमाहीं ॥ १ ॥
नाम बिसंभर, बिस्व॒ जियावें ।
साँझ बिहान रिजिक पहुँचावें || २॥
देश अनेकन मुखपर ऐने।
औगुन करें सो गुन करि मानें ॥ ३॥
काहू भाँति अजार न देई।
जाहीकों अपना कर लेई॥ 9॥
घरी घरी देता दीदार।
जन अपनेका खिजमतगार ॥ ५॥
तीन लोक जाके औसाफ़।
जनका गुनह करे सब माफ़ ॥ ६॥
गरुवा ठाकुर है रघुराई।
कहैँ मछक क्या करूँ बड़ाई ॥ ७॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥09५86॥79.00॥॥
मलुकदास १७५७
5 >5 ले ज+ , हू» “डे अंजलि लत २2००८ ०४ ४ २५७००८४७८ ०८७ १-१४/ ०२ हिल
( १६७ )
सदा सोहागिन नारि सो, जाके राम भतारा ।
मुख माँगे सुख देत हैं, जगजीवन प्यारा ॥ १॥
कबहुँ न चढ़े रैंडपुरा, जानै सब कोई |
अजर अमर अब्रिनासिया, ताकौ नास न होई॥ २॥
नर-देही दिन दोयकी, सुन गुरुजन मेरी ।
क्या ऐसोंका नेहरा, मुणु बिपति घनेरी ॥ ३॥
ना उपजै ना बीनसै, संतन सुखदाई।
कहैँ मद्दक यह जानिके, मैं प्रीति लगाई ॥ ४ ॥
(१६५ )
अब तेरी सरन आयो राम॥ १॥
जबे सुनियो साधके मुख, पतित-पावन नाम ॥ २॥
यही जान पुकार कीन्ही, अति सतायो काम || ३॥
बिषयसेती भयो आजिज कह्ट मढक गुलाम ॥ ४॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥9.00॥॥
१७५८ भजनस्संग्रह भाग र
( १६६ )
साँचा त् गोपाल, साँच तेरा नाम है।
जहवाँ सुमिरन होय, घन्य सो ठाम है ॥ १ ॥
साँचा तेरा भगत, जो तुझको जानता।
तीन लोककौ राज, मने नहिं आनता ॥ २॥
झूठा नाता छोड़ि, तुझे लव लाइया।
सुमिरि तिहारो नाम, परम पद पाइया॥ ३॥
जिन यह ठाहा पायो, यह जग आय कै |
उतरि गयो भवपार, तेरों गुन गाइ कौी॥ 9 ॥
तुही मातु, तुही पिता, तुही हित-बंधु है |
कहत मद्दका दास, बिना तुझ धुंध है॥ ५॥
( १६७ )
कौन मिलवै जोगिया हो,
जोगिया बिन रह्यो न जाय |॥टेक॥
मैं जो प्यासी पीवषकी,
रटत फिरों पिउ पीब।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मलकदास १५९
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो,
तो तुर्त निकासूँ जीव ॥ १॥
गुरुजी अहेरी में हिरनी,
गुरु मारें प्रेमका बान।
जेहि लागे सोई जानई हो,
और दरद नहिं जान ॥ २॥
कहैं मछ॒क सुनु जोगिनी रे,
तनहिंमें. मनहिं. समाय |
तेरे प्रेमेके कारने जोगी,
सहज मिला मोहिं आय॥ ३॥
( १६८ )
तेश मैं दीदार-दिवाना।
घड़ी घड़ी तुझे देखा चाहूँ,
सुन॒ साहेब रहमाना ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१६० भजन-सम्रह भाग २
हुआ अल्मस्त ख़बर नहिं तनकी,
पीया प्रेम-पिआलछा |
ठाढ़ होलँ तो गिरि गिरि परता,
तेरे रँग मतबाला ॥ २॥
खड़ा रहूँ. दरबार तुम्हारे,
ज्यों घरका बंदाजादा।
नेकींकी कुलछाह सिर दीये,
गले. पैरहन साजा॥ ३॥
तौजी और निमाज न जानूँ,
ना जानूँ धरि रोजा।
बाँग जिकर तबहीसे बिसरी,
जब्से यह दिल खोजा॥ ४॥
कह मद्धक अब कजा न करिहों,
दिलहीसों दि छाया।
मक्का हज हियेमें देखा,
पूरा मुरसिद - पाया॥ ५॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मलकदास १६१
( १६९ )
दरद-दिवाने बावरे, अल्मस्त फकीरा।
एक अकीदा ले रहे, ऐसे मन-घीरा। १ ॥
प्रेमी पियाला पीत्रते, बिसरे सत्र साथी ।
आठ पहर यों झूमते, ज्यों माता हाथी ॥ २ ॥
उनकी नज़र न आवते, कोइ राजा रंक।
बंधन तोड़े मोहके, फिरते निहसंक ॥ ३॥
साहेब मिल साहेब भये, कछु रही न तमाई ।
कहैं मढछ॒क तिस घर गये, जहँ पवन न जाई ॥ ४ ॥
(१७० )
हमसे जनि लागे तू माया।
थोरेसे फिर बहुत होयगी,
सुनि पेहेँ रखुराया ॥ १॥
अपनेमें है साहेब हमारा,
अजहूँ. चेतु दित्रानी।
काह जनके बस परि जैहौ,
भरत मरहुगी पानी॥ २॥
भ० भा० २--६--
9 58090 3290]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१६२ भजन-पंग्रह भाग २
तर है चितै लाज करु जनकी,
डारू हाथकी फॉँसी।
जनतें तेरो जोर न लहिहै,
रच्छपाल अबिनासी ॥ ३ ॥
कहै मदछूका चुप करु ठंगनी,
औगुन॒ राखु दुराई।
जो जन उबरे राम नाम कहि,
तातें कछु न बसाई॥ ५॥
( १७१ )
नाम हमारा ख़ाक है, हम खाकी बन्दे |
ख़ाकहीं ते पैदा किये, अति ग्राफ़िल गन्दे ॥ १ ॥
कबहूँ न करते बंदगी, दुनियामें भूले।
आसमानको ताकते, घोड़े चढ़ि फूले॥ २॥
जोरू-लड़के खुस किये, साहेब बिसराया |
राह नेकीकी छोड़िके, बुरा अमल कमाया ॥ ३ ॥
हरदम तिसको याद कर, जिन वजूद सँत्ररा ।
सत्रे खाक दर खाक है, कुछ समुझ गँवारा || ४ |॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
मलकदास १६३
हाथी घोड़े खाकके, खाक खानखानी |
कहैँ मद्क रहि जायगा, औसाफ निसानी || ५ ||
( १७२ )
ऐ अजीज ईमान तू, काहेको खोबे।
हिय राख दरगाहमें, तो प्यारा होवे॥ १ ॥
यह दुनिया नाचीज़के, जो आसिक होगे ।
भूले जात खोदायको, सिर धुन घुन रोबे | २ ॥
इस दुनिया नाचीज़के, ताल्बि हैं कुत्ते |
लऊज्ज्ञतमें मोहित हुए, दुख सहे बहुते || ३ ॥
जबलगि अपने आपको, तहकीक नजाने |
दास मढ्का रब्बको, क्योंकर पहिचाने || ४ ॥
( १७३ 2)
गरब न कीजै बावरे, हरि गरब प्रहारी ।
गखहिंतें राबन गया, पाया दुख भारी॥ १॥
जरन खुदी रघुनाथके, मन नाहिं सुद्दाती |
जाके जिय अभिमान है, ताकी तोरत छाती ॥ २ ॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१६४ भजन-संप्रह भाग रे
एक दया ओर दीनता, ले रहिये भाई।
चरन गहौ जाय साधके, रीझैं रघुराई ॥ ३ ॥
यही बड़ा उपदेस है, परद्वोह न करिये।
कह मत्ठक हरि सुमिरिके, भौसागर तरिये | 9 ॥
( १७४ )
ना वह रीझै जप-तप कीन्हे, ना आतमको जारे।
ना वह रीझे घोती टाँगे, ना कायाके पखारे॥
दाया करे धरम मन राख, घरमें रहे उदासी ।
अपना-सा दुख सबका जानें, ताहि मिले अबिनासी॥
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँडें गरब गुमाना ।
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मद्ठक दित्राना ॥
(१७५ )
राम कहो राम कहो, राम कहो बावरे |
अवसर न चूक भोंदू, पायो भलो दाँत रे ॥ १ ॥
जिन तोकों तन दीन्हों, ताकी न मजन कीन्हो |
जनम सिरानो जात, लोहे कैसों ताव रे॥ २॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
मलऋदाप १६७
ज्ख्््न्््न्क लि थ़िख़२४घ७़ि़ श़४ ओंऑओऑ िओि > ४ जल सतत 2७त+>+ल लत * तल +ट ४०
रामजीको गाय गाय, रामजीको रिश्ञात्र रे।
रामजीके चरन-कमल, चित्तमाहिं टावर रे ॥ ३ ॥
कहत मद्धकदास, छोड़ दे तें झूठी आस ।
आनँद मगन होइके, हरिगुन गाय रे | 9 ॥
( १७६ )
दीनबन्धु दीनानाथ मेरी तन हेरिये ॥ टेक ॥
भाई नाहिं, बन्धु नाहिं, कुटुम-परिवार नाहिं,
ऐसा कोई मित्र नाहिं, जाके डिंग जाइये || १ ॥
सोनेकी सलेया नाहिं , रूपेका रुपैया नाहिं,
कौड़ी-पैसा गाँठ नाहिं , जासे कछु लीजिये ॥ २ ॥
खेती नाहिं, बारी नाहिं , बनिज-ब्योपार नाहिं ,
ऐसा कोई साह नाहिं, जासों कछु माँगिये ॥ ३ ॥
कहत मदछकदास, छोड़ि दे पराई आस,
रामबनी पाइके अब काकी सरन जाइये ॥ ४ ॥
च्
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१६६ * भजन-प्तग्रह भाग २
/3८५३४०० तल कट जज तट चल चल 5
चरनदास
( १७७ ) सीठना
सुन सुरत रँगीली हो कि हरि-सा यार करो ॥टेक॥
जब छूटे बिधन ब्रिकार कि भौ-जल तुरत तरो ॥ १॥
तुम त्रेुन छैल बिसारि गगनमें ध्यान धरो ॥२॥
रस अमरित पीत्रों हो कि बिषया सकल हरो ॥३॥
करि सील-संतोष सिँगार छिमाकी माँग भरो ॥9॥
अब पाँचों तजि लगवार अमर घर पुरुष बरो ॥५॥
' कहें चरनदास गुरु देखि पियाके पाँव परों ॥६॥
( १७८ )
टुक रंगमहलमें आव कि निरगुन सेज बिछी ।
जहँ पवन-गवन नहिं होय जहाँ जा सुरति बसी ॥ १॥
जहाँ त्रमुन बिन निरबान जहाँ नहिं सूर-ससी |
जहँ हिल-मिलकै सुख मान मुकतिकी होय हँसी॥२॥
जहूँ पिय-प्यारी मिलि एक कि आसा दुई नसी ।
जहेँ चरनदास गलतान कि सोमा अधिक ल्सी॥३ ||
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
चरनदास १६७
( १७९ )
टुक निरगुन छेला सूँ, कि नेह लगाव री।
जाकौ अजर अमर है देस, महल बेगमपुर री ॥१॥
जहँ सदा सुहागिन होय, पियासूँ मिलि रहु री ।
जहाँ आवागवन न होय, मुकति चेरी तेरी ॥२॥
कहैं चरनदास गुरु मिले, सोई हाँ रु बौरी ।
तब सुखसागरके बीच, कलहरी हे रह री ॥३॥
( १८० ) हिंडोला देलो
तरसें मेरे नेन हेली, राम-मिलन कब होयगो ॥टेक॥
पियदरसन बिन क्यों जिऊँ री हेली, कैसे पाऊँ चैन ।
तीर्थ बर्त बहुतै किये री, चित दे सुने पुरान ॥१॥
बाट निहारत ही रहूँ री हेली, सुधि नहिं लीनी आय |
यह जोबन योंही चलो री, चाली जनम सिराय ॥२॥
बिरहा दल साजे रहै री हेली, छिन छिनमें दुख देहि।
मन लालनके बस परौ, भई भाक-सी देहि ॥३॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
१६८ भजन-संग्रह भाग २
गुरु सुकदेव कृपा करो जी हेली, दीजे ब्रिरह छुटाय |
चरनदास पियसँ मिले सरन तुम्हारी घाय ॥५॥
( १८१ )
मो ब्रिरहिनकी बात हेली, त्रिरहिन होइ जानिहै ।
नेन बिछोहा जानती री हेली, बरिरहै कीनन््हों घात |
॥ टेक ॥
या तनकूँ ब्रिरहा लगो री हेली, ज्यों घुन लागो काठ ।
निसदिन खाये जातु है, देखूँ हरिकी बाट ॥ १ ॥
हिरदेमें पात्रक जरें री हेली, तपि नेना भये लाल।
आसूँपर आसँ गिरें, यही हमारों हाठ॥ २॥
प्रीतम बिन कल ना परे री हेली, कहकल सब
अकुलहि |
डिगी परूँ, सत ना रहौ, कब्र पिय पकरें बाँहिं ॥३॥
गुरु सुकदेव दया करें री हेली, मोहि मिलावें छाल |
चरनदास दुख सब भर्जैं, सदा रहूँपति नाठ ॥५॥
9 58090 390] 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
3 मर का मिल की आ १६५९
( १८२ ) होली
प्रेमनगरके माहिं होरी होय रही ।
जब सों खेली हमहूँ चित दे,
आपनहूँको खोय रही ॥ १॥
तरहुतन कुछ अरु छाज मँवाई,
ह रही न कोई काम |
नाचि उठें, कभी गाबन छागैं,
भूले तन-पन-धाम ॥ २ ॥
बहुतनकी मति रंग रोँगी है,
जिनकी लछागौ प्रेम |
बहुतनकों अपनी सुधि नाहीं,
कौन करे अस नेम || ३॥
बहुतनकी गदगद ही बानी,
नैनन नीर ढराय ।
बहुतनको बौरापन लागो,
हॉकी कही न जाय ॥ ४॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
१७० भजन-संग्रह भाग २
0७० ५८०८७८०८०४८०८४०४८००८४१४८४८४०४४४ -०४८४०८ ००४, ४८५१६० ५१४ १६५०४४ ५ १०
प्रेमीकी गति प्रेमी जाने,
जाके छागी होय।
चरनदास उस नेहनगरकी,
सुकदेवा कहि. सोय ॥ ५॥
( १८३ ) मंगल
समझ रस कोइक पावै हो ।
गुरु बिन तपन बुझे नहीं, प्यासा नर जाबै हो ॥१॥
बहुत मनुष ढूँढ़त फिरें, अंधरे गुरु सेवें हो ।
उनहूँकों सूझे नहीं, औरनकों देवैं हो ॥२॥
अँपरेकों अँधरा मिले, नारीकों नारी हो।
हाँ फल केसे होयगा, समझें न अनारी हो ॥१॥
गुरु सिष दोउ एक से, एके ब्यवहारा हो।
गये भरोसे डूबिके वे, नरक मेँझारा हो ॥९॥
सुकदेव कहैं चरनदाससँ , इनका मत कूरा हो ।
ग्यान मुकति जब पाइये, मिले सतगुरु पूरा हो ॥५॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥
9 58090 3290]6 9॥0॥ | ९(0/0/५
चरनदास १७१
्ज्ज्््-तज्तज++त++++-++त++
वह पुरुषोत्तम मेरा यार |
नेह लगी टूटे नहिं तार ॥ १॥
तीरथ जाउँ न बर्त करूँ।
चरनकमलको ध्यान परूँ ॥ २॥
प्रानपियारे. मेरेहिं. पास |
बन बन माहिं न फिरूँ उदास॥ ३ ॥
पढूँ. न गीता-बेद-पुरान ।
एकहिं सुमिरूँ श्रीमगवान || ४ ॥
ओऔरनकों नहिं नाऊँ. सीस |
हरि ही हरि हैं बिस्वे बीस || ५।
काहकी नहिं. राखूँ आस ।
तल्ला काटि दई है फाँस ॥ ६॥
उद्यम करूँ, न राखूँ दाम।
सहजहिं हे रहें पूरन काम ॥ ७॥
॥६॥॥0॥9४॥८5॥09५86॥9.00॥
१७२ भजन-संग्रह भाग २
सिद्धि मुकति फल चाहोीं नाहिं |
नित ही रहूँ हरि संतन माहि ॥ ८ ॥
गुरु सुकदेव यही मोहिं दीन।
चरनदास आनंद लवलीन || ९ |
( १८५ ) हिंडोला
झूटत कोड कोइ संत गन हिंडोलने || टेक ॥|
पौन उमाह उछाह घरती सोच सावन मास |
टाजके जहाँ उड़त बगुले मोर हैं जग हाँस ॥१॥
हरप-सोक दोउ खंभ रोपे सुरत डोरी लाय।
त्रिरह पटरी बरठि सजननी उमँँग आबे जाय ॥२॥
सकल ब्रिकल तहँ देत झोके ब्रिपत गात्रनह्वार |
सखी बहुतक रंग राती रँगी पाँचों नार ॥३॥
नेन बादल उमँगि बरसे दामिनी दमकात |
बुद्धिकौ रहराव नाहीं, नेहकी नहिं जात ॥४॥
सुकदेब कहें, कोइ बढी झूल, सीस देत अकोर |
चरनदासा भये बौरे जाति-बरन-कुछ छोर ॥५॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
चरनदास १७३,
नमक का आ प छ अ सी का
टी
( १८६ ) बिहाग
साधो निंदक मित्र हमारा।
निंदककों निकटे ही राखों, होन न देजँ नियारा॥ १॥
पाछे निंदा करि अध धोबै, खुनि मन मिटे बिकारा ।
जैसे सोना तापि अगिनमें, निरमछ करे सोनारा [[२॥
घन अहरन कसि हीरा निबटे, कीमत लच्छ हजारा ।
ऐसे जाँचत दुष्ट संतकूं करन जगत उजियारा ॥३॥
जोग-जग्य जप पाप कटन हितु, करे सकल संसारा |
बिन करनी मम करम कठिन सब, मेटे निंदक प्यारा 8
सुखी रहो निंदक जग माँहीं, रोग न हो तन सारा |
हमरी निंदा करनेवाला, उतरै भवनिधि पारा ॥५॥
निंदकके चरनोंकी अस्तुति, भाखों बारंबारा।
चरनदास कहैं सुनियो साथो, निंदक साधक भारा ६
( १८७ ) परजञ
जिन्हें हरिभिगति पियारी हो !
मात-पिता सदन छुटें, छुट्टेँ छुत अरु नारी दो ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
१७४ भजन-संग्रह भाग २
्श्च्त्ल्ल्ल्््नल््क्ल्््ख्ख़्ख्ख्क्स्क्कखखककलकतजलजज चल जल तल न बज लत च लत लत लत
लेकभोग फीके लगैं, सम अस्तुति गारी हो |
हानि-लाम नहिं चाहिये, सब आसा हारी हो ॥२॥
जगसूँ मुख मोरे रहैं, करें ध्यान मुरारी हो ।
जित मनुवाँ लागो रहै, भइ घट डँजियारी हो ॥३॥
गुरु सुकदेव बताइया, प्रेमी गति भारी हो ।
चरनदास चारों बेदसूँ, औरे कछु न्यारी हो ॥४॥
( १८८ )
गुरु हमरे प्रेम पियायौ हो ।
ता दिन तें पल्टौ भयौ, कुल गोत नसायौ हो ॥१॥
अलम चढ़ौ गगने लगौ, अनहद मनछायौ हो ।
तेजपुंजजी सेजपै, प्रीतम गल छायौ हो ॥२॥
गये दिव्राने देसडे, आनँद दरसायौ हो।
सब किसिया सहजे छुटी, तप नेम भुलायौ हो ॥३॥
त्रेगुनतें ऊपर रहूँ, सुकदेव बसायो हो ।
चरनदास दिन रैन, नहिं तुरिया-पद पायो हो ॥४॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/9/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥089५86॥79.00॥॥
चरनदास १७५
(१८९ ) सोरठ
अब घर पाया हो मोहन प्यारा || टेक ||
लखो अचानक अज अबिनासी,
उधघरि गये दग तारा ॥ १॥
झूमि रहो मेरे आँगनमें,
टरत नहीं कहँ ठारा॥२॥
रोम रोम हिय माही देखो,
होत नहीं छिन न्यारा ॥३॥
भयो अचरज चरनदास न पैये,
खोज किये बहु बारा ॥ ४॥
( १५० ) काफी
कोइ दिन जीवै तौ कर गुजरान |
कहर गरूरी छॉँड़ि दिवाने,
तजो अकसकी बान ॥ १॥
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१७६ भजन-संग्रह भाग २
चुगली-चोरी अरु निंदा ले,
झूठ कपट अरु कान।
इनकूँ डारि गहैँ जत सत कूँ,
सोई अधिक सयान ॥ २॥
हरि हरि सुमिरी, छिन नहिं ब्रिसरौ,
गुरुसेवा मन ठानि।
साधुनकी संगति कर निस-दिन,
आये ना कछु हानि॥३॥
मुड़ी कुमारग, चलौ सुमारग,
पावी निज पुर बास।
गुरु सुकदेव चेताओतं तोकूँ,
समुझ्न॒ चरन हीं दास ॥ 9॥
7० अभकहेफरश 7
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गुरु नानक १७७
न रा
गुरु नानक
(१९१ )
राम सुमिर, राम सुमिर, एही तेरों काज है ॥टेक॥
मायाकौ संग त्याग, हरिजूकी सरन छाग।
जगत सुख मान मिथ्या, झूठो सत्र साज है ॥ १॥
सुपने ज्यों घन पिछान, काहेपर करत मान |
बारूकी भीत तैसें, बसुधाकौ राज है ॥२॥
नानक जन कहत बात, बिनसि जैहै तेरो गात।
छिन छिन करि गयौ काल्ह,तैसे जात आज है || ३॥
(१९२ )
सब कछु जीवतकौ ब्यौहार।
मात-पिता, भाई-छुत, बांध,
अरु पुनि यृहकी नारि ॥ १॥
तनतें प्रान होत जब न्यारे,
टेरत प्रेत पुकार |
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
बजट भजन-संग्रह्द भाग २
आध घरी कोऊ नहिं राख,
घरतें देत निकार | २॥
मृग-तृस्तना ज्यों जग रचना यह,
देखो ह॒दे. बिचार |
कह नानक, भजु रामनाम नित,
जातें होत उधार ॥ ३॥
(१९३ )
हों कुरबाने जाउँ पियारे, हों कुरबाने जाउँ |॥|टेक|
. हाँ कुरबाने जाउँ तिन््होँ दे, लैन जो तेरा नाउँ |
लैन जो तेरा नाउँ तिन्हाँ दे, हों सद कुरबाने जाउेँ। १॥
काया रँगन जे थिये प्यारे, पाइये नाउँ मजीठ ।
रंगनवाला जे रँगे साहिब, ऐसा रंग न डीठ ॥२॥
जिंनके चोलड़े रत्तड़े प्यारे,क्त तिन्हाँ दे पास ।
धूड़ तिन्हाँ को जे मिले जीको,नानकदी अरदास (३।
(१९४ )
मुरसिद मेरा मरहमी, जिन मरम बताया।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9४॥८5॥09५86॥79.00॥
गुरु नानक १७९
3१५७८ ७०४४७००१४१४१५००६०४१४०४६१४१४२४०४१४१४१४१७-४४१-४४१०४४४४४--४५४
दिल अंदर दीदार है, खोजा तिन पाया ॥ १॥
तसबी एक अजूब है, जामें हरदम दाना।
कुंज किनारे बैठिके, फेरा तिन््ह जाना ॥ २॥
क्या बकरी, क्या गाय है, क्या अपनो जाया |
सबकौ लोहू एक है, साहिब फ़रमाया ॥३॥
पीर पैग्रम्बर औलिया, सब मरने आया।
नाहक जीव न मारिये, पोषनकों काया ॥9॥
हिरिस हिये हैवान है, बसि करिले भाई |
दाद इलाही नानका, जिसे देवे खुदाई ॥५॥
(१९५ )
काहे रे बन खोजन जाई।
सरब निवासी सदा अलेपा,
तोही संग. समाई ॥ १॥
पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है,
मुकर माहिं जस छाई।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१८० भजन-संग्रह भाग २
तेसे ही हरि बसे निरंतर,
घट ही खोजा भाई ॥२॥
बाहर भीतर एके जानों,
यह गुरु ग्यान बताई ।
जन नानक बिन आपा चीन्हे,
मिटि न श्रमकी काई ॥३॥
(१९६)
प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे।
प्रेम-भगति निज नाम दीजिये,
द्याल अनुग्रह धारे ॥ १॥
सुमिरों चरन तिहारे प्रीतम,
हद. तिहारी आसा।
संत जनाँपै करों बेनती,
मन दरसनकौ प्यासा ॥ २॥
बिछुरत मरन, जीवन हरि मिच्ते
जनको दरसन दीजै।
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
गुरु नानक १८१
फनी न जी नम नम धीमी सी पट प च पी पा ये भी पी या या जी की जी भी कट पर पर धन भी चर भर शकी
नाम अधार, जीवन, धन नानक,
प्रभु मेरे किरषा कीजै ॥३॥
( १०७ )
अब में कौन उपाय करूँ।
जेहि बिधि मनको संसय छूटे,
भत्रनिधि पार परूँ ॥ १॥
जनम पाय कछु भत्रै न कीन्हों,
तातें अधिक डरू॥२॥
गुरुमत सुन कछु ग्यान न उपज्यौ,
प्युवत॒ उदर भरू ॥ ३॥
कह नानक, प्रभु बिरद पिछानौ,
तब हों पतित तरूँ।॥४ ॥
(१९८ )
या जग मीत न देख्यों कोई ।
सकल जगत अपने सुख लाग्यो
दुखमें. संग न होई ॥ १॥
दारान्मीत, संबंधी,
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/॥८5॥099५86॥79.00॥
१८२ भजन-संग्रह भाग २
सगरे धनसों छागे।
जबहीं निरधन देख्यो नरकों,
संग छाड़ि सब भागे | २॥
कहा कहूँ या मन बौरेकौं,
इनसों. नेह लगाया।
दीनानाथं सकलहू. भय-भंजन,
जस ताको बिसराया ॥ ३ ॥
स्वान-पूँछ ज्यों भयो न सूधो,
बहुत जतन मैं कीन्हों |
नानक लाज ब्रिरदकी राखौ
नाम तिहारो छीन््हों ॥ ४॥
( १६४७-३०
जो नर दुखमें दुख नहिं माने |
सुख-सनेह्र अरु भय नहिं जाके,
कंचन माठी जाने ॥ १॥
नहिं निंदा, नहिं अस्तुति जाके,
9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥॥
गुरु नानक १८३
लोभ-मोह-अभिमाना |
हरष सोकतें रहै नियारो,
नाहि,. मान-अपमाना || २ ॥
आसा-मनसा सकल त्यागिके,
जगतें. रहै. निरसा।
काम-क्रोध जेहि परसे नाहिन,
तेहिं घट ब्रह्म निवासा ॥ ३॥
गुरु किरपा जेहिं नरपै कीन्न्ही,
तिन यह जुगति पिछानी ।
नानक लीन भयो गोविंदसों,
ज्यों पानी संग पानी | 9 ॥
(-२०० )
यह मन नेक न कलह्मौ करे।
सीख सिखाय रह्यो अपना-सी,
दुर्मतितें. न ठरै॥ १॥
मद-माया-बस॒ भयो बावरो,
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9 58090 390]6 9॥0॥ | ९(0/0/५ ॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
१८४ भजन-संग्रह भाग २
च््च्ड्ल्जडिचिजल ल जल जल क् चीज जन तन ४न बल 3 ल 33 बीत ७3 जी 3लंतज+त जी त१ल+ी+ज+ वी लत >>
हरिजस नहिं. उच्रै।
करि. परपंच जगतके डहकै,
अपनी उदर भरे ॥ २॥
स्वान-पूँछ ज्यों होय न सूधो,
क्या न कान परै।
कह नानक, भजु रामनाम नित,
जातें काज सरै॥ ३॥
( २०१ )
जगतमें झूठी देखी प्रीत ।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा, क्या मीत ॥
मेरी मेरी सभी कहत हैं, हितसों बाँव्या चीत ।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरजकी रीत ॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझ्षत, सिख दे हारबो नीत ।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभुके गीत ॥
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दरिया साहब बढज
दरिया साहब
( २०२ )
जाके उर उपजी नहीं भाई।
सो क्या जाने पीर पराई ॥टेक॥
ब्यावर जाने पीरकी सार।
बाँझ नार क्या लखे बिकार ॥ १॥
पतिब्रता पंतिकौ ब्रत जाने।
बिभचारिन मिल कहा बखाने || २॥
हीरा-पारख जौहरी पावे।
मूरख निरखकै कहा बतावै | ३॥
छागा घाव कराहै सोई।
कोगतहार के दरद न कोई ॥ ४ ॥
रामनाम मेरा प्रान-अथार |
सोई सरमरस पावनहार || ५॥
जन दरिया जानेगा सोई।
(जाके) प्रेमकी भाल कलेजे पोई || ६ ॥
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१८६ भजन-संग्रह् भाग २
( २०३ )
जो धुनियाँ तौ भी मैं राम तुम्हारा।
अधम कमीन जाति मतिहीना,
तुम तो हो सिरताज हमारा ॥टेक॥
कायाका जंत्र सबद मन मुठिया,
सुषमन ताँत चढ़ाई ।
गगनमेंडलमे घुनुआँ . बैठा,
मेरे सतगुर कला सिखाई ॥ १ ॥
पाप पान हर कुबुध कॉँकड़ा,
सहज सहज झड़ जाई।
घुंडीगाँठ रहन नहिं पावे,
इकरंगी होय. आई ॥ २॥
इक्रैंग हुआ भरा हरि चोला,
हरि कहै कहा दिलाऊँ।
में नाहीं मेहनतका लोभी,
बकसौ मौज भगति निज पाऊँ॥ ३ ||
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दरिया साहब १८७
जय आय आज आय आओ
किरपा कर हरि बोले बानी,
तुम तो हो मम दास।
दरिया कहै, मेरे आतम भीतर,
मेले राम भगति बत्रिखास ॥ 9४॥
( २०४ )
बावल कैसे बिसरो जाई।
जदि मैं पति सँग रल खेढूँगी,आपा धरम समाई ।टेक।
सतगुरु मेरे किरपा कीनी, उत्तम बर परणाई ।
अब मेरे साईंको सरम पड़ेगी, लेगा हृदे लगाई ||
थे जानराय, में बाली-भोली, थे निरमल, मैं मेली ।
थे बतलाओ, मैं बोल न जानूँ, भेद न सके सहेली |
थेब्रह्मभाव, में आतम कन्या, समझ न जानूँ बानी ।
दरिया कहै, पति पूरा पाया, यह निश्चै कर जानी ॥
(२०५ ) मैरव
कहा कहूँ मेरे पिउकी बात।
जो रे कहूँ सोह अंग सुहात ॥टेक|॥
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१८८ भजन-संग्रह भाग २
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जत्र में रही थी कन्या क्योँरी।
तब मेरे करम हता सिरभारी ॥ १॥
जब मेरी पिउसे मनसा दौड़ी।
सतगुरु आन सगाई जोड़ी ॥ २॥
जब में पिउका मंगल गाया।
तब मेरा खामी ब्याहन आया ॥ ३ ॥
हथलेवा कर बैठी संगा।
तब मोहिं लीनी बाँये अंगा ॥ ४ ॥
तन दरिया कहै मिट गई दूती।
आपी अरप पीत्रसँग सूती ॥ ५॥
( २०६ )
रामनाम नहिं हिरदे घरा।
जैसा पसुवा तैसा नरा ॥ १॥
पसुवा-नर उद्यम कर खाबै।
पसुवा तौ जंगल चर आबे ॥ २॥
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पसुवा आगे, पसुवा जाय।
पछ्त॒त्रा चरै औ पसुत्रा खाय | ३ ॥
रामनाम ध्याया नहिें माई।
जनम गया पसुवाकी नाई | ०॥
रामनामसे. नाहीं. प्रीत।
यह ही सब पछुवोंकी रीत ॥ ५॥
जीवत सुखदुखमें दिन भरे ।
मुत्रा पछे चौरासी परे ॥ ६॥
जन दरिया जिन राम न ध्याया |
पसुत्रा ही ज्यों जनम गँवाया ॥ ७ ॥
॥६॥॥0॥9/८5॥099५86॥79.00॥
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श्रीहृरिः
श्रीजयदभालऊजी गोयण्दकाद्वारा किखित-
तस्य-खिन्तामणि भाग १९८ सलित्र )
प्रस्तुत पुस्तकर्मे “कल्याण” में प्रकाशित निबन्धोका
संग्रह है | पृष्ठ २५०; मूल्य ॥>) सजिल्द “** ॥|-“)
तरव-चिब्तामणि भाग ३१ ( सचित्र )
( छोटे आकारका गुटका संस्करण )
साइज २२१८२९, ३२ पेजी, पृष्ठ ४८८, ।-), |»)
तस्य-लिन्तामणि भाग २ ( सखित्र )
इसमें “कल्याण” के ४८ निबन्धोंका संग्रह है,
पृष्ठ ६३२, मूल्य ||), सजिल्द १०)
तस्व-चिन्सामणि स्लग २ ( सचिश्र )
( छोटे आकारका ग्ुटका संस्करण )
साइज २२१८२९, २२ पेजी, पृष्ठ ७५०, मू० ।>); ||)
तस्व-लिम्तामणि भाग ३ ( सख्ित्र )
प्रथम और द्वितीय भागोंकों देखनेसे इसकी
उपयोगिता समझ जायेंगे। पृष्ठ ४५०, मू० [॥७), ॥>)
तस्व-खिम्तामणि भाग ३ ( सचित्र )
( छोटे आकारका गुटका संस्करण )
साइज २२,८२९, ३२ पेजी, पृष्ठ ५६०, मू० |-), ।>)
पता-गीताप्रेस, गोरखपुर ।
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सस्ता साहित्य
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रामगीता (साथ ) )॥ गजल गीता क्र
सन्ध्या विधिसद्वित ) छोममैं ही पाप है. ,,
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