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Full text of "Bhajan Sangarah 4"

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घजन-सचह 
( चोथा हा ) 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥9॥00५९॥९॥।॥8०॥॥॥ 


>औीहरि 
घत्नना-सचह % 
( चोथा हा ) 


संग्रहकर्ता 
श्रीवियोगी हरिजी 


मूल्य 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


के 22978 2720: 22 27% 2 )7220:0:2४ 


कर 2 
रा ४ _ री रू 
% वीर सेवा भन्दिर है 
३ 6 
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रे * 
क्रम संख्या गा ९2 
हा मम 5८८6 22 
हैं; काल न० 5 
रथ मिथ 
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३२ खणड़ 
3 रॉ 
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अर 29/07 9४309: 254 कै कक के 


प्रथम संस्करण ७२०० 
सं० १९९० 
द्वितीय संस्करण ७००० 
सं० १९९१ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


भजन-संग्रहका यह चोथा भाग है। इसमें 
कुछ ऐसे राम-रंगीले मुसत्मान-भक्तोंकी 
वाणीका सट्लडुलन किया गया है, जिनके बारेमें 
श्रीभारतेन्दुजीने कहा है-- 
'ुन मुसक््मान हरिजननपै कोटिन हिंदुन वारिये ।! 

चासतवमे, अनेक ऐसे मुसलमान हरिज्ञन हो 
गये हैं,जिन्होंने छू -ण-मन्दिरमें मक्का नूर देखा 
और व्रज़-वीथियोंकी रज़में लोट-लीटकर उस 
प्यारेकी रिहानेके लिये एक निराली ही 
नमाज़ पढ़ी, ये दो प्रकारके सन्त हुए हैं। 

एक तो रसखानिकी रखिक टोलीके, 
जिन्होंने वजराज-कुमारकी बाकी स्रतपर 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


[२] 

अपनेको निसार कर दिया और दूसरे यारौ 
या दरिया साहबके पम्थके, जिन्होंने अपने राम 
भर्तीरको रिश्ानेके लिये कबीरकी सुहागिनका 
साज सजाया । दोनों ही अपने-अपने स्थानपर 
अद्वितीय हैं, दोनों ही वन्दनीय हैं। 

मुसल्मान-भक्तोंके घाणी-संग्रहमें कई 
विद्वानोंने कबीरदासजीकी भी लिया है, पर 
यह विवादास्पद विषय होनेपर कि वे मुसलमान 
थे या हिन्दू, उन्हें मैंने इस संग्रहमें नहीं लिया 
है। पहले भागमें तो सनन्‍्त-शिरोमणि कबीरके 
अनियारे शब्द आ ही गये हैं। 

इस छोटे-से संग्रहसे यदि प्रेम-मार्गियोंकी 
कुछ भी रस मिला,तो में अपने तुच्छ प्रयासकों 
सफल समझूगा। 


दिल्ली हा 
श्रीरामनवमी, १९९० वियोगी हरि 


9 5009५ 396] 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


# भ्रीहरि: # 


अकारादि-क्रमसे विषय-सची 
भजन पृष्ठ-संख्या 
रहीम 


कठिन कुटिल काली देख 
कमलदल-ने ननिकी उनमानि 
कलित छलित माला वा *** 
छबि आवन मोहनलालकी 
जरद बसनवालछा शुरूचमन 
तरल तरनि-सोी हैं तीर-सो 
दंग छकित छुबीली 

पकरि परम प्यारे सॉवरेको 
पट चाहे तन, पेट चाहत 
भझुजग जुग किधों हैं 
शरद-निशि-निशी थे चाँदकी 


#ण न 0 छा ६ ० । नी + बथण 0 बढ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


, 


भजन 


रसखानि 
आज्ु री, ननदछूला निकस्यो 


कानन दे अँगुरी रहिबो 
खझञन-नेन फँसे 

५ 
गाव गुनी, गनिका 


जा दिनते निरख्यो नेद-नंदन 
द्रौपदि औ गनिका, गज 


घूरि-भरे अति सोमित 
बेनु बजावत, गोधन 
बैन वही उनको शुन 
ब्रह्म में दूँदयों पुरानन 
मानुष हों तो वही 


या लूकुटी अरु कामरियापर 


सेस, महेस, गनेस 


यारी साहव 
अंधा पूछे आफ़त्ताबको रे 


आँखी सेती जो भी 


जावके बीच निमक जैसे 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


पृ'्ठ-संख्या 


बन १० 
१३० 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(# ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
आरति करो मन आरति ** २१ 
उड़ उड़ रे बिहंगम "२६ 
डरघ मुख भाठी, अवटों 5 रण 
एक कहों सो अनेक है '* १३१ 
गगन-गुफामें बेठिके रे जा इज 
गगन-गुफामें बढिके रे ०» ३६ 
गयो सो गयो, बहुरि ा दे० 
गुरुके चरनकी रज लेके *** (८ 
चंद-तिऊक दिये सुंदरि ** २४ 
जबलग खोज चला जावे 7३७ हे 
जहँ मूल न डार न पात * इ२ 
जोगी जुगति जोग कमाव “** २२ 
झिलमिरू-प्िकमिल बरसे ना १९ 
तू बह्म चीन्‍्हों रे ४४० 2७ 
दिन-दिन प्रीति अधिक न १६ 
देखु बिचारि हिये अपने 5 ३१ 
दोड मूँदके नेन अंदर ** १६ 
निशुन चुनरी निदान *०* २३० 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(।)92 


भजन पृष्ठ-संख्या 
बिन बंदगी इस आलममें न बज 
बिरहिनी संदिर दियना “** पूछ 
मन मेरो सदा खेले नटबाजी न १२३ 
समन ग्वालिया, सत सुक्ृत **' २४७ 
रसना, रास कहत तें थाको न २० 
राम रमझना यारी जावके ** २६ 
सतगुरु है सत पुरुष अकेला २८ 
सुज्ञके सुकाममें बेचुनकी **. २९ 
इम तो एक हुबाब हैं रे * ' दे 
हमारे एक अलह पिय प्यारा है ** १७ 
हो तो खेलों पियासेंग *' १८ 

खुसरो 
बहुत रही बाबुरू-धर * ०5... हे & 
द्रिया साहब ( मारवाड्वाले ) 

अमृत नीका कहे सत्र *** द& 
आदि जन्‍्त मेरा है राम 8 छ२ 
झादि अनादी मेरा साध न ४७० 
ऐसा साथू करम दे “* ६४ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(०) 
भजन 


कहा कहूँ मेरे पिडकी बात 
चछ-चल रे हंसा, राम-सिन्ध 
चक्न-चल रे सुभा, तेरे आदराज 
जाके उर उपजो नहिं भाई ! 
जीव बठाऊ रे बहता मारग माह 
जो धुनिया तौ भी में राम 

जो सुमिरूँ तो पूरन राम 
दुनियाँ सरस भूछ बौराई 

नाम बिन भाव करम नहिं 
पतित्रता पति मिली है 

बाबुरू केसे बिसरा जाई ? 
मुरछी कोन बजावे हो 

में तोहि केसे बिसरू देवा ! 
राम-नाम नहिं हिरदे घरा 
राम भरोसा राखिये 

संतो, कहा गृहस्थ कहा 
सतगुरुसे सब्द ले 

सब जग सोता सुध नहिं 
साधो, अछूख निरंजन सोई 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


पृष्ठ-संख्या 


३५९ 
**० छड 
जज 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(।॥# ) 


भजन ए्ठ-संख्या 
साधो, हरि-पद्‌ कढिन ** छ९ 
साधो, राम अनूपम बानी न्ःः छ० 
साहब मेरे राम हैं, में न छू 
है कोइ सन्त राम अनुरागी 5 ६१ 
ताज 
कोऊ जन सेव शाह न छज 
छेल जो छबीछा, सब “न ७७8 
प्रुवसे, धभह्ला द, गज न छठ 
साहब सिरताज हुआ ** ७७ 
सुनो दिलजानी मेरे दिलकी न" ७६ 
शेख 
मिटि गयो मौन, पौन-साधनकी "न ७७ 
नज़ीर 
अब घुटनिरयोका उनके न ६० 
इक रोज़ मुँदमें कान्ह ने ना दण 
डनके तो जद्दाँमें अजब "न &8६ 
डनको तो बालपनसे न था न. छू 


है| 
न्ण 


डनको तो देख ग्वालिनं 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥# 2 


भजन 
करने लगे य घूम 
कहता थीं दिलमें, दूध 
कुछ जुल्म नहीं, कुछ 
कोटेमें होवे फिर तो 


क्‍या इश्म उन्होंने सीख लिये 
गर खाट बिछानेको मिली 


गर चोरी करते आ गईं 
गर यारकी मर्जी हुईं 


गुरसेमें कोई हाथ पकड़ती 


ग्वालॉमें नंदलाल बजाते 


जब मुरछीधरने मुरकीको 
जब हाथको धोया द्वर्थोसे 


जाहिरमें सुत वो नंद 


जिस सिम्त नज़रकर देखे हैं 
था जिसकी खातिर नाच किया 
थे कान्द्रजी तो नंद-जसोदाके 


परदा न बालपनका 
पाटी पकढ़के चलने लगे 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


पृष्ठ-संख्या 
** ४८१ 
० ८३ 
१7० कु प 
८ १ 
६२ 
५६ 
** ८२ 
प््जु 
<२ 
<थ्द 
८७ 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


भजन पृष्ठ-संख्या 
बाले थे बिजराज न्न् छए 
माता, कभी ये मुझको 25% «29 
माता जसोदा उनकी ० ८४ 
अया, कभी ये मेरी नल ८ज 
मोहनकी बाँसुरीके में ना पझूय 
यारो, सुनो य दचिके नल छ८ट 
राधारमनके यारो अजब 5०%, 25६ 
सब मिल जसोदा पास “. झरे 
सब मिलके यारो क्ृष्णमुरारीकी ** ८७ 
सब होझ बदनका दूर हुआ *** ०९७ 
हम चाकर जिसके ** ०१) 
है आशिक और माझुक न ८८ 
हे बहारे बाश दुनिया बा ६७ 
होता है या तो बालपन * ८६ 

कारेखाँ 

छलबलके थाक्यो अनेक ** ९८ 
साफ़ किया मुझक, सताह न ०९८ 
बुन्दाबन कीरति बिनोद न दुढू 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥- ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
करीमबख्श 
ऐ भेरे रच ! तू "** १६८०० 
कैसे तुम आ नेहरवा *- १०१ 
ना जानों, पियासों केसे *** बृ०२ 
इ्न्शा 
जब छाॉड़ि करीलकी कुंज्ननकों *** १०३ 
बाज़िन्द 
अत्तर तेल फुलेल - १०८ 
आज सुने के काल *** ११३ 
इन्द्बपुरी-सी मान बसंतो *** ११० 
एके नाम अनन्त *** ११६ 
ओढ़े साक-दुसाल क *** ११७ 
कुअर-मन मद-मत्त मरे *' ११४ 
कूंडा। नेह-कुटुंब ४ ३०६ 
केती तेरी जान, किता न" १०७ 
केते अज्जुन भीस जहाँ "*' ११३ 
गाफिल मूढ़ गँवार ** १०४ 
गाफिल हुए जीव कहो *' ११३ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥8 ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
गूदड़िया गुरु ज्ञान *** ११६ 
घड़ी-घड़ी धवियाल न बज 
जो जियमें कछु ज्ञान ** १९७ 
झूढा जग-जंजाल *** १०७ 
तीखा तुरी पक्काण **१ ११७ 
दिलके अन्दर देख, कि -* १०४ 
देह गेहमें नेह नियारे -* १०३ 
दो-दो दीपक बारू ” ११२ 
नहिं है तेरा कोय ' १०६ 
नित जाके दरबार झड़ंता *** ११० 
फूलों सेज बिछायक -* १०८ 
बंका किला बनायके -"* १११ 
बंछृत इंस गनेस *** १०७ 
बदन बिलोकत नेन ** ११६ 
बा्जिदा बाजी रची 23७: १.१८ 
बार-बार नर-देह *** १०६ 
बिना बासका फूल ** ११४ 
मंदिर माछ बिछास ** १०७ 


9 500090५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥& ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
मदसाते मगरूर वे *** १०७ 
महल फ़वारा होजके *** १०६ 
माणिक हीरा लाल । पृ 
यह दुनियाँ “बाज़िंद' *** ११२ 
या तन-रं ग-पतंग “*" १११ 
रहते भाने छेल सदा *** १०८ 
राज-कचेरी माहें जे ** १०९ 
राम कह्दत कलि माह्टि “** ११४ 
राभ-नामकी लूट फबै ** ११२ 
सुंदर नारी संग ०० १०६ 
सुन्दर पाई देह नेह् कर ** १०४ 
दहरि-जन बैठा होय *** ११७ 
होती जाके सीसपे *** ११० 
हों जाना कछु मीट *** ११४ 

बुल्लेशाह 

अब तो जाग मुसाफिर /*' १२२ 
कद मिलछसी मैं बिरदों *** ११९ 
डुक बृझ कवन ** ११४ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(॥ ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
माटी ख़ुदी करेंदी यार “* १२१ 
आदिल 
मुकुटकी चटक, छटकऋ ** १३१४ 
मकछद 
लगा भादों मुझे दुख न २४ 
मौजदीन 
हतनी कोई कहो हमारी “ १२६ 
वाहिद 
सुन्दर सुजानपर, मन्द्‌ ** १२८ 
दीन दरवचेश 
गड़े नगारे कूचके *« १२९ 
बन्दा जाने मैं करों ** १३० 
बन्दा, बहुत न फूलछिये ाण पृ३० 
हिन्दू कहैं सो हम बड़े 5 १२९ 
अफ़सोस 
का सैंग फाग मचाऊँ “ १३१३ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥॥> ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
काजिम 

फ्राग खेलन कैसे जाऊँ *"* १३२ 
खाल्स 

जिन्हों घर झमते हाथी “* १३३ 

तुम नाम-जपन क्यों *** १३४ 
वबहज्ञन 

करें अब कोन बहाना *** बृ३ण 

लूतोफ़ हुसैन 

ऊधो ! मोहन-मोह न जावे *** १३६ 
जे हा फि मंखूर 

अगर है ज्ञोक मिलनेका “० पृ३८ 
यकरंग 

निसिदिन जो हरिका गुन “* १४१ 

पिया मिलन केसे जाओगो ** १४० 

मितवा रे, नेकीसे *** १४१ 

सॉवलिया मन भाया रे “ पृष्ठर 

हरदम हरिनास भजो *** १४० 
कायम 

गुरु बिनु होरी कोन खेकाबवे., “** १७३ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


( ॥# ) 


भजन पृष्ठ-संख्या 
निज़ामुद्दीन ओलिया 
परवत-बॉस मेंगाव »« १४४ 
फ़रहत 
बंसी मुखर्सों छगाय * प७९ 
मारो-मारो हो स्थाम ** १४६ 
वृषभाचु-नंदिनी झूले -* १छण 
काज़ी अशरफ़ महसूद 
ठुमुक-ठुघुक पग ** १४७ 
आलम 
जसुदाके अजिर बिराजें *** १०७० 
मुकता सनि पीत हरी *** १७० 
तालिब शाह 
महबूत्र बागे सुहागे “7 १७०२ 
महबूब 
आगे धेनु घारि गेरि . 5 ब्रज३ 
नफीस खलीली 
कन्हैयाकी जाँखें हिरन-सी -" १७०४ 
सेय्यद कासिम अली 
मोहन प्यारे जरा गलियोंमें ** बृजुछ 
शक --र आ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


3० आहरि: 


भजन-संग्रह 
(चौथा भाग ) 


+ नेक + 


रहीम 
(१) 
छबि आवन मोहनलालकी । 
काछिनि काछे कलछित मुरल्ति कर, 
पीत पिछोरी साल्की ॥ 
बंक तिरक केसरको कीनें, 
दुति मानों विधु बालकी | 
बिसरत नाहिं सखी, मो मनतें, 
चितवनि नयन बिसाल्की ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


२ मजन-संग्रह भाग ४ 


कब करप2 52 5 ५3२५२ ९२४२२ ५० ॥ल व 5तभ ५०६३० बे० ०४ ४६०६८९५५४:३०७ २५ २८९० ५५४७- 2७-९: ६०, ६००९४ जे ७४ 


नीकी हँसनि अधर सुधरनिकी, 
छब्रि छीनीं सुमन गुलालकी । 

जलसों डारि दियो पुरशइन पर, 
डोलनि मुकता-मालकी | 

आप मोल बिन मोलनि डोलनि, 
बोलनि मदनगोपालकी । 

यह सुरूप निरग्वे सोइ जाने, 
या 'रहीम! के हालकी ॥ 

(२) 

कमलदल-नेननिकी उनमानि | 

बिसरति नाहि सखी, मो मनते, 
मन्द-मन्द मुसुकानि ॥ 

यह दसननि-दुति चपलाह्ठतें, 


महाचपल चमकानि । 
बसुधाकी बस करा मधघुरता, 
सुधा-पर्गी बतरानि ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रहीम डर 


चढ़ी रहै चित उर बिसालकी, 
! मुकृत-माल थहरानि । 
नृत्य-समय पीताम्बरट्रकी, 
फहरि-फहरि. फहरानि ॥ 
अनुदिन  श्रीबृन्दाबन ब्रजतें, 
आवन  आवन जानि। 
अब 'रहीम' चिततें न टरति है, 
सकल स्थामकी बानि ॥ 
(३) 
शरूद-निशि-निशीथ चॉदकी रोशनाई , 
सघन-वन-निकुन्ञच कान्ह  बंसी बजाई | 
रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी , 
मदन-शिरसि भूयः क्‍या बला आन छागी ॥ 
(४) 
कलित ललित माला वा जवाहर जड़ा था , 
चपल चखनवाला चाँदनीमे खड़ा था । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


॥ भजन-संग्रह भाग ४ 


ल््ह्ख्स्ल्प्ल ४-६ अडिडट ड3हप्तप ८ हपलस्लपणर हट 


कटि-तट-बिच मेला पीत सेला नवेला , 
अलिब्रन अलबेला यार मेरा अकेला ॥ 
(५) 
दग छकित छबीली छेलराकी छरी थी , 
मणि-जटित रसीली माधुरी मूँँदरी थी। 
अमल कमल ऐसा खूबसे खूब देखा , 
कहि न सकी जेसा स्यामका हस्त देखा।॥ 
(६) 
कठिन कुटिछ काली देख दिलदार जुलफे , 
अलि-कलिति-विहारी आपने जीकी कुलफे । 
सकल शशि-कलाको रोशर्ना-हीन लेखों , 
अहह ब्रजललाकी किस तरह पर देखों।॥ 
(७) 
जरद बसनवाठा गुठ्चमन देखता था , 
झुक-झुक मतवाढ्या गावता रखता था। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रहीम ष्ु 


श्रुति युग चपलासे कुण्डले झूमते थे , 
नयन कर तमाशे मस्त हे घूमते थे॥ 
(«८) 
तरल तरनि-सी हैं तीर-सी नोकदारें , 
अमर कमल-सी हैं दीध हैं दिल बिदारें। 
मधुर मधुप हेरें माल मस्ती न राखें , 
बिल्सति मन मेरे सुन्दरी स्याम आँखें॥ 
(५९) 
भुजग जुग किधों हैं काम कमनैत सोहैं , 
नटवब॒र ! तब माह बाँकुरी मान भौंहें। 
सुनु सखि, म्ृदु बानी बेदुरुस्ती अकिल्में , 
सरल-सरल सानी के गई सार दिल्में॥ 
( १०) 
पकरि परम प्यारे साँवरेको मिलाओ , 
असल अमृत-प्याल्ष क्यों न मुझको पिछाओ £ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


| भलन-संग्रह भाग ४ 


इति वबदति पठानी मनमथाज्ञी विरागी , 
मदन-शिरसि भूयः क्या बला आन छागी ॥ 
(११ ) 

पट चाहै तन, पेट चाहत छदन, मन 
चाहत है घन, जेती सम्पदा सराहिबी । 
तेरोई कहायकें, रहीम कहे दीनबन्धु, 
आपनी बिपत्ति जाय काके द्वार काहिबी ? 
पेट भरि खायो चाहै, उद्यम बनायो चाहै, 
कुर्टेब जियायो चाहे, काढ़ि गुन लाहिबी । 
जीविका हमारी जोंग ओरनके कर डारो, 
ब्रजके बिहारी ! तो तिहारी कहाँ साहिबी ॥ 


ह<2# कथ्त 
९ १०0:५२ “4 ईडु 
(४७2 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रसखानि छ 


रसखानि 
(४) 
मानुष हों तो वही रसखानि, 
बसों ब्रज गोकुछ गाँवके ग्वारन । 
जो पसु हों तो कहा बसु मेरो, 
चरों नित ननन्‍्दकी पेनु-मँझारन | 
पाहन हों तो वहीं गिरिको, 
जो धरयो कर छत्र पुरन्दर-धारन । 
जो खग हों तो बसेगे करों मिलि, 
कालिंदी-कूल-कदम्बकी . डारन ॥ 
(२) 
या लकुटी अरू कामरियापर, 
राज तिहूँ पुरकौ तजि डारों। 
आठट्ठ सिद्धि नवो निधिकोौं सुख, 
नन्‍दकी गाइ चराइ बिसारों ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ढ़ भसकन-संग्रह भाग ४ 


ख््ध््श्च्ञ?ख़़?ि२ ₹ं़ 9 ओं ओओ ओओ अ्वजअविडिवििला व्लचिटी बन क्‍्ट चने 


रसखानि, कर्बो इन आँखिनसों, 
ब्रजके बन-बाग-तड़ाग निहारों। 
कोटिक हों कल्घधोतके धाम, 
करील्की कुज्नन ऊपर बारों ॥ 
(३) 
गाव गुनी, गनिका, गन्धर्व, ओ, 
सारद सेष सब्रे गुन गावें। 
नाम अनन्त गनन्त गनेस-ज्यों, 
ब्रह्म त्रिलोचन पार न पावें ॥ 
जोगी, जती, तपसी अरु सिद्ध, 
निरन्तर जाहि समाधि छगावें । 
ताहि. अहीरकी छोहरियाँ, 
छछ्तियाभरि छाछप नाच नचावें ॥ 
(४) 
सेस, महेस, गनेस, दिनेस, 
सुरेसहु जाहि निरन्तर गा६वें। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रसखानि ढ्‌ 


पा ल्ड्ड रच आम और पा कक पा पी की यम चल कर 


जाहि अनादि, अनन्त, अखण्ड, 
अछेद, अभेद सुबेद बतावें ॥ 
नारद-से सुक ब्यास रहें, 
पचि हारे, तऊ पुनि पार न पावें । 
ताहि. अहीरकी छोहरियाँ, 
छल्ियाभरिं छाछप नाच नचावें ॥ 


(५) 

खजत्नन-नेन फेसे पिंजरा-छबि, 

नाहिं रहें थिर कैसेहुँ माई! 
छूटि गया कुछ कानि सखी, 

रसखानि, छखी मुसुकानि खुहाई ॥ 
चित्र-कढ़े-से रहें मेरे नैन, 

न बेन कहें, मुख दीनी दुहाई। 
कैसी करों, जिन जाब अली, 

सब बोलि उठें, यह बावरी आई ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१० भजन-संग्रह भाग ४ 


(६) 
कानन दे अँगुरी रहिबो, 
जबहीं, मुरली-धुनि मन्द बजेहै ; 
मोहिनी-तानन सो रसखानि, 
अठा चढ़ि गोधन गेहे तो गेहे । 
टेरि कहों सिगरे ब्रज-लोगनि, 
काल्हि कोऊ कितनों समुझेहै ; 
माई री, वा मुखकी मुसुकानि, 
सेभारी न जैहै न जेहे न जेहे ॥ 
(७) 
आज्जु री, नन्दलूला निकस्यो, 
तुलसी-बनत बनकी मुसकातो । 
देखे बने न बने कहते अब, 
सो खुख जो मुखमें न समातो ॥ 
हों रसखानि, बिलोकिबेकों, 
कुल-कानिको काज कियो हिय हातो । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रसखानि ११ 


आय गई अलबेली अचानक, 
ऐ भट्र, छाजकौ काज कहा तो? ॥ 
(4) 
घूरि-भरे अति सोमित स्थामजू , 
तेसी बनी सिर सुन्दर चोटी । 
खेलत-खात फिरें. अँगना, 
पगपेजनी बाजती, पीरी कछोटी ॥ 
वा छबिकों रसखानि बिलोकत, 
वारत काम-कलानिधि-कोटी । 
कागके भाग कहा कहिए, 
हरि-हाथर्सों ले गयो माखन-रोटी ॥ 
(९) 
ब्रह्म मैं ढूँढयो पुरानन गानन, 
बेद-रिचा सुनि चौगुने चायन | 
देख्यों सुन्यो कब्रहूँ न कितै, 
वह कैसे सरूप ओ केसे खुभायन ॥ 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥ 2900 ५९॥९॥।॥8०॥॥॥ 


१२ भजन-संप्रह भाग ४ 


टेरत हेरत हारि परयोौ , 
रसखानि बतायो न छोग-लुगायन । 
देखो, दुरयों वह कुज-कुटीरमें, 
बैठ्यो पछोटत राधिका-पायन ॥ 
(१० ) 
द्ौपदि ओ गनिका, गज, गीघ, 
अजामिलसों कियो सो न निहारो | 
गौतम-गेहिनी._ कैसे. तरी, 
प्रहछादकी कैसे हरयो दुख-भारों ॥ 
काहे को सोच करे रसखानि, 
कहा करिहे रवि-नन्द बिचारों ? 
कौनकी संक परी है जु माखन- 
चाखनहारों. है... राखनहारो ॥ 
(११ ) 
जा दिनते निरख्यो नँंद-नंदन, 
कानि तजी घर-बन्धन छूटबो । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


रसखानि १४३ 


चारु बिलोकनिकी निप्ति बह रा 
सेभार गयी मन मारने छ््यो || 
सागरकों सरिता जिमि धावति, 
रोकि रहे कुलकौ पुल ट्र्व्यो । 
मत्त भयो मन संग फिरि, 
रसखानि सुरूप सुधा-रस घट्यो ॥| 


( १२ ) 

बेनु बजावत, गोधन गावत, 
े ग्वारनके सँग गोमधि आयो | 
बॉसुरीमें उन मेरोह नाम ले, 

साथिनके मिस टेरि सुनायो ॥ 
ऐ सजनी, सुनि सासके त्रासनि, 
मु नन्‍्दके पास उसासनि आयो | 
कंसी करों रसखानि तहीं, 

चित चैन नहीं, चितचोर चुरायो ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥2॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।०॥8०॥॥ 


१७ अजन-संग्रह भाग ७ 


(१३) 
बैन वही उनको गुन गाइ, 
ओ कान वही उन नेनसों सानी । 


जा 3 


हाथ वही उन गात सरें 

अरु पाइ वही जु वही अनुजानी ॥ 
जान वही उन प्रानके संग, ओऑ 

मान वहां जु॒ करे मनमानी । 
त्यों रसखानि वही रसखानि, 

जु है रसखानि, सो है रसखानी ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब पृ्जू 


निकल सनक शक आय है 5 /४८४८४०६ १०७०५७००५ ५४१०८-८४११००-०- 


यारी साहब 
(१) 
त्रिहहिनी मंदिर दियना बार । 
बिन बाती त्रिन तेल जुगतसों, 
बिन दीपक उजियार ॥ 
प्रानपिया मेरे गृह आये, 
रवि-पचि सेज सँवार ॥ 
सुखमन सेज परम तत रहिया, 
पिय. निरयुन॒ निरकार ॥ 
गावहु री मिलि आनंद-मंगल, 
यारी मिलके यार॥ 
(२) 
बिन बंदगी इस आहुममें, 
खाना तुझे हराम है रे ! 
बंदा करे सोइ बंदगी, 
खिदमतमें आठों जाम है रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१६ भजन-संग्रह भाग १ 


कि डटप्टप नस ध न्‍ पट टपट पट पट नस पतन पलपल ध लच 7९ ल्‍पल्‍ चल टन्‍्लप आप > चल #क्‍मपलपट+ ५ >९०५३४१०३६४८४८०१०३४5 


थारी' मोला. बिसारके, 
त्‌ क्‍या छागा बेकाम है रे ! 
कुछ जीते-जी बंदगी कर ले, 
आखिरको गोर मुकाम है रे ! 
(३) 


दिन-दिन प्रीति अधिक मोहि हरिकी । 
काम-क्रोप-जंजाल _ भसम भयो, 
ब्िरह-अगिन लगि घघकी || 
घघकि-घ्रकि सुछ्गति अति निर्मल, 
झिलमिल-पझिलमिल झलकी ॥| 
झरि-झरि परत अँगार अधघर .ारी' 
चढ़ि अकास आगे सरकी ॥ 


(४) 
दोउ मँँदके नेन अंदर देखा, 
नहिं चाँद सूरज दिन रात है रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब १७ 


क्व््कल्टवध्खिविप् विधिक वन ख्नप्नडच्जत कट ल्‍््ीखच्कडचिना न ला ख्व्ख पक वन्‍ नजर नल तल न्‍ पल 


रोशन समा ब्रिनु तेल-बाती, 
उस जोतिसों सबै सिफाति है रे !! 
गोता मार देखो आदम, 
कोउ और नाहि संग-साथि है रे ! 
यारी' कहे, तहकीक किया, 
त मलकुल्मौतकी जाति है रे !! 
(५) 
हमारे एक अलह पिय प्यारा है। 
घट घट नूर उसी प्यारेका, 
जाका सकल पसारा है॥ 
चोंदह तबक जाकी रोशनाई, 
झिलमिल जोत सितारा है ॥ 
बेनमून बेचून अकेला, 
हिंदू तुरकसे न्यारा है ॥ 
सोइ दरबेस दरस जिन पायो, 
सोई मुस्ल्मि सारा है॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१८ भजन-सग्रह भाग ४ 


कलच्न 3८ जे अजलन च्टच्ड ह अहदटच्ट चल 


आबे न जाय, मेरे नहिं जोीवे, 
यारी' यार हमारा है।॥ 
(६) 
गुरुक चरनकी रज लेके, 
दोउ नेननके बिच अंजन दीया । 
तिमिर मेटि उँजियार हुआ, 
निरंकार पियाकों देख लीया ॥ 
कोटि सूरज तहँ छिपे घने, 
तीन लोक-धघनी घन पाइ पीया । 
सतगुरुने जो करी किरपा, 
मरिके 'यारी' जुग-ज्ञुग जीया ॥ 
(७) 
हों तो ग्वेछों पियासंग होरी । 
दरस परस पतिब्रता पियकी, 
छबि निरखत भइ बोरी ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब १९ 


कल नाल आज चप टच्ञ लष्शच्ल खिल िन्‍ डा 5 


सोरह कला सपूरन देखीं 
रबि ससि भे इक ठौरी॥ 
जबतें दृष्टि परयो अविनासी 


छागी रूप-ठगौरी ॥ 
रसना रटति रहति निसि-बासर, 
नैन लगे यहि ठौरी॥ 


कह 'यारी' यादि करु हरिकी, 

कोइ कहें सो कहोरी ॥ 

(५) 

झिलमिल-झिलमिल बरसे नूरा, 

न्र-जद्र सदा भरपूरा | 
रुनझन-रुनझुन अनहृद बाजे 

भँवर गुँजार गगन चढ़ि गाज॥ 
रिमपिम-रिमझिम बरसे मोती 

भयौ प्रकास निरंतर जोती । 
निर्मल निर्मल निर्मल नामा, 

कह 'यारी' तहँ लियो बिस्नामा || 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


२० भजन-संग्रह भाग ४७ 


(५९) 
रसना, राम कहत तें थाको। 
पानी कहे कहूँ प्यास बुझति है, 
प्यास बुचझे जदि चाखो ॥ 
पुरुष-नाम नारी ज्यों जानें, 
जानि-बूझि नहिं भाखों। 
इष्टीसे मुष्ठी नहिं आबेै, 
नाम निरंजन वाको ॥ 
गुरुपरताप साधुकी संगति, 
उलटि दृष्टि जब ताको । 
यारी' कहे, सुनो भाई संतो, 
बज्र॒ बेधि कियो नाको॥ 
( १० ) 
निर्गुन॒ चुनरी . निर्बान, 
कोड ओढ़े संत सुजान ॥ 


या 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब २१ 


पट दर्शनमें जाई खोजो, 
और. बीच हैरान । 
जोति-सरूप सुहागिन चुनरी, 
आब बघू घधरि ध्यान॥ 
हद बेहदके बाहर “यारी' 
संतनको. उत्तम ज्ञान | 
कोऊ गुरुगम ओढ़े चुनरिया, 
निर्मुम चुनरी निर्बान ॥ 
(११) 
आरति करो मन आरत्ि करो ; 
गुरु-प्रताप साधुकी  संगति, 
आवागमनतें छूटि पड़ो ॥ 
अनहद तार आदि सुध बानी, 
बिनु जिभ्या गुन बेद पढ़ो । 
आपा उल्टि आतमा पूजो, 
त्रिकुर्टी न्हाइ सुमेर चढ़ो ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


है अजन-संग्रह भाग ४ 


सारण सेत छुरतिसों राखो, 
मन पतंग होइ अजर जरो । 

ज्ञानकै दीप बार बिनु बाती, 
कह '“यारी' तहँ ध्यान घरो ॥ 

( १२ ) 

जोगी जुगति जाग कमाव । 

सुखमना पर ब्रेठि आसन, 
सहज ध्यान लगाव ॥ 

इप्टि सम करि सुन्न सोवो, 
आपा मेटठि डड़ाव। 

प्रगभ जोति अकार अनुभव, 
सब्द सोहं. गाव॥ 

छोड़ि मठको चलहु जोगी, 
बिना पर उड़ि जाब। 

यारी कहे, यह मत बिहंगम, 
अगम चढ़ि फल खाब ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारां साहब २३. 


शी पल अत नदी जखल न व न शी कभी जम बम जप कब न्ल्ल्जिलिली अली लिखना कला कल व लक कला 


( १३ ) 
मन मेरो सदा खेले नटबाजी, 
चरन कमल चित राजी | 

बिनु करताल पखावज बाजे, 

अगम पंथ चढ़ि गाजी ॥ 
रूप बिहीन सीस बिनु गावै, 

ब्िनु चरनन गति साजी | 
बाँस सुमेरे सुरतिके डोरी, 

चित चेतन सँग चेला ॥ 
पाँच पचीस तमासा देखहि, 

उल्टि गगन चढ़ि खेला। 
यारी नट ऐसी ब्िधि खेले, 

अनहद ढोल. बजाबै ॥ 
अनंत कला अबगति अनमरति, 

बानक बनि-बनि आबे॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


२४ भजन-संप्रह भाग ४ 


मन ग्वालिया, सत सुकृृत तत दुह्ि लेह ॥ 

नेन-दोहनि रूप भरि-भरि, 
सुरति सब्द सनेह। 

निशर॒झरत अकास ऊठत, 
अघर अधरहि. देह॥ 

जेहि दृहत सेस महेस ब्रह्मा, 
कामपघेनु बिदेह । 

यारी' मथके लियो माखन, 
गगन मसंगन भखेह ॥ 

( १७) 

चंद-तिलक दिये सुंदरि नारा, 

सोह पतिबरता पियहिं पियारी । 
कंचन-कल्स घर पनिहारी, 

सीस सुद्दाग भाग उँजियारा ॥ 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साइबव श्ज 


सब्द-सेंद्र॒ दे माँग सँवारी, 
बंदी अचल टरत नहिं टारी। 
अपन रूप जब आप निहारी, 
'यारी' तेज-पुंज उँजियारी || 
( १६ ) 
त ब्रह्म चीन्हों रे ब्रह्मज्ञानी। 
समुझि-त्रिचारि देखु नीके करि; 
ज्यों दर्षनमधि अलख निसानी । 
कहे 'यारी! सुनो ब्रह्मगियानी, 
जगमग जोति निसानी ॥ 
( १७) 
उरध मुख भाठी, अबटों कोनी भाँति । 
अर्घ उर्घ दोड जोग लगायो, 
गगन-मेंडल भयो माठ ॥ 
गुरु दियो ज्ञान, ध्यान हम पायो, 
कर करनीकर ठाटठ ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


२६ भजन-संगह साग ४ 


हरिके मद मतवाल रहत है, 
चलत उबटकी बाट | 

आपा उलटिके अमी चुवाओ, 
तिरबेनीके घाट ॥ 

प्रेम-पियाला खुतिभरि पीवो, 
देखो. उल्टी बाट॥ 

पाँच तत्त इक जोति समान, 
घर छहवो मन हाथ ॥ 

कह “याराी' सुनियें भाई संतों, 
छकि-छकि रहि भयो मात ॥ 

( १८) 

राम रमझनी यारी जीवके || 

घटमें प्रान अपान दुृहाढ़, 
अरघ उरघ आवे अरु जाई ॥ 

लेके प्रान अपान . मिलाबै, 
बाही पवनते गगन गरजावे॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब २७ 


गरजे गगन जो दामिनि दमके, 

मुक्ताहल रिमझिम तहँ बरखे ॥ 
वा मुक्तामहँ सुरति पिरोबै, 

सुरति सब्द मिलि मानिक होवे ॥ 
मानिक जोति बहुत डैजियारा, 

कह यारी, सोइ सिरजनहारा ॥ 
साहब सिरजनहार. गुसाई, 

जामें हम, सोश हममाड़ीं॥ 
जैसे कुंभ नीर बिच भरिया, 

बाहर-भीतर खालिकि दरिया ॥ 
उठ तरंग तहाँ मानिक मोती, 

कोटिन चंद सूरके जोती ॥ 
एक किरिनका सकल पसारा, 

अगम पुरुष सब कीन्ह नियारा॥ 
उलटि किरिन जब सूर समानी, 

तब आपनि गति आपुषि जानी ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


श्८ भजन-संग्रह भाग ४ 


कह यारी कोई अबर न दृजा, 

आपुष्टि ठाकुर आपुहि पूजा ॥| 
पूजा सत्तपुरुषका कौजें, 

आपा मेटि चरन चित दीजें ॥ 
उनमुनि रहनि सकलको त्यागी, 

नवधा प्रीति ब्रिरह बेरागी ॥ 
बिनु बेराग भेद नहिं पाबे, 

केतो पढ़ि-पढ़ि रचि-रचि गावे ॥ 
जो गावै ताको अरथ बिचारे, 

आपु तरे, ओरनकों तारे ॥ 

(१९ ) 

सतगुरु है सत पुरुष अकेला, 

पिंड त्रह्मांडके बाहर मेला | 
द्रते दूर, जैचर्त ऊँचा, 

बाट न घाट गली नहिं कूचा ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहब श्ष्‌ 


आदि न अंत मध्य नहिं तीरा, 
अगम अपार अति गहिर गँभीरा ॥ 
कच्छ दृष्टि तहाँँ ध्यान छगावे, 
पल्महँ कीट भंग होइ जाबे॥ 
जेसे चकोर चंदके पासा, 
दीसे घरती बसे अकासा ॥ 
कष्ट यारी ऐसे मन लव, 
तब चातक खाँती-जल पाव॥ 
(२० ) 
सुन्नके मुकाममें बेचूनकी निसानी है , 
जिकिर रूह सोई अनहृद बानी है। 
अगमको गम्म नहीं झलक पेसानी है , 
कहे यारी, आपा चौीन्हे सोई ब्दह्यज्ञानी है॥ 
(२१ ) 
उड़ उड़ रे बिहंगम चढ़ अकास। 
जहँ नहिं चाँद-सूर निसि-बासर, 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३० भजन-संग्रह भाग ४ 


सदा अमरपुर अगम बास ॥ 
देखे उरध  अगाघ निरंतर 
हरष सोक नहिं जमके त्रास। 
कह 'यारी' तहँ बधिक-फाँस नहिं, 
फल खायो जगमग परकाम ॥ 
(२२ ) 
गयो सो गयो, बहुरि नहिं आयो । 
दूरितं अंतर गबन कियो, 
तिहू लोक दिखायो॥ 
तेहूँतँ आगे दूरित दूरि, 
परेतें पर जाइ छायो ॥ 
यारी कहेँ अति पूरन तेजा, 
सो देखि सरूप पतंग समायो | 
आबे न जाय, मरे नहिं जीव, 
हले न टले तद्दवाँ ठहरायो ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


यारी साहब 


( २३ ) 
एक कहो सो अनेक हे दीसत, 
एक अनेक धरे है सरीरा ॥ 
आदि हि तो फिर अंतहु भी 
मद्भध सोई हरि गहिर गभीरा ॥ 
गोप कहों सों अगोप सों देखो, 
जोतिसरूप बिचारत हीरा ॥ 
कहे सुने ब्िनु कोइ न ॒पावे, 
कहिके सुनावत 'यारी' फ़कीरा ॥ 
(२४ ) 
देखु बिचारि हिये अपने नर, 
देह घरो तो कहा ब्रिगरो है॥ 
यह मट्टीका ग्वेल-खिलोना बनो, 
एक भाजन, नाम अनंत घरो है॥ 
नेक ग्रतीति हिये नहि$. आवति, 
भर भूछो नर अबर करो है ॥ 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३२ समजन-संग्रह भाग ४ 


भूषन ताहि गलाइके देखु, 
धयारी! कंचन ऐनको ऐन घरो है ॥ 
( २५ ) 
आँखी सेती जो भी देखिये, 
सो तो आलम फानी है ॥ 
कानोंसे भी जो सुनिये रे, 
सो तो जैसे कहानी है।॥ 
इस बोलतेको उलगि देखे, 
सोइ आरिफ्‌ सोइ ज्ञानी है॥ 
यारी कहे, यह बूझि देखा, 
ओर सत्रै नादानी है।॥ 
( २६) 
जहँ मूठ न डार न पात है रे, 
बिन सींचे बाग सहज फूछा । 
बिन डॉड्ीका फूल है रे, 
निरबॉसके बास भँवर भूला॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारा साहब दबे 


हवअल>ल ०2 ट ५० ५० ५८७०७०५०० ५४: अजच्ट बट चल बल टन बट न्ड 2०४० + +> बज जप ब न ५०००० ५४२५००९२८०००० ५०००० ०१७ 


दरियावके पार हिंडोलना रे 
कोउ बिरही त्रिरला जा झूला । 
यारी कहै, इस झूलनेमें 
झूले कोऊ आधिक दोला ॥ 
( २७ ) 
जबलग खोजे चला जाबे, 
तबलग मुद्दा नहिं. हाथ आबे। 
जत्र खोज माँ! तब घर के 
फिर खोज पकरके बैठ जावे | 
आपमें आपको आप देखे, 
और कहूँ नहिं चित्त जाबे। 
यारी' मुद्दा हापिक हुआ, 
आगेक्मो चकना क्‍या मात्रे ॥ 
( २८ ) 
अंधा पूछे आफ्ताबको रे, 
उसे क्रिस मिसाल बतलाइये जी ? 
र्‌ 


9 5000909 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३४ भजन-सग्रह भाग ४ 


हजीडीलसली स्न्‍पि कप डज सलच टच २० १ २ + 2" > टच धर ढर+९५>५०५०५ २५ २७- 


वा नूर समान नहीं ओर 
कबने तमसील सुनाइये जी ॥ 
सत्र आँधरे मील दलील करें, 
ब्रिन दीदा दीदार न पाइये जी । 
यारा! अंदर यकीन विना, 
इलमसे क्या बतलाइये जी !॥ 
(२९ ) 
हम तो एक हुबाब हैं रे, 
साकिन बहरके बीच सदा। 
दरियावके बीच दरियावकी मोज है, 
बाहर नाहीं ग्रे खुदा॥ 
उठनेमे॑ छुवाब है, देखो, 
मिटनेमें. मुतलठक्‌ सोंदा । 
हुबाब तो ऐन दरियाव “यारी' 
वोहि नाम धरो है बुदबुदा ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यारी साहल हक 


जी ल टला टन क कल न्‍िध्व पक कक न वन खचकट आग टच चल ली ह 23ल जल 3८9 न्‍ जप ली पलन टडपट५ *५ल्‍७०८४३४%चम+ 


( ३० 2 
आज॒के बीच निमक जैसे, 
सबठो है येहि मिलि जाबे। 
यह भेदकी वात अबर है रे, 
यह वात मेरे नहिं मन भावे ॥ 
गवास होइके अंदर घँसइ, 
आदर सँवारके जोति लावे। 
यारा मुद्दा हासिल दुआ, 
आगेकों चलना क्‍या भावे ॥ 
(३१ ) 
गगन-गुफामें बेठिके हे 
उलठ्कि अपना आप देखे । 
अजपा जपें त्रिन जीभसों रे, 
ब्रिन नैन निरंजन रूप छेखे ॥ 
जोति बिना दीपक है रे, 
दोपक बिना जगमग पेखे। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


श््दृ भजनत-संग्रह भाग ४ 


थारी! अल्ख अलेख है रे, 
भेषके भीतर भेष भेषे ॥ 
( ३२) 
गगन-गुफामें बेठिके रे, 
अजपा जपै ब्रिन जीम सेती । 
त्रिकुटी संगम जोति है रे, 
तहँ देखि टेवे गुरु ज्ञान सेती ॥ 
सुन्न गुकामें ध्यान घरे, 
अनहद सुने बिन कान सेती । 
ययारी' कहे, सो साधु हैं रे, 
त्रिचार टेवे गुरु ध्यान सेती ॥) 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


खुसरो ३७ 


बिक 
खुसरा 
(१) 
बहुत रही बाबुल-धर दुरूहिन, 
चल, तेरे पीने बुलाई 
बहुत ग्वे०झ खेली सखियनसों, 
अंत करी छरकाई ॥ 
न्हाय-घोयके. बस्तर पहिरे, 
सत्र ही सिंगार बनाई। 
बिंदा करनकों कुट्ँब सत्र आये, 
पघिगरे लोग. लगाई ॥ 
चार कहारन  डॉली उठाः, 
संग... पुरोहित नाई 
चले ही बनेगी होत कहा है, 
नेनन नीर बहाई ॥ 
अंत बिदा हैं चलिहे दुलहिन, 
काहकी कछु न बसाई | 
मोज खुसी सब देखत रह गये, 
मात - पिता औ भाई॥ 


नमन 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


शे८ भजन-खग्रह भाग ४ 


अल्िडजडन अन्‍ऑशषिजचटेिटीअवचिल नल ऋतल 


मोरि कोन संग छरूगन घराई, 

धन-धन तोरि है खदाई। 
ब्िन माँगे मेरी मेंगनी जो दीन्‍्डी, 

पर-घरकी जो ठहराई ॥ 
अँगुरी पकरि मोरा पहुँचा भी पकरे, 

कंगना अंग्रठी पहराई । 
नोशाके सँग मोहि कर दीन्‍्हीं, 

छाज संकोच. मिटाइ ॥ 
सोना भी दौन्हा रूपा भी दीन्हा, 

बाबुल दिल-दरियाई । 
गहेल गहली डालति आँगनमें, 

अचानक पकर  बैठाड़ ॥ 
बैठत मलमल कपरे पहनाये, 

केसर तिछ॒क छगाई | 
खुसरो चली मसुरारी सजनी, 

संग नहीं कोइ जाई ॥ 


>-+२२४७७/९-९/९, ' ना. 82५ १०७००७- २/७/०९/९:४७८००---- 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ३९ 
दरिया साहब ( मारताइवाले ) 
(१) 
कहा कहूँ मेरे पिउकी बात ! 
जोर कहूँ सोइ अंग सुहात। 
जब्र में रही थी कन्या कारी, 
तब मेरे करम हता सिर भारी ॥ 
जब मेरे पिठसे मनसा दाड़ी, 
सतगुरु आन सगाई जोडी । 
तब्॒मैं पिउका मंगल गाया, 
जब मेरा खामी व्याहन आया ॥ 
हथलेवा दे बरेठी संगा, 
तब्र माहि लीन्ही बाय अंगा। 
जन 'दरिया' कहें, मिट गई दूती, 
आपा अरपि पीठ संग सूती ॥ 
(२) 
जाके उर उपजी नहिं भाई ! 
सो क्‍या जाने पीर पराई! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


8० भजन-संग्रह भाग ४ 


बजट च सच टच चंचल व न्‍च टच ट५ >०ट 3 न्‍प न्‍प टच >पल्‍प 25 ल०नच्ट ५ +स्‍न्‍च्शर न्‍टर “स्‍टबटोन्‍ट टच टच ला 5 2९० ४म पल ५ टच्जप > घट 5 


ब्यावर जाने पीरकी सार, 
बॉ नार क्‍या लठखे विकार । 
पतिव्रता पतिको ब्रत जाने, 
विभचारिन मिल कहा बखाने ? 
होरा पारख जौहरि पाबे, 
मूरख निरखके कहा बतावे ! 
छागा घाव कराहै. सो?, 
कोतुकहारके दर्द न कोई 
राम नाम मेरा प्रान-अधार, 
सोड़ राम-रस-पीजनहार 
जन “दरिया! जानेगा सोई; 
प्रेमकी भाल कलेज पो३ ॥ 
(३) 
जो धुनिया तो भी मैं राम तुम्हारा । 
अधम कमीन जात मति-हीना, 
तुम तो हो सिरताज हमारा ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


दारश्या साहब 


हि जल आज अर अर 


कायाका जंत्र सब्द मन मुठिया, 

सुखमन ताँत चढ़ाई । 
गगन-मेंडलमें घुनिया बैठा, 

मेरे सतगुरु कला सिखाई ॥ 
पाप पान हर कुबुध काँकड़ा, 

सहज-सहज झड़ जाई । 
घुंडी गाँठ रहन नहिं पाबै, 

इकरंगी होय. आइ॥ 
इकरेंग हुआ, भरा हरि चोला, 

हरि कहे, कहा दिलाऊँ : 
मैं नाहीं मेहनतका लोमी, 

बकप्तो मोज भक्ति निज पाऊ ॥ 
किरपा करि हरि बोले बानी, 

ठुम तो हो मम दास। 
दरिया! कहै, मेरे आतम भीतर 

मेलो राम भक्त-विखास ॥ 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


8२ भजन-संग्रह भाग ४ 


(४) 

आदि अन्त मेरा है राम, 

उन बिन और सकल बेकाम । 
कहा करूँ तेरा बेद-पुराना, 

जिन है सकल सकत बरमाना । 
कहा करूँ तेरी अनुभा-बानी, 

जिनतें मेरी बुद्धि भुछानी। 
कहा करू ये मान-बड़ाई, 

राम बिना सव ही दुस्‍्खदाई । 
कहा करूँ तेरा सांग्न्य औ जोंग, 

राम बिना सब्र बंधन रोग । 
कहा करूँ इन्द्रिकका सुक्ख, 

राम बिना देवा सत्र दुक्‍्ख । 
दरिया कहे, राम गुरुमुखिया, 
हरि ब्रिन दुखी, रामसेंग सुखिया ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ४३ 


(६) 

बाबुल केसे बिसरा जाई ! 

जदि मे पति-सँग रछ खेढूँगी, 
आपा धरम समाई | 

सतगुरु मेरे किरपा कीन्ही, 
उत्तम बर परनाई ; 

अब मेरे साइको सरम पड़ेगी, 
लेगा. चरन छगाई ॥ 


तें जानराय मै बाली भोली, 

ले निर्मल: मैं मैली ह 
तें बतराबें, में बोल न जाने, 

भेद न सकू सहेली। 
ते ब्रह्मममाव में आतम-कन्या, 


समझ न जाने बानी ; 
दरिया! कहे, पति पूरा पाया, 
यह निश्चय करि जानी ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३४७ भजन-संग्रह भाग ४ 


(६) 
पतिव्रता पति मिली है लाग, 
जहाँ गगन-मंडलमें परमभाग । 
जहाँ जल बिन कॉवला बहु अनंत, 
जहेँ बपु विनु भौरा गुंजरंत । 
अनहद बानी जहाँ अगम ग्वेल, 
जह दीपक ज* बिन बाती तेल | 
जहँ अनहद सबद है करत घोर, 
बिनु मुख बोले चात्रिक मोर । 
जहँ बिन रसना गुन वदति नारि, 
बत्रिन पग पातर निरतकारि । 
जहँ जल त्रिन सरवर भरा पूर, 
जहँ अनंत जोत बिन चंद-सूर | 
बारह मास जहाँ रितु बसंत, 
घरें ध्यान जहाँ अनँत संत | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


द॑ रिया साहब छ्ज 


त्रिकुटी सुखमन जहँ चुबत छीर, 

ब्रिन बादल बरसे मुक्ति नीर । 
अमरत-घारा जहाँ चले सीर, 

कोई पी त्रिरछा संत धीर | 
रंकार धुन अरूप . एक, 

सुरत गही उनहीकी टेक । 
जन “दरिया! बैराट चूर, 

जहाँ ब्रिरला पहुँचे संत सर ॥ 

(७) 
संतो, कहा गृहस्थ कहा त्यागी । 

जेहि देखूँ तेहि बाहर-भीतर, 

घन्‍्-घट माया छागी। 
माटीकी भीत, पत्रनका थंमा, 

गुन-ओगुनसे छाया । 
पाँच तत्त आकार मिलाकर 

सहजें गिरह बनाया । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३६ भजन-संग्रह भाग ४ 


क्लखिल्स्स्लपडधिटधिडचिन्‍ल चिट चल टच टच विविध ट्लत्ल पल टच टच न्‍प ल्‍प वि न्‍ चल अच्ल्‍चि टच न्‍च्ल्‍चल्‍चन्‍न्‍  व्ख चिट चिल चल पट चन्‍ 


मन भयो पिता, मनसा भई माई, 

दुख-सुख दोनों भाई ; 
आसा-तृस्ना-बहने... मिलकर, 

गृहकी  सौंज बनाई । 
मोह भयों पुरुष, कुबुधि भई घरनी, 

पाँचोा. छड़का जाया ; 
प्रकृति अनंत कुटम्बी मिलकर, 

कछहलणठ बहुत मचाया। 
लड़कोंके सँग छड़की जाड, 

ताका नाम अधीरी ; 
बनमें बेठी घर-घर डोले, 

खारथ-संग. खपी री। 
पाप-पुन्य दोउ पार-पड़ोंसी, 

अनंत बापना नाती ; 
रागद्रपषका बंधन छागा, 

गिरहई बना उतपाती। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ३७ 


कोइ गृह माँड़ि गिरहमें बैठा, 

बैरोगी बन बासा; 
जन ददरिया' इक राम-भजन विन 

घट-घटमें धर-बासा ॥ 

(4) 

सत्र जग सोता खुध नहीं पाते, 

बोले सो सोता बरडाबे। 
संसय मोह भरमकी रेैन, 

अंध घुंध होय सोते ऐन | 
जप तप संजम औ आचार, 

यह सत्र सुपनेके ब्योहार । 
तीर्थ दान जग प्रतिमा सेवा, 

यह सत्र सुपना लेवा-देवा । 
कहना-सुनना, हार ओ जीत, 

पछा-पछी सुपनो बिपरीत । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


घ्ट८ भजन-संग्रह भाग ४ 


चार बरन औ आश्रम चार, 
सुपना-अन्तर सब्र व्योहार | 
पठ दरसन आदा मभेद-भाव, 
सुपना-अन्तर सब्र दरसाव । 
राजा राना तप बलवंता, 
सुपना माहीं सत्र बरतंता। 
पोर ओलिया सत्र सयाना, 
ख्वात्रमाहिं बरते बिधि नाना । 
काजी सैयद आओ सुलताना, 
ग्वाबमाहिं सव करत पयाना। 
सांख्य, जोग औओ नोधा भकती, 
सुपनामें इनकी इक बिरती । 
काया-कसनी दया ओ धर्म, 
सुपने सुग औ बंधन कर्म । 
काम क्रोघ हत्या पर-नास, 
सुपनामाहीं नरक-निवास | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


दरिया साहब 


आदि भवानी संकर देवा, 

यह सत्र सपना देवा-लेवा । 
ब्रह्मा विस्नू दस ओऔतार, 

सुपना-अंतर सब ब्योहार । 
उदमिज सेदज जेरज अंडा, 

सुपन रूप वरते ब्रह्मंडा। 
उपज बरते अरु बिनसावे, 

सुपने-अंतर सत्र दरसावै। 
त्याग ग्रहन खुपना-ब्याहारा, 

जो जागा सो सबसे न्यारा। 
जो कोइ साध जागिया चावे, 

सो सतगुरुके सरने आवै। 
कृत-कृत बिसला-जोग समागी, 

गुरुमुख चेत सब्द-मुख जागी। 
संसय मोह भरम निमि-नास, 

आतमराम सहज परकास । 


९ 


हप्टपलचती नाहचिलप चली ५ +८सल चल 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


७ भजन-संग्रह भाग ४ 


ल्ध्लय्ट ज मच 2५ 5 च्त्ज 


राम समालू सहज धर ध्यान 

पाछे सहज प्रकासे ज्ञान । 
जन 'दरियाव' सोइ बड़भागी, 

जाकी सुरत बह्म-संग झागी॥ 

(५९) 
आदि अनादी मेरा साई । 

दृष्ट न मुष्ठ है, अगम, अगोचर, 

यह सब माया उनहीं माई । 
जो बनमाली सीच मूल, 

सहज पित्रें डाल फछ फूल । 
जो नरपतिकों गिरह बुलावे, 

सेना सकल सहज ही आत्रे । 
जो कोई कर भान ग्रकामे, 

तो निम्ति तारा सहजहि नासे । 
गरुड-पंख जो घरमें ले, 

सप॑ जाति रहन नहिं पाबे। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ७९ 


दरिया' सुमिंर एकहि राम, 

एक राम सार सत्र काम ॥ 
( १० ) 

जो सुमिम्मँ तो पूरन राम | 

अग्मम अपार, पार नहि जाको, 
है सत्र संतनका बिसराम। 

कोटि बिस्नु जाके अगवानी, 
संख चक्र सत सारँगपानी । 

कोटि कारकुन त्रिधि कमघार, 
प्रजापति मुनि बहु जिस्तार । 

कोटि काऊ संकर कोतबाल, 
भैरव दुर्गा घरम जिचार । 

अनंत संत ठाड़े दरबार, 
आठ सिधि नो निधि द्वारपाल । 

कोटि बेद जाकों जस गाते, 
विद्या कोटि जाको पार न पावें 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ज२ भजन-संग्रह भाग ४ 


कोटि अकास जाके मवन दुवारे, 

प्ननकारि जाके चँबर टुरावे । 
कोटि तेज जाके ते रसोय, 

बरुन कोटि जाके नीर समोय । 
पृथी कोटि फुलबारों गंघ, 

सुरत कोटि जाके लाया बंध । 
चंद सूर जाके कोटि चिराग, 

लक्ष्मी कोटि जाके राँध पाग । 
अनंत संत ओर खिल्वत खाना, 

छख-चोरासी पे दिवाना | 
कोटि पाप कॉपें बल-छीन, 

कोटि घरम आगे आधघीन | 
सागर कोटि जाके कलठसघार, 

छपन कोटि जाके पनिहार । 
कोटि सन्‍्तोष जाके भरा भंडार, 

कोटि कुबेर जाके मायाधार । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब जड़ 
कोटि खगे जाके सुखरूप, 
कोटि नक जाके अन्धकृप । 
कोटि करम जाके उत्पतिकार, 
किला कोटि बरतावनहार । 
आदि अन्त मद्ध नहिं. जाको, 
काश पार न पावे ताको। 
जन दरग्यिका साहब सो, 
तापर और न दृजा कोई॥ 
( ११ 2 
चल-चल र हंसा, राम-सिन्त्र, 
बागड़में क्या त्‌ रद्यों बन्‍्च । 
जहाँ निर्जह घरता, बहुत धूर, 
जहँ साकित बस्ती दूर-दूर | 
ग्रीपम ऋतुमं तप. भोम, 
जहँ आतम दुखिया रोम-रोम । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ज्छ भजन-संग्रह भाग ४ 


भूख-प्यात दूख सहै आन, 

जहँ मुक्ताहछ नहिं खान-पान । 
जउवा नारू. दुखित रोग, 

जहाँ मैं-तें बानी हरप-सोग। 
माया बागड़ बरनी येह, 

अब्र राम-सिन्ध बरनूँ सुन लेह । 
अगम अगोचर कथ्या न जाय, 

अब अनुभवमाहीं कहूँ सुनाय। 
अगम पन्‍थ है. राम-नाम, 

गिरह बसी जाय परमधाम | 
मानसरोावर बिमल. नीर, 

जहाँ. हंस-समागम तीर-तीर । 
जहाँ मुक्ताहल बहु खान-पान, 

जहँ अवगत तीरथ नित सनान । 
पाप-पुन्यकी. नहीं छोत, 

जहाँ गुरु-सिष-मेला सहज हं।त | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब जज 


कश्चिलिडटिडट टच टेलर तर ८ बढ? 02५टन्‍५2 ५७८५०८०५८५- ५८५ ५ ४५८४८ 7७/००५८०२४८ ४०४१ 4 ७ट ४तज -/७१५१५८१४१४०४०७८४७ 


गुन इन्द्री मम रहे थाक, 

जहँ पहुँच न सकते बेद-ब्राक । 
अगम देस जहाँ अभयराय, 

जन दरिया, सुरत अकेली जाय ॥ 

( १२ ) 

चल-चल रे सुआ, तेरे आदरगाज, 

पिजरामें बैठा कौन काज ! 
बिछीका देख दहै जोर, 

मारे. पिंजरा तोर-तोर। 
मरने पहले मरो घीर, 

जो पाछे मुक्ता सहज छीर | 
सतगुरु-सब्द हदेंमे.. धार, 

सहजाँ-सह्जा करो उचार। 
ग्रेम-प्रचाह घसेँ जब आभ, 

नाद प्रकासँ परम लाभ। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


५६ 


बट 3 


फिर गिरह बसाओ गगन जाय 
जह बिल्ली ग्रृत्यु न पहुँचे आय | 


भजन-संग्रह भाग ४9 


आम फल जहाँ रस अनन्त 
जह सुखमें पाओ परम तन्‍्त | 
झिरमिर-पझिसमिर बरसे नर 
“न 
हि विन कर बाजै ताल्यर | 
न दरिया आनन्द पूर 
जह त्रिरठा पहुँचे भाग भूर || 
( १३ ) 


नाम ब्रिन भाव करम नहिं 
साध-संग और राम-मजन विन, 
.... का निरन्तर छूटे ॥ 
मठसती जो मलको श्षौत्रे 
सो मल केसे छूटे । 
अमका साबुन नामका पानी 


दोय मिल ताँता टहे ॥ 


छ्ट । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


दरिया साहब जु७छ 


मेद-अभेद भरमका भाँडा, 


चोंड़े पड़-पड़ फटे । 
गुरुमुख-सब्द गहे उर-अन्तर, 

सकछ भरमसे छूटे ॥ 
रामका ध्यान त घर रे प्रानी, 

अमरतका मेंह बूटे। 
जन दरियाव, अरप दे आपा, 

जरा-मरन तब टूटे ॥ 

( १४) 

दुनियाँ भरम भूल बौराई; 

आतमराम सकल घट भीतर, 

जाकी सुद्ध न पाई। 
मथुरा कासी जाय द्वारिका, 

अरप्तठ तीरथ न्हावे ; 
सतगुरु त्रिन सोधा नहिं. कोई, 

फिर-फिर गोता खावे। 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ज्ट भजन-संग्रह भाग ४ 


चेतन मूरत जड़को सेवै, 

बड़ा थूल मत गेला ; 
देह-अचार किया कहा हो, 

भीतर हे मन मेग। 
जप-तप-संजम. काया-कसनी, 

सांख्य जोंग ब्रत दाना ; 
गोपी, ली) अर - मेला: 

गुनहर करम बँघाना । 
बकता हे हैं कथा सुनात्रै, 

स्रोता सुन॒घर आवे ; 
ज्ञान-ध्यानकी समझ न कोई, 

कह-सुन जनम मगंँबावे । 
जन दरिया, यह बड़ा अचंभा, 

कहे न समझे कोर ; 
भेड-पूँछ गहि सागर डॉँघ, 

निश्चय डूबे सो३॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब चर 


क्‍न्‍पली कजासीच न्‍स्टच नप र अधिटा पल 2७४ ड़ ह अजिजलओ खन्‍जीज जज वचन कट चर 


( $७५ ) 
मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा ! 

ब्रह्मा बिस्नु महेसुर इसा, 

ते भी बंछे सेवा । 
सेस सहस मुख निसिदिन ध्यावे, 

आतम ब्रह्म न पावै ; 
चाँद सूर तेरी आरति गाव, 

हिरदय भक्ति न आज । 
अनन्त जीव तेरी करत भावना, 

भरमत त्रिकल अयाना ; 
गुरु-परताप अखेंड लो छागी, 

सो तोहि माहि समाना । 
बैकुंड आदि सो अड्ज मायाका, 

नरक अन्त अँग माया ; 
पारब्रह्म सो तो अगम अयोचर, 

कोइ त्रिरता अलख ठखाया | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


६० भजन-संग्रह भाग ४ 


टी टप्लण २५2० >२२५२४०-० ८४४०२ ८५ ५४ - रत अखव्स्लखिखिकिलिकिखल चल चन्‍ ० 


जन दरिया, यह अकथ कथा है, 
अकथ कहा क्‍या जाई ; 
पंछीका खोज, मीनका मारग, 


घठ-खंठ रहा समाई ॥ 
( १६ 2 
जीब बटाऊ रे बहता मारग माह ; 
आठ. पदरका चालना, 


घड़ी इक ठहो नाई 
गर्भ जनम बालक भयो रे, 

तरुनाई गरबान ; 
बद्ध मृतत फिर गरभ -बसेरा, 

यह मारग परमान | 
पाप-पुन्य सुख-दुःखकी करनी, 

बेड़ी थारे छागी पाँय ; 
पश्च ठगोंक्रे बसमें पड़ो रे, 

कब्र घर पहुँचे जाय। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ६१ 


चौरासी बासो व बस्यों रे, 
अपना कर-कर जान ; 
निस्चय निस्चल होयगो रे त, 
पद पहुँचे निर्बान । 
राम ब्रिना तोकों ठोर नहीं रे, 
जहँ जाबे तहँ काल ; 
जन दरिया मन उल्ठ जगतसूँ, 
अपना राम संभाल ॥ 
( १७ ) 
है कोइ सन्‍त राम अनुरागी, 
जाकी सुरत साहबस लागी:£ 
अरस-परस पित्रके संग राती, 
होय रही. पतिबरता ; 
दुनियाँ भाव कछ नहिं समझे, 
ज्यों समुंद समानी सरिता। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


धरे भजन-संग्रह साग ४ 


ब्न्ब्ल्व््च्ज्ध्ल्प्ल्प्ख्ल््लख्कल्कल्स्व्प्ल््टच्लि व्ख्टिप्डध्व्टचिटिड्ल कल स्टील पलपल पन्‍तक्‍डिडचि टच खटच न्‍च ली न्‍पध पल णत 7 


मीन जाय करि समुंद समानी 
जहँ. देखे तहाँ पानी ; 

काल कीरका जाल न पहुँचे, 
निर्भय ठोर. छ॒भानी 


बावन चन्दन भोंरा पहुँचा, 
जहेँ. बेटे तहँ .गन्धा 
उड़ना छोड़के थिर हें बैठा, 
निम्तेदिन करत अनन्दा। 
जन दरिया, इक राम-भजन कर, 
भरम-वासना खोई ; 
पारस परसि भया छोह कंचन, 
बहुरि न छोहा हो$॥ 
( $८ ) 
मुरली कोन बजाबें हो, 
गगन-मेंडलके. बीच ? 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ६३ 


त्रिकुटी-संगम होयकर, 

गंग -जमुनके घाट ; 
या मुरछठीके दब्दसे, 

सहज रचा. बैराठ । 
गंग-जमुन-बिच मुर्छी बाजे, 

उत्तर दिसि धुन होहि ; 
वा मुरर्णकी टेरहिं सुन-सुन, 

रहीं गोपिका मोहि। 
जहाँ अधर डाछी हंसा बैठा, 

चूगत मुक्ता होर; 
आनंद चकवा केल करत है, 

मानसरोवर-तीर | 
सब्द धुन मिरदंग बजत है, 

बारह मास बसन्‍्त ; 
अनहद ध्यान अखंड आतुर वे, 

घारत सत्र ही सन्त । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


६३४ भजन-संग्रह भाग_४ 


कान्ह गोपी करत नृत्यहिं, 
चरन बपु हि बिना ; 
नैन ब्रिन दरियाव' देखे, 
आनंदरूप घना ॥ 
( १६ ) 
ऐसा साधू करम दे । 
अपना राम कबहूँ नहिं त्िसरे, 
बुरो-मछी सब सीस सहै। 
हस्ती चले भूके बहु कृकर, 
ताका ओऔगुन उर न गहै ; 
वांकी कबहूँ. मन नहिं आने, 
निराकारकी ओठट रहै। 
घधनको पाय भया धनवन्ता, 
निरधन मिल उन बुरा कहै ; 
वाकी कबहेँ न मनमे लाबे, 
अपने घन सेँग जाय रहे । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब हज 


पतिको पाय भई पतिबरता, 
बह विभचारिन हॉाँसि करे ; 
वाके सड् कबहँ नहिं जावे, 
पतिसे मिठ्कर चिता जहरै। 
दरिया' राम भजे सो साथ, 
जगत भेषप उपहास के ; 
वाको दोप न अन्तर आने 
चढ़ नाम-जहाज भव-सिन्ध तरे । 
( २० ) 
साहब मेरे राम हैं, मैं उनकी दासी; 
जो बान्या सो बन रग्मा, आज्ञा अबिनासी। 
अरघ-उरघ पट केबल विच, करतार छिपाया ; 
सतगुरु मिल किरपा करी, कोइ विरले पाया । 
तीन छोक, चोंदह भुवन, केवल वह भरपूरा ; 
हाजिराँसे हाजिर सदा, वह दरॉसे दूरा। 


है| 


9 5009५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


द६ भमजन-संग्रह भाग ७ 


कस 


पाप-पुन्य दोड रूप हैं, उनहींकी माया ; 
साधनके बरतन सदा, भरमे भरमाया | 
जन दरिया, इक राम भज, भजबेकी बारा ; 
जिन यह भार उठाश्या, उनके सिर भारा ॥ 
(२१ ) 

अमृत नीका कहे सब कोई, 

पीये बिना अमर नहिं होई। 
कोइ कहे, अमृत बसे पताल, 

नके॑ अन्त नित ग्रासै कार । 
कोइ कहे, अम्रत समुन्द्र माहीं, 

बड़वा अगिन क्यों सोखत ताही * 
कोइ कहे, अमृत ससिमें बास, 

घटे-बढ़ें क्‍यों होइहै नास £ 
कोइ कहे, अम्रत सुरगाँ माहिं, 

देव पियें क्‍यों खिर-खिर जाहिं ! 


ट्रक पे आप या यम यार जय या आस च उे जा सर जे जे पा पी फीस पट पीट शव 


9 50099 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥900५९॥९॥।॥8०॥॥॥ 


दरिया साहब १७ 


सब अमृत बातोंका बात, 
अमृत हे सन्तनके साथ । 
दरिया! अमृत नाम अनंत, 
जाको पी-पी अमर भये सन्त ॥ 
( २२ ) 
साधो, अल्ख निरंजन सोई ॥ 
गुरु-परताप राम-रस निर्मल, 
और न दृजा कोई 
सकल ज्ञानपर ज्ञान दयानिधि, 
सकल जं(तिपर जोती | 
जाके ध्यान सहज अधथ नासे, 
सहज मिट जम छोती । 
जाकी कथाके सरवनतेही, 
सरवन जागत . होई 
ब्रह्मा-बिस्त-सहेस अरु. दूगो, 
पार॒न पावे कोई। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


६८ भजन-संग्रह जाग ४ 


सुमिर-सुमिर जन होइहें राना, 
अति झीनान्सेनझीना । 
अजर, अमर, अच्छय अबिनासी, 
महा बीन परबीना | 
अनंत संत जाके आस-पियासा, 
अगन मगन चिर जावें। 
जन दरिया, दासनके दासा, 
महाकृपा-रस पे ॥ 
( २३ 2 
राम-नाम नहिं हिरदे धरा, 
जैसा पसुवा तैसा नग। 
पसुवा-नर उद्यम कर खाबै, 
पसुवा तो जंगल चर आवे | 
पसुवा आवबे, .पखुबा जाय, 
पसुबा चर ओ पसुवा खाय । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दरिया साहब ६५९ 


जब्ज कब ० बटबल उ ७४० ५८०००० ५० ८४८० >४०. ४४२७ ०४-०7 ७ 


राम-नाम ध्याया नहिं माह, 
जनम गया पसुवाकी नाई । 
रामनामसे . नाही प्रीत, 
यह सब ही पसुर्वोकी रीत। 
जीवत सुख-दुखमें दिन भरे, 
मुवा पछे चौरासी परे। 
जन दरिया, जिन राम न ध्याया, 
पसुवा ही ज्यों जनम गँवाया ॥ 
( २४ ) 
साधो, हरि-पद कठिन कहानी । 
काजी पण्डित मरम न जानें, 
कोइ-कोइ बिरठा. जानी । 
अल्हको लहना, अगहको गहना, 
अजरको जरना, ब्रिन मौत मरना । 
अघरको घरना, अलछ्खको लखना, 
नेन त्िन देखना, बिन पानी घट भरना । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


० भजन-संग्रह भार ४ 


टलस्टिल पट टपज डी आल जप जब + ४१५०८ २3८: ४७८ ४७० होड़ हच्लक्‍ ली खचचच 


अमिलसूँ मिलना, पाँव बिन चलना, 
बिन अगिनके दहना, तीरथ बिन न्हावना। 
पन्‍थ बिन जावना, बस्तु बिन पावना, 
बिन गेहके रहना, बिना मुख गावना | 
रूप न रेख, बेद नहिं सिमृति, 
नहिं. जाति बरन कुल-काना । 
जन दरिया, गुरुगमतें पाया, 
निरभय पद निरबाना | 
( २७ ) 
साधो, राम अनूपम बानी । 
पूरा मिला तो वह पद पाया, 
मिट गई खैंचातानी । 
मूल चाँप ढ़ आसन बैठा, 
ध्यान धनीसे लछाया। 
उल्टा नाद कँवलके मारग, 
गगना माहि.ः समाया। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


दरिया साहब 


गुरुके सब्दकी कूंजी सेती, 

अनंत कोठरी खोली । 
ध्रंके लोकप कल्स बिराजै, 

रंकार घुन बोली । 
बसत अगाघ अगम सुख-सागर, 

देख सुरत बौराई। 
बस्तु घर्नी, पर बरतन ओछा, 

उलट अपूठी आई। 
छुरत सब्द मिल परचा हुआ, 

मेरु मद्धका पाया। 
तामें पैसे गगनमें आया, 

जायके अलख लखाया । 
पग बिन पातुर, कर बिन बाजा, 

बिन मुख गाें नारी । 
बिन बादल जहाँ मेहा बरसे, 

ढुमक-हुमक झुख-क्यारी । 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


७२ भसजन-संग्रह भाग ४ 


जन दरियाव, प्रेम-गुन गाया, 

वहाँ मेरा अरट चलाया । 
मेरुदंड होय नाल चली है, 

गगन-बाग जहाँ पाया ॥ 

( २६ ) 
राम भरोसा राखिये, ऊनित नहीं काई। 
पूरनहारा पूरसी, कल मत भाई ! 
जल दिखे आकाससे, कहो कहाँसे आवबे * 
बिन जतना ही चह“ँ दिसा, दह चाल चलावे। 
चात्रिक भू-जल ना पिवै, बिन अहार न जीबे । 
हर वाहीको पूरब, अन्तरगत पीवे । 
राजहंस मुकता चुगे, कछु गाँठ न बाँचे , 
ताको साहब देत है, अपनों बत्रत साभे। 
गरभ-बासमें जाय करि, जिव उद्यम न करही ; 
जानराय जाने सबै, उनको वहिं भरही। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


दरिया साइय ७ 


तीन लोक चोदह भुवन, कर सहज पग्रकासा । 
जाके सिर समरथ धनी, सोचे क्या दासा ! 
जबसे यह बाना बना, सब समझ बनाई , 
दरिया! ब्रिकलप मैटिके, भज राम सहाई॥ 
( २७ ) 
सतगुरुसे सब्द छे, रसना रठन कर, 
हिरदेमें आनकर ध्यान छात्रे। 
पट-कँँवल बेघकर, नाभि-कँँबल छेदकर, 
कामकी लोप पाताल जाबे। 
जहँ साँइको सीस ले, जमके सिर पाँव दे, 
मेरु मघ होय आकास आबे। 
अगम है बाग्म जहँ, निगम गुल खिल रहा, 
दास दरियाव, दीदार पाबै ॥ 


और०- नि त>- >>, 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


७्छ अजन-संप्रह भाग ४ 


ताज 
(१) 
छेल जो छत्रीला, सब रंगमें रैगीला, बड़ा, 
चित्तका अडीला, कहूँ देवतेंसे न्यारा है । 
माल गले सोहे, नाक-मोती सेत जो है, कान 
कुंडल मन मोहै, छाल मुकुट सिर धारा है । 
दुष्ट जन मारे, सब सन्त जो उबारे 'ताज 
चित्तमें निहारे प्रन-प्रीति करनवारा है । 
नन्‍्दजूका प्यारा, जिन कंसको पछारा, वह, 
वृन्दावनवारा, कृष्ण साहब हमारा है ॥ 
(२) 
ध्रुवसे, प्रह्ाद, गज, ग्राहसे अहिल्या देखि 
सौंरी ओर गीघ यों विभीषन जिन तारे हैं । 
पापी अजामीछ, सूर, तुलसी, रंदास कहूँ , 
नानक, मढछक, ताज” हरिहीके प्यारे हैं ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ताज जज 


धनी, नामदेव, दादू, सदना कसाई जानि, 
गनिका, कबीर, मीरा, सेन उर धारे हैं । 
जगतकौ जीवन जहान बीच नाम सुन्यो, 
राधाके वक्ठम कृष्ण वल्लम हमारे हैं ॥ 
(३) 
कोऊ जन सेवें शाह राजा राव ठाकुरकों, 
कोऊ जन सेवें मैरों भूप काजसार हैं। 
कोऊ जन सेबैं देवी चंडिका प्रचंडीहीकों, 
कोऊ जन सेवैं 'ताज” गनपति सिरभार हैं || 
कोऊ जन सेवें प्रेत-भूत भवसागरकों, 
कोऊ जन सेवैं जग कहूँ बार-बार हैं । 
काहके ईस बिधि संकरकों नेम बड़ो, 
मेरे तों अधघार एक नन्दके कुमार हैं ॥ 
(४) 
साहब सिरताज हुआ नन्दजूका आप पूत, 
मार जिन अछुर करी काछी-सिर छाप है। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


छ दे भजन-संग्रह भाग ४ 


कुन्दनपुर जायकें सहाय करो भीषमकी, 
रुकमिनीकी टेक राखी लगी नहिं खाप है ॥ 
पांडवकी पच्छ करी द्रोपदी बढ़ाय चीर, 
दीन-से सुदामाकी मेठी जिन ताप है । 
निहचे करि सोधि लेहु ज्ञानी-गुनवान बेगि, 
जममें अनूप मित्र कृष्णका मिलाप है॥ 
(७५) 
सुनो दिलजानी मेरे दिलकी कहानी तुम, 
दस्त ही बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं । 
देवपूजा ठानी मैं निवाजट् मुलनी, तजे 
कलमा-कुरान साड़े गुननि गहूँगी में || 
साँवछा सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये, 
तेरे नेह दागमें निदाघ हे दहूँगी मैं । 
नंदके कुमार, कुरबान तेरी सूरत, 
हों तो मुगलानी हिंद॒वानी ह्वे रहूँगी मैं ॥ 


नाओबकीत-- 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


देख ७फक 


शेख 
(१) 
मिटि गयो मौन, पौन-साध्रनकी सुधि गई, 
भूछी जोग-जुगति, विसारथो तप बनकौ । 
'शेख' प्यारे मनको उज्यारों भयो प्रेम नेम, 
तिमिर अज्ञान गुन नास्यो आालठपनको॥ 
चरनकमलहीकी ठोचनमें छोच घरी, 
रोचन हे राच्यो, सोच मिट्यो घाम-घचनकौ । 
सोक लेस नेकहूँ, कछलेसकों न छेस रहयो, 
सुमरि श्रीगोकठेस गो कलेस मनकौ ॥ 


हि 42725 के; 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


छ््८ भजन-संग्रह भाग ४ 


(१) 
यारो, सुनो य दधिके लुटेयाका बालपन , 
ओ मधुपुरी नगरके बसैयाका बारूपन। 
मोहनसरूप . नृत्य-करेयाका बालपन , 
बन-बनके ग्वाल गौवें चरेयाका बालपन। 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहेँ मैं क्ृष्ण-कन्हेयाक्ा बालपन ॥ 

(२) 
ज़ाहिरमें सुत वो नंद जसोदाके आप थे , 
बरना वो आपी माई थे और आपी बाप थे । 
परदेमें बालपनके ये उनके मिलछाप थे , 
जोती-सरूप कहिए जिन्हें सो वो आप थे | 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नझ्ीर छ्य्‌ 


(३) 
उनको तो बालूपनसे न था काम कुछ ज़रा , 
संसारकी जो रीत थी उसको रखा बजा। 
मालिक थे वह तो आपी, उन्हें बाल्पनसे क्या ? 
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा सब एक था । 
ऐसा था बाँसुरोीक बजेयाका बाल्पन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
(४) 
बाले थे बिजराज, जो दुनियाँमें आ गये , 
लीलाके छाख रंग तमाशे दिखा गये। 
इस बालपनके रूपमें कितनोंको भा गये , 
एक यह भी लहर थी जो जहाँको जता गये । 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालरूपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बारूपन ॥ 
(७) 
परदा न बालपनका वो करते अगर जरा , 
क्या ताब थी जो कोई नज़र भरके देखता । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


८० भजन-संग्रह भाग 8 


न््व््लिखि्कलकिनान चअआचचक अचल ऑल लि ली लत + + बल पट +- २०४5 ८ 


झाड़ ओ पहाड़ देते सभी अपना सर झुका , 
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था । 
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बाल्पन ॥ 
(६) 
अब घुटनियोंका उनके मैं चलना बयाँ करूँ ? 
या मीठी बातें मुँहसे निकलना बयाँ करूँ ! 
या वालकोंगें इस तरह पलना बयाँ करूँ ? 
या गोदियोंमें उनका मचलना बयाँ करूँ | 
ऐसा था बॉँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कट मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
(७) 
पाठी पकड़के चलने लगे जब मदनगोपाल , 
घरती तमाम हो गई एक आनमें निहारू। 
बासुकि चरन छुअनकों चले छोड़के पताल , 
आकासपर भी धूम मर्ची देख उनकी चाल । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नज्ीर ८१ 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बाहूपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 

(८५) 
करने छंगे य॒ घूम जो गिरघारी नंदलाल , 
इक आप ओर दूसरे साथ उनके खाल-बाल | 
माखन दही चुराने छगे, सबके देख भाल , 
दी अपने दृूध-चोरीकी धर घरमें घूम डाल । 
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 

(९) 
कोठेमें होते फिर तो उसीको डढोरना , 
मठका हो तो उसीमें भी जा मुखको बोरना | 
ऊँचा हो तो भी कंपेप चढ़के न छोड़ना , 
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरठीसे फोड़ना । 
ऐसा था बॉँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(१०) 
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ , 
ओ उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले वाँ । 
मैं तो तेरे दह्की उड़ाता था मक्खियाँ , 
खाता नहीं मैं उसको, निकाले था चींटियाँ । 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ में कृष्ण-कन्हैयाका बालपन | 
(११ ) 
गुस्सेमें कोई हाथ पकड़ती जो आनकर , 
तो उसको वह खरूप दिखाते थे मुर्लोघर । 
जो आपी लाके घरती वो माखन कटोरीमर , 
गुस्सा वो उसका आनमें जाता वहाँ उतर । 
ऐसा था बॉसुरीके बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बाल्पन ॥ 
(१४२) 
उनको तो देख ग्वालिनें जो जान पाती थीं , 
घरमें इसी बहानेसे उनको बुलाती थीं। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


#घ३७त सेल ली ज लिखित कवच ला विष ला व्टध्टप् कि च्ल वच्ट कि ल ल कप कब च न जग सचन्‍ 2 ती 4५७८४ कि 2४४ 4४ 


जाहिरमें उनके हाथसे वे गुल मचाती थीं 
परदे सबी वो कृष्णकी बलिहारी जाती थीं । 
ऐसा था बॉाँसुरीके बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
( १३ ) 
कहती थीं दिल्में, दूध जो अब हम छिपायँगे , 
श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुँह दिखायेँगे । 
ओर जो हमारे घरमें ये माखन न पायेंगे , 
तो उनको क्‍या गरज है वो काहेको आयेंगे । 
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्रष्ण-कन्हैयाका बारूपन ॥ 
( १४) 
सब मिल जसोदा पास यह कहती थीं आके, बीर , 
अब तो तुम्हारा कान्हा हुआ है बड़ा सरीर। 
देता है हमकों गालियाँ, आ फाड़ता है चौर , 
छोड़े दद्दी न दूध, न माखन मही न खीर । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


८४ भजन-संग्रह भाग ४ 


ऐसा था बाँसुरीक बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
( १५) 
माता जसोदा उनकी बहुत करतीं मितियाँ , 
औ कान्हकों डरातीं उठा मनकी साँटियाँ। 
तब कान्हजी जसोदासे करते यही बरयाँ, 
तुम सच न मानो मेया ये सारी हैं झूठियाँ। 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्रप्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
( १६ 2) 
माता, कभी ये मुझको पकइकर ले जाती हैं , 
ओ गाने अपने साथ मुझे मी गवाती हैं। 
सत्र नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं , 
आपी तुम्हारे पास ये फ़रियादी आती हैं। 
ऐसा था बाँसुराके बजैयाका बरालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नज्ीर ८ण्‌ 


( ३७ ) 
मैया, कभी ये मेरी छगुलिया छिपाती हैं , 
जाता हूँ राहमें तो मुझे छेड़े जाती हैं। 
आपी मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं, 
मारो इन्हें ये मुझकों बहुत-सा सताती हैं। 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
( १८ ) 
इक रोज मुँहमें कान्हन माखन छिपा लिया , 
पूछा जसोंदाने तो वहाँ मुँह बना दिया। 
मुँह खोल तीन छोकका आल्म दिखा दिया , 
इक आनमें दिखा दिया आ फिर भुला दिया। 
ऐसा था वाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन॥ 
( १६ ) 
थ्र॒ कानन्‍्हजी तो नंद-जसोदाके घरके माह , 
मोहन नवलकिसोरकी थी सबके दिलमें चाह । 


2 ७०५५०५७०५७०५७०५०४८४५७०५०५८०५०७८०७८६८५००७०८४०४० 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ढई भजन-संग्रह भाग ४ 


उनको जो देखता था, सो करता था वाह वाह , 
ऐसा तो बालपन न किसीका हुआ है आह | 
ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालपन॥ 
(२० ) 
राधारमनके यारो अजब्च जाये गोर थे , 
लड़कोंमें वो कहाँ है जो कुछ उनमें तौर थे | 
आपी वो प्रभु नाथ थ, आपी वो दौर थे , 
उनके तो ब्रालपनहीमें तबर कुछ और थे । 
ऐसा था बोॉसुरीके बजजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ृष्ण-कन्हैयाका बालूपन ॥ 
(२१ ) 
होता है यों तो बालपन हर तिफ़्कका मला , 
पर उनके बालपनमें तो कुछ ओरी भेद था। 
इस भेदकी भला जी किसीकों खबर है क्या ! 
क्या जाने अपनी खेलने आये थे क्या कला | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नक्षीर ८७ 


जज च जी जज चल < जी विज जि जी जी >> +ज>तप> ५2 पट 
04 वि अर का से न के कक 


ऐसा था बाँसुरीके बजेयाका बालपन , 
क्या-क्या कहूँ मैं क्ष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥ 
( २२ ) 
सब मिलके यारो, कृष्णमुरारीकी बोलो जै, 
गोविंद-कुंज-छेल-बिहारीकी बोलो जै। 
दधिचोर गोपीनाथ, बिहारीकी बोलो जे , 
तुम भी “नज़ौर” कृष्णमुरारीकी “बोलो जै। 
ऐसा था बाँसुरीकि बजैयाका बालपन , 
क्या-क्या कह़ँ मैं क्रष्ण-कन्हैयाका बालूपन ॥ 
(१) 
जब मुरलीधघरने मुरठीकों अपने अधर घरी , 
क्या-क्या परेम-प्रीत-भरी उसमें घुन भरी । 
ले उसमें राधे-राधे! की हरदम भरी खरी , 
लहराई धुन जो उसकी इधर ओ उधर ज़री। 
सत्र सुननेवाले कह उठे जे जै हरी हरी , 
ऐसी बजाई क्रृष्ण-कन्हैयाने बॉँसुरी॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


८८ भजन-संग्रह भाग ४ 


(२) 
ग्वालोंमं नंदलाल बजाते वो जिस घड़ी , 
गोएँ धुन उसकी सुननेको रह जातीं सत्र खड़ी । 
गलियोंमें जब बजाते तो वह उसकी घुन बड़ी , 
ले-लेके अपनी लहर जहाँ कानमें पड़ी । 
सब छुननेवाले कह उठे जे जे हरी हरी , 
ऐसी बजाई क्ृष्ण-कन्हैयाने बाँसुरी॥ 

(३) 
मोहनकी बाँसुरीके मैं क्या-क्या कहँ जतन , 
ले उसकी मनकी मोहिनी घुन उसकी चितहरन । 
उस बाँसुरीका आनके जिस जा हुआ बजन , 
क्या जल, पवन, 'नजीर' परूरू व क्‍या हरन- 
सब सुननेवाले कह उठे जे जे हरी हरी , 
ऐसी बजाई क्ृष्ण-कन्हैयाने बाँसुरी ॥ 

(१) 
है आशिक़ ओर मादक जहाँ 

वाँ शाह वजीरों है बाबा! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


मजक्षीर ८९ 


नीच्ि्ियिल्चिलिलिि ओ़ओ ओ ओ ४ ?़2 ओ ओ ओत व ललिश-ी लत ल लत 


ने रोना है, ने घोना है, 
ने दर्दे असीरी है बाबा ! 

दिन-रात बहारें-चुहल. हैं, 
आओ ऐश सफीरी है बाबा ! 

जो आशिक हुए सो जाने हैं, 
यह भेद फूकीरी हैं बात्रा ! 

हर आन हँसी, हर आन खुशी, 
हर वक्त अमीरी है बाबा ! 

जब आशिक मस्त फ्रक्रीर हुए, 
फिर क्‍या दिलगीरी है बाबा ! 

(२) 

कुछ जुल्म नहीं, कुछ जोर नहीं, 
कुछ दाद नहीं फ़रियाद नहीं । 

कुछ क्रेद नहीं, कुछ बंद नहीं, 
कुछ जब्र नहीं, आज़ाद नहीं | 

शागिद॑ नहीं, उस्ताद नहीं, 
बीरान नहीं, आबाद नहीं । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


९० सलन-संग्रह भाग ४ 


>> >> -च्खिखि२७ ७ ििव्न्डल जज जि्किज कल ्िििजचआलिलन्‍ 25 


हैं. जितनी बातें दुनियाँकी, 

सब भूल गये, कुछ याद नहीं । 
हर आन हँसी हर आन खुशी, 

हर वक्त अमीरी है बाबा! 
जब आशिक मस्त फ़्क्ीर हुए, 

फिर क्‍या दिलगीरी है बाबा ! 

(३) 

जिस सिम्त नज़रकर देख हैं, 

उस दिल्बरकी फुलवबारी है । 
कहीं. सब्जीकी हरियाली है, 

कहीं फूलोंकी गुलक्यारी है । 
दिन-रात मगन खुश बैठे हैं, 

और आस उसीकी भारी है । 
बस, आप ही वां दातारी है, 

और आप ही वो मंडारी है । 
हर आन हँसी, हर आन खुशी, 

हर वक्त अमोरी दै बाबा ! 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ४॥0॥9/॥099५80॥9.00॥ 


नजझीर ९१ 


लि पक अल कक 2 पी लो जी 2 मल थक जप मा 


जब आशिक मस्त फ़क्कीर हुए, 

फिर क्या दिलगीरी है बाबा ! 

(४) 

हम चाकर जिसके हस्नके हैं, 

वह दिल्वर सबसे आला है । 
उसने ही हमको जी बचख्शा, 

उसने ही हमको पाछा है। 
दिल अपना भोला-भाल है, 

ओर इश्क़ बड़ा मतबाला है। 
क्या कहिए और “नजीर' आगे, 

अब कॉन समझनेवाल है ? 
हर आन हँसी, हर आन खुशी, 

हर वक्त अमीरी है बाबा ! 
जब आशिक मस्त फ़कीर हुए, 


फिर क्या दिल्गीरी है बाबा ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


९२ भजन-संग्रह भाग ४ 


(१) 
क्या इल्म उन्होंने सीख लिये, 
जे बिन लेखेंको बाँचे हैं । 
ओर बात नहीं मुँहसे निकले, 
ब्रिन होंठ हिलाये जाँचे हैं । 
दिल उनके तार सितारोंके, 
तन उनके तबल तमाँचे हैं । 
मुँहचंग जबों दिल सारंगी, 
पा घुँघरू हाथ कमाँचे हैं । 
हैं राग उन्हींके रंग-भरे, 
औ भाव उन्‍्हीके साँचें हैं। 
जो बे-गत के-सुरताल हुए, 
त्रिन तार पखावज नाचे हैं ॥ 
(२) 
जब  हाथको घोया हाथोंसे, 
जब हाथ लगे थिरकानेको । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


नक्षीर ढ््इ्‌ 


ओऔर पाँवको खींचा पाँबोंसे, 
ओर पाँव लगे गत पानेकों । 
जब आँख उठाई हस्तीसे, 
जब नयन टगे मठकानेको । 
सब काछ कछे, सब नांच नचे, 
उस रसिया छल रिझानेकों । 
हैं. राग उन्हींके रंग-भरे, 
आ भाव उन्हींके साँचे हें । 
जो बे-गत बे-सुरताल हुए, 
बिन ताल पखावज नाचे हैं ॥ 
(३) 
था जिसकी खातिर नाच क्रिया, 
जब मूरत उसकी आय गढ़ 
कहीं आप कहा, कहीं नाच कहा, 
और तान कहीं लहराय गई 


अन्‍नन्‍न 


अमन» 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥ 2900 ५९॥९॥।०॥80॥॥ 


हु सजन-संग्रह भाग ४ 


जब॒ छैल-छबीले, सुंदरकी, 

छबि नेनों भीतर छाय गई। 
एक मुरछा-गति-सी आय गई, 

ओर जोतमें जोत समाय गई । 
हैं राग उन्हींके . रंग-भरे, 

ओ भाव उन्हींके साँचे हैं । 
जो बेनगत बे-सुस्तालऊ हुए, 

बिन ताल पखावज नाचे हैं ॥ 

(४) 

सब होश बदनका दृर हुआ, 

जब गतपर आ मिरदंग बजी । 
तन भंग हुआ, दिल दंग हुआ, 

सब आन गई बेआन सजी । 
यह नाचा कौन “नजीर” अब याँ, 

ओर किसने देखा नाच अजी ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नज्ञीर ९९ 


जब बूँद मिली जा दरियामें, 
इस तानका आखिर निकला जी । 
हैं. राग उन्हींके. रंग-भरे, 
ओ भाव उन्‍्हींके साँचे हैं । 
जो बे-गत बे-सुरताल हुए, 
बिन ताल पखावज नाचे हैं॥ 
(१) 
गर यारकी मर्जी हुई सर जोड़के बैंठे। 
घर-बार छुड़ाया तो वहीं छोड़के बैठे ॥ 
मोड़ा उन्हें जिधर वहीं मुँह मोड़के बेठे। 
गुदड़ी जो सिलाई तो वहीं ओढ़के बेंठे ॥ 
ओ शाढू उढ़ाई तो उसी शाहूमें खुश हैं। 
पूरे हैं वही मर्द जो हर हाल्में खुश हैं ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


९६ भजन-संग्रह भाग ४ 


्न्ल्ज्खिल्ख्ख्खतिब्ल्ल्क्क्ज्खखखख्ल्वि् वी किक ्िििखि््जििडजििल जल कप 


(१) 
गर खाट ब्रिछानेकी मिलछी खाटठमें सोये। 
दूकाँमें छुलाया तो वो जा हाटमें सोये॥ 
रस्तेमें कहा सो तो वह जा बाटमें सोये । 
गर टठाठट ब्िछानेकोी दिया टाटठमें सोये॥ 
ओ खाल ब्रिछा दी तो उसी खालमें खुश हैं । 
पूरे हैं वही मर्द जो हर हालमें खुश हैं ॥ 

(३) 
उनके तो जहाँमें अजब आलम हैं नजीर आह ! 
अब ऐसे तो दुनियामें वली कम हैं नजीर आह ! 
क्या जाने, फ़रितते हैं कि आदम हैं नज़ीर आह ! 
हर वक्तमें हर आनमें खुर्रम हैं नज़ीर आह ! 
जिस ढालमें रकखा वो उसी दाल्में खुश हैं। 
पूरे हैं वही मर्द जो हर हालल्‍ूमें खुश हैं॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नजीर ९७ 


(१) 
है बहारे बाग दुनिया चंदरोज, 
देख लो इसका तमाशा चंदरोज । 
ऐ मुसाफिर कूचका सामान कर, 
इस जहॉमें है बसेरा चंदरोज । 
पूछा लुकमांसे जिया तू कितने रोज ? 
दस्त हसरत मलके बोला,चंदरोज | 
बाद मदफ़न क़त्रमें बोली कजा--- 
अब यहाँपै सोते रहना चंदरोज ! 
फिर तुम कहाँ, ओ मैं कहाँ, ऐ दोस्तो ! 
साथ है मेरा तुम्हारा चंदरोज । 
क्या सताते हो दिले बेजुर्मको, 
ज़ालिमो, है ये जमाना चंदरोज् । 
याद कर त्‌ ऐ नजीर । क़बरोंके रोज, 
जिंदगीका है भरोसा चंदरोज ॥ 
कि ६8 भा 


9 5009५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


ह८ अजन-संग्रह भाग ४ 


्स्क््ि 
कार खा 

(१) 
माफ़ किया मुछक, मताह दी बिभीषनको , 
कही थी जुबान कुरबान ये करारकी । 
बेठनेकी ताइफ़ तखत दे तखत दिया , 
दोलत बढ़ाई थी जुनारदार यारकी॥ 
तब क्या कहा था अब सरफराज आप हुए , 
जब कि अरज सुनी चिड़ीमार खारकी | 
'कारें' के करारमाहिं क्‍यों न दिलदार हुए , 
एरे नंदछालू ! क्‍यों हमारी बार, बार की ? 

(२) 
छलबलके थाक्यो अनेक गजराज भारी , 
भयो बलहीन जब नेक न छुड्दा गयो। 
कहिबेको भयो करुना की, कवि कारें कहें , 
रही नेक नाक और सब ही डुबा गयो॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


कारे खा ९९ 


पंकज-से पायन पयाद पलंग छाॉँडि , 
पावरी बिसारि प्रभु ऐसी परि पा गयो। 
हाथीके हृदयमाहिं आधो हरि! नाम सोय , 
गरे जो न आयो गरुड़ेस तौंढों आ गयो॥ 
(३) 
बुन्दावन कीरति बिनोद कुंज-कुंजनमें , 
आनंदके कंद छाल मृरति ग़ुपालकी | 
कालीदह “कारें पताल पेंठि नाग नाथ्यों , 
केतकीके फ़ूछ तोरि लाये माला हारकी॥ 
परसतहीं पृतना परमगति पाय गई , 
पलकहीं पार पारबो अजामीर नारकी। 
गीध-गुन-गानहार, उाँछके उगानहार ! 
आई ना अहीर ! क्या हमारी बार, बार की॥ 


2 //““॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०० सजन-संग्रह भाग ४ 


स्का सा पर या जज जी मा 


करीमबख्श 
(१) 

ऐ मेरे रब! त्‌ पाप-हरौया, 

संकटमें किरपाका करैया । 
मेरे रहीम ! रहम कर साहब ! 

मेरे करीम ! करम कर साहब ! 
मुझ पापीका पाप छुडाओ, 

डूबत नैया पार छगाओ। 
झाँझरि नाव, पतवार पुराना, 

यह डर मोरे हिये समाना । 
जो तुम सुध नहिं लैहो मोरी, 

बेरि माँझ मोहि देह बोरी । 
दियो बेरि इक संग ढछगाये, 

जो सीधे पथसों बहकाये । 
देत दोहाई हों अब तोरी, 

होहु सहाय बिपतमें मोरी। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


करीमबल्श १३०१ 


जिन्बव्च््््ज््ल््लिजिजलि लत. व अड्डा टी ख्लप्टच * *% २५०५ 


ऐसी जून बियापी मोपर, 
कठिन काज छोड़ा है तोपर | 
आपन न्याव तुम्हींपर छाँड़ा, 
लाद चलेगा जब्र बंजाड़ा। 
यह सत्र कुछ, पर आश है हमकू, 
हिय पूरन बिखास है हमकू । 
हमरी करनी सब बिसराई, 
देहों बिगड़ो काज बनाई । 
देत तुम्हीं ओ दिलावत तुमहीं, 
मारो तुम्हीं ओ जिलाबो तुमहीं । 
सब कुछ तज 'करीम' हों तोको, 
ध्यावों, होय न जासों धोको ॥ 
(२) 
कैसे तुम आ नैहरवा मुलानी ! 
सइयाँका कहना कबहूँ नहिं मानी । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०२ भजन-संग्रह भाग ४ 


काम कियो नित निज-मन-मानी 

पियाकी सुध काहे बिसरानी £ 
टेढ़ी चा् अजहँँ तज मूरख, 

चार दिनाकी यह जिंदगानी । 
मद-माती इठलात फिरति का, 

गोरी, का तेरे हियमें समानी ? 
गुन-दँगसों जो पियाको रिझ्ावै, 

करीमा वहीं है सखी सयानी ॥ 

(३) 

ना जानों, पियासों केसे होये बतियाँ ! 
उनके मनकी जुगति नहिं सीखा, 

यह जिय सोच रहे दिन-रतियाँ॥ 
वहाँ न कोऊको कोऊ पूछत, 

सुन-छुन हाल फदति हैं छतियाँ। 
ओऔर सखी पिया अपने मिलनकी 

करति 'करीम' हैं ठाखन घतियाँ॥ 


“5 ठ सर3छ४5२.+ 7 « 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ४0॥9॥099५80॥9.00॥ 


इ्न्शा १०३ 


श्न्शा 
(१) 
जब छाँडि करीलकी कुजनकों, 
वहाँ द्वारकामें हरि जाय छये। 
कलघोतके. धाम बनाय बने, 
महराजनके महराज भये॥ 
तज मोरके पंख आ कामरिया, 
कछु ओरहि नाते हैं जोड़ ल्ये। 
घरि रूप नये किये नेह नये, 
अब गइहयाँ चराइबो भूल गये॥ 


डट 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०४७ भजन-संग्रह भाग 9७ 


बाजिन्द 
(१) 
सुन्दर पाई देह नेह कर राम सों, 
क्या लुब्घा बेकाम धरा धन धाम सों ? 
आतम-रंग-पतंग, संग नहीं आवसी, 
जमहके दरबार, मार बहु खाबसी । 
(२) 
गाफ़िल मूढ़ गंवार अचेतन चेत रे! 
समझे संत सुजान, सिखावन देत रे ! 
बिषया माँहि बिहाल छगा दिन रन रे ! 
सिर बैरी जमराज, न सूझै नैन रे ! 
(३) 
दिलके अन्दर देख, कि तेरा कोन है, 
चछे न भोले ! साथ, अकेला गोन है । 
देख देह धन दार इनसे चित दिया, 
रव्या न निसिदिन राम काम तें क्या किया ! 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥ 2900 ५९॥९॥।०॥80॥॥ 


बाज़ि नद १०७५ 
(४) 
देह गेहमें नेह निवारे दीजिए, 
राजी जासे राम, काम सोह कौजिए। 
रया न बेसी कोय रंक अरु राब रे ! 
कर ले अपना काज, बन्या हृद दाव रे !। 
(५) 
बंछत ईस गनेस एड नर-देहको, 
श्रीपति-चरण-सरोज बढ़ावन नेहको । 
सो नर-देही पाय अकाज न खोइए, 
साइंके दरबार गुनाही होइए। 
(६) 
केती तेरी जान, किता तेरा जीवना £ 
जेसा खपन-विलास, तृषा जल पीवना | 
ऐसे सुखके काज, अकाज कमावना, 
बार-बार जम-द्वार मार बहु खावना। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०६ अजन-संग्रह भाग ४ 


(७) 
नहिं है तेरा कोय, नहीं त्‌ कोयका, 
खारथका संसार, बना दिन दोयका | 
भ्ेरी-मेरी! मान फिरत अभिमानमें, 
इतराते नर मूढ़ एहि जज्ञानमें। 


(८) 
कूड़ा नेह-कुट्ब घनो हित धायता, 
जब घेरे जमराज के को सहायता ? 
अंतर-फृटी-आँख न सझे आँधरे ! 
अजहूँ चेत अजान ! हरीसे साथ रे ! 
(९) 
बार-बार नर-देह कहो कित पाड़ए ? 
गोविंदके गुन-गान कहो क्र गाइए ! 
मत चूके अवसान अत तन माँ घरे, 
पानी पहली पाल अक्ञानी बाँत् रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बाजिन्द १०७ 


जिन का अलतिट पट विज >जी+ी जल जज ललीज+न५त ५3 +त+टच ५तत+- 


( १० ) 
झूठा जग-जंजाल पड़बा तें फंदमें, 
छूटनकी नहिं करत, फिरत आनंदमें ! 
यामें तेरा कौन, समाँ जब अंतका, 
उबरनका ऊपाय शरण इक संतका। 
( ११ 2 
मंदिर माल बिलास खजाना मेडियाँ, 
राज-भोग सुख-साज ओ चंचल चेड़ियाँ । 
रहता पास खबास हमेश हुजूरमें 
ऐसे लाख असंग्व्य गये मिर धूरमें। 
( १२) 
मदमाते  मगरूर वे मूँछ मरोड़ते, 
नवल त्रियाका मोह छनक नहिं छोड़ते । 
तीग्व करते तरक, गरक मद-पानमें, 
गये पलकमें ढक तलब मेदानमें । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०८ भजन-संग्रह भाग ४ 


चल + न्सलसनजस्ल्‍कलर चचे९+२०न >3ञ+ 7६ 2९०+ *५ ५ ५ 2५०००७-५//६८६ 2५०९ /४५/५०६०९०९-००५/६ /५0:०७२५८५७३०० 


( १३ 2 
फूलों सेज बिछायक तापर पोढ़ते, 
आछे दूपटे साल दुसाले ओढ़ते। 
लेके दर्पण हाथ नीके मुख जोवते, 
ले गये दृत उपाड, रहे सब्र रोवते ! 
(१४) 
अत्त तेल फुलेछल. लगाते अंगमें, 
अंध-घुंध दिन-रंन तियाके संगमें । 
महल अबासा बैठ करंता मौज रे! 
ऐसे गये अपार, मिला नहिं खोज रे ! 
( १५) 
रहते भीने छेल सदा रँग-रागमें 
गजरा फुलाँ गु्घंत घरंता पागमें। 
दर्पणमें मुख देखक मुछ्वा तानता, 
जगमें वाका कोइ नाम नहिं जानता ! 


9 5009५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ 


बालिन्द १०५९ 


( १६ ) 
महल फ़्वारा होजके मोजोँ माणता, 
समरथ आप-समान और नहिं जाणता | 
केसा तेज प्रताप चलता दूरमें, 
भला-सला भूपाल गया जमपूरमें । 
( १७ ) 
सुंदर नारी संग हिंडोले झूलते, 
पैन्ह पटंबर अंग फरंता फूलते | 
जो थे खूबी खेलके बेठ बजारकी, 
सो भी हो गये छैछठ न ढेरी छारकी ! 
( १८ ) 
राज-कचेरी माह जे आदर पावते, 
करते हुकम गरूर जरूर दिखावते। 
पांग घनीकी बाँधके रहते अकड़ते, 
रहे धरे घन मान, गये जम पकड़ते ! 


॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


११० भजन-संग्रह भाग ४ 


( १९ ) 
इन्द्रपुरुसी मान बसंती नगरियों, 
भरती जल पनिहारि कनक सिर गगरियाँ । 
हीरा छाल झबेर-जड़ी सुखमामई, 
ऐसी पुरी उजाड़ भयंकर हो गई ! 
( २० ) 
होती जाके सीसपै छत्रकी छाइयाँ, 
अटल फिरंती आन दसो दिसि माँशयाँ । 
उद्दे-अस्त छा राज जिनूँका क्हावता, 
हो गये टेरी-धूर नजर नहिं आबता। 
( २९ ) 
नित जाके दरबार झड़ंती नोंबतां 
मंत्री पास प्रवीन करता म्होबता। 
चतुरा लोगाँ चोज तरक अति सूझता, 
तीनाहूँका नाम जगत नहिं बूझता ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बाजिन्द 8११ 


( २२ ) 
बंका किला बनायके तोपाँ साजियाँ, 
माते मैगल द्वार हैं केते ताजियाँ। 
नितप्रति आगे आय नचंती नायका, 
बाकी गया उपाड दत जमरायका ! 
( २३ ) 
माणिक हीरा लाल खजाना मोतियाँ । 
सज राणी सिंगार सोलहों जोतियाँ। 
दिन-दिन अधिक सुगंध लगाते देहमें, 
ऐसे भोगी भूप मिले सब्र खेहमें ! 
( २४ ) 
या तन-रंग-पतंग काल उड़ जायगा, 
जमके द्वार जरूर खता बहु खायगा। 
मनकी तज रे घात, बात सत मान ले, 
मनुषाकार मुरार ताहि कूँ जान ले। 


9 5009५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


११२ भजन-संग्रह भाग ४ 
( २५ ) 
यद्द दुनियाँ 'बाजिंद! पलकका पेखना, 
यामें बहुत बिकार कहो क्‍या देखना ! 
सब जीवनका जीव, जगत आधार है, 
जो न भजे भगवंत, भागमें छार है। 
( २६ ) 
दो-दो दीपक बाल महतूमें सोबते, 
नारीसे कर नेह जगत नहिं जोबते। 
सूँघा तेल लगाय पान मुख खाय॑गे, 
बिना मजन भगवानके मिथ्या जायेंगे। 
( २७ ) 
राम-नामकी छठ फबे है जीवको, 
निसि-बासर कर ध्यान सुमर त्‌ पीवको । 
यहै बात परसिद्ध कहत सब ग़ाम रे ! 
अधम अजामिल तरे नारायण-नाम रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बाजिन्द १९३ 


( २८ ) 
गाफिल हुए जीव कहो क्‍यों बनत है! 


या मानुषके साँस जो कोऊ गनत है ! 
जाग, लेय हरिनाम, कहाँ छों सोयहै ? 
चक्कीके मुख परथो, सो मैदा होयहे । 
( २६ ) 
आज सुने के काल, कहत हों तझको, 
भाँवे ब्रेरी जानके जो तँ मूझको। 
देखत अपनी दृष्टि खता क्‍या खात है ! 
लोहे कैसो ताव जनम यह जात है। 
( ३० 2 
केते अजुन भीम जहाँ जसबंत-से, 
केते गिनें, असंख्य बली हनुमंत-से । 
जिनकी सुन-सुन हाँक महागिरि फाठते, 
तिन घर खायो काल जो इंद्रहिँ डाठते। 


9 5009५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


११४७ सजन-संग्रह भाग ह 


(३१ ) 
हों जाना कछु मीठ, अन्त वह तीत है, 
देखो देह ब्रिचार ये देह अनीत है। 
पान फूल रस भोग अन्त सब रोग है, 
प्रीतम प्रभुके नाम त्रिना सब्र सोग है। 


(३२ ) 
राम कहत कलि माहि न डूबा कोइ रे ! 
अर्धनाम पाखवान तरा, सब होइ रे ! 
कर्मकी केतिक बात बिलग है जायँगे, 
हाथीके असवार कुते क्यों खायँगे ! 
( ३३ ) 
कुञर-मन मद-मत्त म॑ं* तो मारिए, 
कामिनि-कनक-कलेस टेर तो ठारिए | 
हरि-भक्तन सों नेह पे तो पालिए; 
राम-भजनमें देह गले तो गालिए | 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


बाजिन्द ११७ 


( ३४ ) 
घड़ी-घड़ी घड़ियार पुकारे कही है, 
बहुत गयी है अवधि अलप ही रही है । 
सोवे कहा अचेत, जाग, जप पीब रे ! 
चलिहै आज कि कारू बटाऊ-जीब रे ! 
(३५ ) 
बिना बासका फूल न ताहि सराहिए, 
बहुत मित्रकी नारिसों प्रीति न चाहिए । 
सठ साहिबत्रकी सेवा कब्रहँ न कीजिए, 
या असार संसारमें चित्त न दीजिए। 
( १६ 2 
जो जियमें कछु ज्ञान, पकड़ रह मनको, 
निपटहि हरिको हेत, सुझावत जनको । 
प्रीति-सहित दिन-रैन राम मुख बोलई, 
रोटी लछीये हाथ, नाथ सँग डोलई । 


9 5000909 396] 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥900५९॥९॥।॥8०॥॥॥ 


११६ भजन-संग्रह भाग ४ 


( ३७० ) 
बदन बिलोकत नेंन, भई हों बावरी, 
घारे दण्ड बिभूत, पगन हो पावरी । 
कर जोगिनकों भेस सकल जग डोलिहों, 
ऐसो मेरे नेम, पीव पिब बोलिहों । 
( ३८ ) 
एके नाम अनन्त किह्ँके लीजिए, 
जन्म-जन्मके पाप चुनोती दीजिए । 
लेकर चिनगी आन धरे त्‌ अब्ब रे ! 
कोठी भरी कपास जाय जर खब्ब रे ! 
( ३६ ) 
गूदड़िया गुरु ज्ञान गुरूके ज्ञानमैं, 
माँग्या ट्कड़ा खाय धणीके ध्यानमैं । 
माया-मोह छगाहइ. परकमे भूलगा, 
रोहीड़ा दिन चार जमींपर फूलगा । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बाजिन्द ११७ 


( ४० ) 
ओढ़ें साल-दुसाठ क जामा जरकसी, 
टेढ़ी बाँओं पाग क दो-दो तरकसी । 
खड़ा दलाँके बीच कसे भट सोहता, 
से नर खा गया काल सिह ज्यों गरजता । 
( 9७१ ) 
तीखा तुरी पलाण सँवारधा राखता, 
टेढी चाले चाल छायाँकों झाँकता। 


हटवाड़ा बाजार खड़या नर सोहता, 
से नर खा गया काल सत्रे रद्मा रोवता । 
( ४२ ) 
हरि-जन बेठा होय जहाँ चलि जाइए, 
हिरदे उपजैे ज्ञान राम लव लाइए। 
परिहरिए वा ठोड भगति नहिं रामकी, 
बीद बिहृणी जान कहो कुण कामकी। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


११८ भजन-संग्रह भाग ४ 


€( ४३ ) 
बाजिंदा बाजी रची, जैसे संभल-फूछ । 
दिनाँ चारका देखना, अन्त घूलकी घूल ॥# 
कह कह बचन कठोर खरूड न छोलिए, 
सीतऊल राख सुभाव सबनसों बोलिए। 
आपन सीौतल होइ ओरकों कीजिए, 
बलतीमैं सुन मिंत ! न पूछो दीजिए । 


ललचिटपि ल्‍प्टप पट चन्‍चल्‍चल्‍ तल चल चल 


& कहीं-कहीं कड़ेके पहले एक दोहा भी दिया 
गया है । 


9 500090५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बुडलेशाह ११५९ 


या अमीर 


बुल्लेशाह 
(१) 


कद मिल्सी मैं ब्रिरहों सताई नूँ। 
आप न आबै, ना लिखि भेजे, 
भट्टि अजे ही लाई नूँ। 
तें जेहा कोड होर नाँ जाणा, 
मैं तनि सूल सवाई न ॥ 
रात-दिन आराम न मैंनू, 
खावे बिरह कसाई न। 
बुल्लेशाह' धृूग जीवन मेरा, 
जौंढडग दरस दिखाई नूँ॥ 
(२) 
टुक बूझ कबन छप आया है! 
कह नुकतेमें जो फेर पड़ा, 
तब ऐन-गैनका नाम धरा; 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१३० भजन-संग्रह भाग ४ 


ट  य  प  आ 


जब मुरसिद नुकता दूर किया, 

बत ऐनों ऐन कहाया है ॥ 
तु्सीं इलम किताबाँ पढ़दे हो, 

केहे उल्टे माने करदे हो ; 
बेमूजब॒ ऐवं छड़दे हो, 

केहा उल्टा बेद पढ़ाया है॥ 
दुए दूर करो, कोई सोर नहीं, 

हिन्दु-तुरक कोई होर नहीं ; 
सब साधु छखो, कोई चोर नहीं, 

घट-घटमें आप समाया है॥ 


ना मैं मुकता, ना मैं काजी, 

ना मैं सुन्नी, ना मैंहाजी; 
बुलेशाह', नाठः छाई बाजी, 

अनहद सबद बजाया है॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥2॥॥60॥2॥॥900५९॥९॥।॥8०॥॥ 


बुहलेशाइ १११ 


(३४३) 
माटी खुदी करेंदी यार | 
माटी जोड़ा, माठी घोड़ा, 
माटीदा असवार ॥ 
माटी माटठीनूँ मारन छागी, 
माटीदे. हथियार । 
जिस मारटीपर बहुती माटी, 
तिस माठी इड्जार॥ 
माटी बाग, बगीचा माटी, 
माटीदी गुलजार । 
माटी मार्टन देखन आई, 
है माटीदी बहार ॥ 
हँस-खेल फिर माटी होई, 
पौंदी पॉब पसार । 
'बुलेशाह' बुझारत बूझी, 
छाह सिरों भों मार॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१२५२ मजन-संप्रह भाग ४ 


(9) 
अब तो जाग मुसाफिर प्यारे ! 
रैन घटी, ल्टके सब तारे। 
आवा गोन सराइ डेगर, 
साथ तयार मुसाफिर तेरे , 
अजे न सुनदा कूच नकारे। 
कर ले आज करनदी बेला, 
बहुरि न होसी आवन तेरा | 
साथ तेरा चल चल्ल पुकारे | 
आपो अपने छाहे दोड़ी, 
क्या सरधन क्या निरधन बोरी , 
छाहा नाम ते लेहु सँभारे। 
खुले! सहुदी पैरी परिये, 
गफलत छोड़ हीछा कुछ करिये , 
मिरग जतन बिन खेत उजारे ॥ 


5. 5 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


आदिल्ल ११३ 
आदिल 
(१) 
मुकुटकी चटक, लटक बिंबि कुंडलकी, 
भींहकी मठक नेकु आँखिन देखाउ रे ! 
एरे बनवारी, बलिहारी जाउँ तेरी, मेरी 
गेल किन आय नकु गायन चराउ रे ! 
आदिल' सुजान रूप गुनके निधान कान्ह , 
बाँसुरी बजाय तन-तपन बुझाड रे ! 
नन्दके किसोर, चित-चोर, मोर-पंखबारे, 
बंसीवारे साँवर पियारे, इत आउ रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१२४ भजन-संग्रह भाग ४७ 


मकसूद 
(१) 

लगा भादों मुझे दुख देने भारी, 

घटा चहूँ ओर झुक आई है सारी । 
भरी जल थल चढ़ीं नदियोंकी धार, 

सखी, अबतक न आये पी हमारे । 
घटा कारी अंधेरी नित डराबे, 

पिया त्रिन नींद बिरहिनको न आवे। 
अरे कागा, त्‌ उडके जा त्रिदेसा, 

सलोने स्यामको लेकर सँदेसा। 
ये सब हालत वहाँ तकरीर कीजो, 

मेरा साबित गुनह तकसीर कीजो । 
कि उस जोगिनको तुम क्यों छोड़ बैठे ? 

तरफ उसकीसे मुँह क्यों मोड़ बेठे ? 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ४॥0॥9/॥099५80॥9.00॥ 


सकसूद १रण 


मुझे गम दिन-ब-दिन खाने लगा है, 

अजलका दिन नजर आने लगा है। 
न जानू दरस पीका कब मिलेगा, 

कमल इस मेरे जीका कब खिलेगा। 
सखी, यह मास भादों भी सिधारा, 

न आया आह वह प्रीतम पियारा। 
दिवानी पीकी मैं मेरा पिया है, 

पियाका नाम सुमरन मैं किया है ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१२६ भजन-संग्नह भार ४8 


मोजदीन 
(१) 
इतनी कोई कहो हमारी, 
मनमोहन ब्रजराज कुँवरसों नारी । 
पाव परसकर दरसन कीजो, 
हुजी। जार दाॉठकर ठारी- 
फिर पाछे इतनी कहि दीजो, 
सुध लीन्हीं न एकहूँ बारो। 
फागुन आयो झाँझ डफ बाजें 
भीर भई. अति भारी। 
मोहिं तो आस तिहारे मिलनकी, 
भूठक गई सुध सारी। 
मोहिं गुलल लाल बिन तोरे, 
भई है रैन अँपियारी । 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | ९(0/0५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


मौजदीन १२७ 


अँसुवनकौ अब रंग बनो है, 


नेन बने पिचकारी । 
बुन्दाबनकी . कुंजगलिनमें, 

द्र्ढ़त देढ़त . हारी। 
देहो दरस मोहि अपनी मौजसे 

ए्हो कृष्ण मुरारी , 


पिया मोहि आस  तिहारी ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


११८ भजन-संभदह भाग ४8 


च्ल्ध्ल्व्ख््ख्स्प्व्ध्व््व््ट्ष्व्ष्ट््क ज््ख््क्क्खचखख्खिच् खिल िजिजिध्जिल जल प+ 


वाहिद 
(१) 
सुन्दर सुजानपर, मन्द मुसुकानपर, 
बाँसुरीकी तानपर ठौरन ठगी रहै | 
मूरति त्रिसाछपर, कंचनकी मालपर, 
खंजन-सी चालपर खोरन खगी रहै ॥ 
भौंहं घन मैनपर, छोने जुग नेनपर, 
सुद्ध रस बैनपर, 'वाहिद” पगी रहै । 
चंचल वा तनपर, साँवर बदनपर, 
नन्‍्दके नंदनपर लगन लगी रहे ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


दोन दरवेश पृश्ण्‌ 


दीन दवेश 


(१) 
हिन्दू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहे हम्म । 
एक मूँग दो फाड़ हैं, कुण जादा कुण कम्म ॥ 
कुण जादा कुण कम्म, कमी करना नहिं कजिया | 
एक भगत हो राम, दजा रहिमानसे रजिया ॥ 
कहे दीन दरवेश' दोय सरिता मिल सिन्धू । 
सबका साहब एक, एक मुसलिम इक हिन्दू ॥ 


(२) 
गड़े नगारे कुचके, छिनमर छाना नाहिं। 
कौन आज, को कालछको, पाव पलकके माहिं ॥ 
पाव पलकके माहि, समझ छे मनुवा मेरा । 
घरा रहै घन-माल, होयगा जंगल डेरा ॥ 
कहै 'दोन दरवेश, गये मत करे मँवारे ! 
छिनभर छाना नाहिं, कूचके गड़े नगारे ॥ 
ज्‌ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


बू३० भजन-संग्रह भाग ७ 


(३) 
बन्दा जाने मैं करों, करनहार करतार । 
तेरा किया न होयगा, होगा होवनहार ॥ 
होगा होवनहार, बोझ नर योंहि उठावे। 
जो बिधि लिखा ललाट प्रतछ फल तैसा पाबे ॥ 
कहै दीन दरवेश” हुकमसे पान हलन्दा । 
करनहार करतार, करेगा क्‍या तू बन्दा 2 ॥ 

(४) 
बन्दा, बहुत न फूलिये, खुदा खिवेगा नाहि । 
जोर जुल्म कीजे नहीं मिरतलछोकके माहिं।॥ 
मिरतलोकके माहि, तजुरबा तुरत दिखाबे। 
जो नर करे गुमान, सोइ जग खत्ता खाबे | 
कहे दीन दरवेश” भूल मत गाफिल गन्दा ! 
मिरतलोकके माहि फूलिये बहुत न बन्दा ! ॥ 


- 8389० 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


अफसोस १३१ 


झफसोस 
(१) 


का सेंग फाग मचाऊँ री, 
कुब॒जा-सेंग गिरधारी रहत हैं । 
अँसुअनकों सखि रंग बनायो, 
दोउ नैना पिचकारी रहत हैं। 
बिरहमें कल न परत पल-छिन हूँ, 
ब्याकुल सखियाँ सारी रहत हैं । 
निमिदिन कृष्ण-मिलनर्कों सखियाँ, 
आस लगाये ठाढ़ी रहत हैं। 
अफ़्सोस' पियाकी नेह-सुरतिया 
निरखत नर औ नारी रहत हैं ॥ 


+.76६. 36 2 ६* 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१९३२ भजन-संग्रह भाग ४ 


काजिम 
(१) 
फाग खेलन कैसे जाऊँ सखी री, 
हरि-हाथन पिचकारी रहति है। 
सबकी चुनरिया कुसुम-रँग-बोरो, 
मोरी चुनरिया गुठनारी रहति है । 
कोई सख्बी गावति, कोई बजावरति, 
हमकों तो सु्त तिहारी रहति है । 
कहत है 'काजिम' अपनी सब्बीसों, 
सैयाँकी सुरत मतवारी रहति है ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


स्वालछस १४६३ 


खालस 
(१) 
तुम नाम-जपन क्यों छोड़ दिया ? 
क्रोध न छोड़ा, झूठ न छोड़ा, 
सत्य बचन क्‍यों छोड़ दिया ? 
झूठ जगमें दिल ललचाकर, 
असल बतन क्यों छोड़ दिया ? 
कॉड़ीको तो खुब सँभाछा, 
लाल रतन क्यों छोड़ दिया ! 
जिन सुमिरनसे अति सुख पावे, 
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया ? 
पवालस' एक भगवान-भरोसे, 
तन-मन-धन क्यों छोड़ दिया ! 
(१२) 
जिन्हों घर झूमते हाथी, 
हजारों छाख थे साथी ; 


हब च्ट अडच्टपि की लि ट # #प्ड 2 च०+ ४ ६४० हेड सपह३९००" > स«०६२ ४००५ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


हे भजन-संग्रह भाग ४ 


उन्हींकी खा गई माटी 

त्‌ खुशकर नींद क्यों सोया ? 
नकारा कूचका बाजें, 

कि मारू मौतका बाजै ; 
ज्यों सावन मेघला गाजे, 

त्‌ खुशकर नींद क्यों सोया 
जिन्हों घर लाल औ हीरे, 

सदा मुख पानके बीड़े ; 
उन्होंकों खा गये कीड़े; 

त खुशकर नींद क्यों सोया ? 
जिन्हों घर पालकी छोड़े, 

जरी जरवफ़्तके जोड़े ; 
वही अब मौतने तोड़े, 

त्‌ खुशकर नींद क्‍यों सोया १ 
जिन्हों संग नेह था तेरा, 

किया उन खाकमें डेरा ; 
न फिर करने गये फेरा, 

तू खुशकर नींद क्‍यों सोया ? 

न्््च्किपफॉण्प्>फिलल्ििन 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


(१) 

करें अब कोन बहाना, 
गवन हमरा नगिचाना ! 

सब सखियन मेरी चूनर मैली, 
दजे पिया-घर जाना । 

तीजे डर मोहि सास-ननदका, 
चोथे पिया देहे ताना॥ 

प्रेम-नगरकी राह कठिन है, 
वहाँ. रँंगरेज सियाना | 

एक बोर दे दियो चुनरीमें, 
तासों पिय. पहिचाना ॥ 

राह चलत सतगुरु मिले 'वहजन!' 
उनका हैं नाम बखाना | 

मेहर भई उनकी जब मोपर, 


तब ही छगी ठिकाना ॥ 
प्ग्ल्लस्>््फप्ड्ल््रिफिलल 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१३६ भसजन-सग्रह भाग 2 


फल ल पी जज ० ८४5५४ ००४५० ५८ ीफडिलि लि जज ज+ +7+०७५४००+५-७*०५० ७५ > 0 २०3०० स्‍लसलत अल डी ट पल्‍ तर *े 


लतीफ हुसैन 
(१) 
ऊधो ! मोहन-मोह न जावे । 

जब-जत्र सुधि आवति है रहि-रहि, 

तब्र-तब॒ हिय बिचलावे | 
बिरह-त्रिथा बेधति है उन बिन, 

पल छिन चन न आबे। 
काह करों, कित जाडँ, कॉन त्रिघि, 

तनकी तपनि बुझावे॥ 
ब्याकुल ग्वाल-बाल अति दीखत, 

ब्रज-बनिता घबरावे । 
गाय-बच्छ डोलत अनाथ सम, 

इत-उत हाय, रँभावे ॥ 
कंस-त्रास भीषण छखि सिगरो, 

धीरज छूटो... जाबै। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


छतीफ हुसेन १३७ 


न्न््च््ल्व्लखि्लचलि खिजल्जच चल 


कौन बचाव करैगो, अब तो, 


यह दुख असह  ल्खाबे॥ 
जबलों अवधि कंस-गृह पूरी, 

करिके मोहन आवे। 
तबलों कौन उपाय करें हम, 

कोऊ नाहि।&।. बताबै॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१४८ सजन-संग्रह भाग ४ 


मंसूर 
(१) 
अगर है ज्ञोक मिलनेका, 
तो हरदम लो लगाता जा । 
जलकर खुदनुमाईको, 
भसम तनपर छगाता जा ॥ 
पकड़कर इश्क॒की झाड़, 
सफ़ाकर हिजए दिलको । 
दुईकी धूलकों लेकर--- 
मुसल्लेपप उड़ाता जा॥ 
मुसछा फाड़, तसबी तोड़, 
क्ताबं॑ डाल पानीमें। 
पकड़ तू दस्त फिरश्तोंका, 
गुलाम उनका कहाता जा ॥ 
न मर भू्खो, न रख रोजा, 
न जा मसजिद, न कर सिजदा | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


मंसूर १३५९ 


बजूका तोड़ दे कृूजा, 

शराबे शोक पीता जा॥ 
हमेशा खा, हमेशा पी, 

न गफुछतसे रहो इकदम। 
नशेमें सैर कर, अपनी 

खुदीकोी त्‌ जलाता जा॥ 
न हो मुछा, न हो ब्रहमन, 

दुईकी छोड़कर पूजा। 
हुक्म है शाह कलूंदरका, 

अनलहक़ त्‌ कहाता जा॥ 
कहे मंसूर. मस्ताना, 

मैंने हक दिलमें पहचाना । 
वही मस्तोंका मयखाना, 

उसीके बीच आता जा॥ 


जआवअ+-०<>07०-»- 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


३४० भजन-संग्रह भाग ४ 


यकरंग 
(१) 
हरदम हरिनाम भजों री । 
जो हरदम दरिनामकों भजिहो, 
मुक्ति हैं जेहे तोरी । 
पाप छोड़के पुन्य जो करिहो, 
तब बेकुंठ मिलो री, 
करमसे धरम बनो री। 
थकरंग' पियसों जाय कहो कोई, 
हर घर रंग मचो री, 
सुर नर मुनि सब फाग खेत हैं, 
अपनी-अपनी जोरी , 
खबर कोई लेत न मोरी ॥ 
(२) 
पिया मिलन कैसे जाओगी गोरी ! 
रंग-रूप सब जात रहो री। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


यकरंग 4४8१ 


ना अच्छे गुन-टँग, ना अच्छे जोबन, 
मैली भर अब चूनरि तोरी॥ 
करके सिंगार पिया-धर जैयो, 
तब देखिहें पिया तोरी ओरी । 
जाय कहौँ कोई “यकरंग” पियसों, 
तुम ब्रिन या गत हो गई मोरी ॥ 
(३) 
मितवा रे, नकीसे बेड़ा पार । 
जो मितवा तुम नेकी न करिहों, 
बुड़ि जेहो मँँझधार | 
नेक करमसे घरम सुषरिहें, 
जीवनके दिन चार। 
यकरंग' भागो खेर हशरको, 
जासे हो निसतार ॥ 
(४) 
निसिदिन जो हरिका गुन गाय रे ! 
ब्रिगड़ी बात वाकी सत्र बन जाय रे ! 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१४२ सजन-संग्रह भाग ४ 


ब् 5८ हज 


लाख कहूँ, माने नहि. एकह्, 
अब कद्दो, कब्रल्ग हम समझआायाँ रे । 
सोच-विचार करो कुछ यकरंग' 
आखिर बनत-बनत बन जाय रे ! 


(७५) 
साँवलिया मन भाया रे । 

सोहिनी सूरत मोहिनी मूरत, 

हिरदे बीच समाया रे। 
देसमें ढूँढ़ा, विदेसमें हूँढ़ा, 

अंतको, अंत न पाया रे ॥ 
काहूमें अहमद, काहमें इसा, 

काहमें राम कह्ाया रे। 
सोच-विचार कहे 'यकरंग पिया, 

जिन हढूँढ़ा तिन पाया २े॥ 


-8०-०88-*+$- 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


कायम १४६ 


व््व््ल्जि कटव्पल्पवच्खध्व्व्खिपह्पकिलज जज कली बल 


कायम 
(१) 
गुरु बिनु होरी कौन खेलावै, 
कोई पंथ लगावे॥ 
करे कौन निर्मल या जीको, 
माया मनतें छुडावे । 
फौको रंग जगतके ऊपर, 
पीको रंग चढ़ावै ॥ 
लाल-गुलरू छगाय द्वाथसों, 
भरम अबीर उड़ावै । 
तीन लोककी माया फ्रकके, 
ऐसी फाग रमावे ॥ 
हरि हेरत मैं फिरति बावरी, 
नेननिमें कब आबे। 
हरिको रखि 'कायम' रसियासों, 
काहे न धूम मचावे ॥ 
नया औआलक- त-+++ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१४४ भजन-संग्रह भाग ४ 


निज़ामुद्दीन ओलिया 
(१) 
परबत-बाँस मँगाव मेरे बाबुल ! 
नोके मड़वा छाव रे! 
सोना दौन्हा, रूपा दीन्हा, 
बाबुल दिल-दरयाब रे ! 
हाथी दीन्हा, घोड़ा दीन्हा, 
बहुत-बहुत मन चाव रे ! 
डोलिया फँदाय पिया ले चल्है, 
अब सँग नहिं कोई आवरे ! 
गुड़िया खेलन माँके घर रह गई, 
नहिं. खेलनकों दाव रे! 
“निज़ामुद्दीन ओलिया' बहियाँ पकरि चले, 
भरिह्ों वाके पाँव रे ! 


+-+०्ग्नभधभभ कि  शक_---- 


9 50099 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥2॥॥60॥ 2900 ५९॥९॥।॥8०॥॥ 


(१) 
बवृषभानु-नंदिनी झूलें अली, 
आनंद-कंद ब्रजचंद साथ । 
सारद, गनेस, नारद, दिनेस, 
सनकादिक ब्रह्मादिक सुरेस, 
हुल्सत महेस बमभोलानाथ । 
कोयल-समान सखियनकी कूक, 
'फ्रहत! चंद्रावलि देत झूँक, 
श्रीनंदनंद गले डाल हाथ ॥ 
(२) 
बंसी मुखर्सों लगाय ठाढ़े श्रीराघावर , 
मधुर-मधुर बजत धुन सुन सब गोपी बेहाल । 
थिरक-थिरक नाचे,मानों घन बिच दामिनि चमकै, 
कारे मतवारे रतनारे ढृग लटक चालर। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१४६ भमजन-समप्रह भाग ४ 


सीस मुकुट चमके, मकराकृत कुंडल दमके, 
फ़रहत' अति प्यारी घुँघरारी अछक, तिलक भाल॥ 


(३) 
मारो मारो हो स्थाम पिचकारी हो | 

ताक लगाये खड़ी सखियन संग, 

ओट लिये राधा प्यारी हो । 
देखो देखो स्याम वहै कोठ आबति, 

अबीर लिये भरि थारी हो ॥ 
इक पिचकारी और प्रभु मारो, 

भींज जाय तनन्सारी द्वो ! 
फ़रहत” निरखि-निरखि यह लीला, 

हरि-चरनन बलिहारी हो ॥ 


...क....0ह.. बआ८ पा 72>> 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


काजी अश्वरफ महमूद १४७ 


काज़ी अशरफ महमूद 
($) 
ठुमुक-ठुमुक पग, कुमुक-कुंज-मग 
चपल चरण हरि आये , 
हो हो चपल चरण हरि आये । 
मेरे प्राण-भुठावन आये , 
मेरे नयन-लछुभावन आये। 
निमिक-झिमिक-झिम, 
निमिक-झिमिक-पश्षिम, 
नर्तन पद-ब्रज आये, 
हो हो नर्तन पद-त्रज आये । 
मेरे पग्राण-भुठावन आये , 
मेरे नयन-लुभावन आये। 
अरुण करुण-सम 
छिन्न-भिन्न तम 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१४७८ भ्जन-संग्रह भाग ४ 


करन बाल-रवि आये, 


है। हो करन बाल-रवि आये । 
मेरे प्राण-भुठावन आये , 
मेरे नयन-छुभावन आये। 

अमल कमल कर 

मुरलि मधुर घर 

वंशी बजावन आये, 

हो हो वंशी बजावन आये | 
मेरे प्राण-भुठावन आये, 
मेरे नयन-लुभावन आये। 

पुंज पुंज हर, 

कुंज॒ गुंजभर, 

अऋंग-रंग हरि आये, 

हो हं। मंग-रंग हरि आये। 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


काजी अशरफ महमूद १४५९ 


मेरे प्राण-भुलावन आये , 

मेरे नयन-लुभावन आये। 
झुन झुन दुल-दूल, 
मंजुल बुल-बुल 
फुछ मुकुल हरि आये, 


हो हो फुछ मसुकुल हरि आये । 
मेरे प्राण-भुछठावन आये , 


मेरे नयन-लुभावन आये ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०० भजन-संग्रह भाग ४ 


आलम 
(१) 
जसुदाके अजिर बिराजैं मनमोहनजू, 
अंग रज छागे छबि छाजें सुरपालकी । 
छोटे-छोटे आछे पग घुँघुरू घूमत धने, 
जात॑ चित हित छागे शोभा बाल जालकी | 
आछी बतियाँ छुनावें छिन छाँड़िब्रो न भावै, 
छातीसों छपावे लागे छोह वा दयालकी । 
हेरि ब्रज-नारी हारी वारि फेरि डारी सब, 
आलम! बलेया लीजे ऐसे नंदलालकी || 
(२) 
मुकता मनि पीत हरी बनमाल सु 
तो सुर चापु प्रकास किये जनु | 


भूषण दामिनि दीपति है 
घुरवा सित चन्दन खोर किये तनु | 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


आलम १७५१ 


आला घार सुधा मुरली 

बरसा पपिहा ब्रजनारिनकों पनु। 
आवत हैं बनते घनसे लखि 

री सजनी घनस्याम सदा-पधनु ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१०२ भजन-संग्रह भाग ४ 


जज व वटट चज पट च्ट िट चट ५ 


तालिब शाह 
(१) 
महबूब ब्ागे सुहागे बने हैं, 
सुमोहन गरें मार फ़लों हिये हैं। 
महारंग माते अमाते मदनके, 
विलोकत बदन खोरि चन्दन दिये हैं ॥ 
यही वेश हरिदेव भ्रकुटी तुम्हारे, 
सुलकुटी मँबर लेख या लस् लिये हैं । 
दिवाना हुआ है निमाना दरशका, 
सुतालित्र वहां श्याम गिरवर लिये हैं ॥ 


तक 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


सहयूत ६ 46 ३-॥ 


महबूब 
(१) 
आगे घेनु धारि गेरि खाल्म कतार तामें, 
पेरि-फरि टेरि धोरी घूमरीन गनते। 
पोंछि पचकारन अँगॉछनसों पोंछि पोंछि, 
चूमि चारु चरण चलाबै सु-बचनते ॥ 
कहे महबूव जरा मुरली अधर बर, 
फूकि दई खरज निखादके सुरनते । 
अमित अनंद भरे, कन्द छबि बृन्दवत, 
मंदगति आवत सुकुंद मधुबनते || 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


१७७ भजन-संग्रह भाग ७ 


- नफ्ीस खलीली 
(१) 

कन्हैयाकी आँखें हिरन-सी नशीली । 

कन्हैयाकी शोखी कली-सी रसीली ॥ 
कन्हैयाकी छब्रि दिल उड़ा लेनेबाली । 

कन्हैयाकी सूरत लुमा लेनेवार्ली ॥ 
कन्हैयाक्री हर बातमें एक रस है। 

कन्हैयाका दीदार सीमी क़फूस है ॥ 
कभी गोपियोंमें जो पनघटपे आये। 

वह नखरेमें आई तो ये हठपै आये ॥ 
किसीका सलामत डुपट्टा न छोड़ा | 

जो भागी तो कंकड़से मटकोंको फोड़ा ॥ 
जो हाथ आई उसकी मरोड़ी कलाई | 

बहुत कसमसाई न छोडी कलाई ॥ 
बिठाया जर्मीपर पकड़कर किसीको | 

रखा बाँसुरॉसे जकड़कर किसीकों ॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


नफोस खुछीली बज 


््ज्ल्क्ल्व्िल््व््ल्् कक न लल्लत्ट चल ट्विट चल चजिचिलखध्ल्‍तडक्‍ल कल स्लक्‍ल तल पी >क्‍न्‍ लव बल बल लव लत 


वह कहती हैं---'अब शाम होती है प्यारे !' 

यह कहते हैं---'क्यों आई जमना किनारे ? 
ग्वालिनका मक्खन चुराकर जो भागे। 

वह लाई शिकायत जशोदाके आगे ॥ 
कहा-'तिरा मोहन सताता बहुत है। 

चुराता तो है, पर गिराता बहुत है ॥!' 
कहें एक पहलेसे घरमें खड़ी हैं । 

जसोदासे सब बारी-बारी छड़ी हैं॥ 
वहीं नागहाँ नंदका लाल आया। 

कुयामतकी चलता हुआ चाल आया ॥ 
कहा दूरसे-'झूठ कहती हैं. माता | 

इसी ताकमें यह तो रहती हैं माता ॥ 
शिकायात अरजा, मजाक, इनके सस्ते । 

कहीं जाऊँ तो रोक लेती हैं रस्ते ॥ 
ये छेड़े मुझे ओर दुहाई नदोँ मैं। 

जो ठोकर, झटककर कलाई न दूँ मैं॥ 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


पृष्द सजन-संग्रह भार ४ 


जो पनघटपे इनको दिखाई न देँ मैं। 

जो मुर्ली बजाता सुनाई न दूँ मैं॥ 
तड़पती हैं बेचैन होती हैं क्या-क्या । 

मेरे गममें आँसू पिरोती हैं क्या-क्या ॥ 
न शबत्रको मिला हूँ, न दिनकी मिला हूँ। 

महीनोंके बाद आज इनको मिला हूँ॥ 
ये झूठी हैं गर शिकवा-बर्‌-लब हैं आई । 

मुझे देखनेके लिये सत्र हैं आईं ॥!' 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


सैय्यद कामिस झली ३५८७ 


सैय्यद कासिम अली 
(१92 
मोहन प्यारे जरा गलियोंमें हमारी आजा ! 
आजा, आजा, इधर ऐ कृष्ण कन्हैया | आजा ! 
दुःख हरनेके लिये ठने न किया है क्या-क्या * 
फिर वह बंसी लिये जमुनाके किनारे आजा ! 
लाखों गोएँ तेरी अब फिरती हैं मारी-मारी , 
लगन तुझसे ही लगी नंद-दुलर आजा ! 
तेरी इस भूमिमें छाई है घटा जुल्मोंकी , 
तिलमिलाते हुए भारतकों बचा जा, आजा ! 
परदये गेबसे हो जाये इशारे, तेरे , 
अब नहीं ताब गुम हछिज्की प्यारे आजा ! 
जल्द आ कि तेरे वास्ते “अली व्याकुछ है , 
कर्मभूमिमें वही कर्म सिखाने आजा ! 


ह् 3 गा पे, 
जज रामात्त* 
_> 
रे 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


श्रीजयद्यालजी गोयन्दकाकी 
कुछ आध्यात्मिक पुस्तक 


लि 5 आल 
तत्त्न-चिन्तामणि भाग १ सचित्र मू० ॥>) स० ॥|-) 
१$। 99 र्‌ 99 ॥#) स० १८) 
अं ल्‍् * 
परमाथ-पत्रावलछी सचित्र मू० की), 
गीता-निबन्धावली मू० *** #)॥ 


सच्चा सुख और उसकी प्राप्तिकं उपाय मू०._-)॥ 
यीतोक्त सांख्ययोग और निष्काम कर्मयोंग मू० -)॥ 
गीताके कुछ जानने योग्य विषय मू०._ ** -)॥ 


गीताका सूक्ष्म विषय मू ० ४ >)|। 
श्रीप्रेमभक्तिप्रकाशु सचित्र मू ० *** +-) 
त्यागसे भगवत्‌-प्राप्ति सचित्र मु ० | 
भगवान्‌ क्‍या है ! मू ० ४8». . 7) 
धरम क्‍या है १ मू ० ""'. )। 
गजल गीता मू० आधा पैसा 

पता--गीताप्रेस, गोरखपुर 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।8०॥॥ 


श्रीहतुमानप्रसादजी पोद्ारकी 
कुछ श्रेष्ठ पुस्तक 
"कल 


बिनय-पत्रिका-( गो० तुलसीदासजीकृत ) सटीक, 


सचित्र मू० १) सजिल्द ६४% . |) 
नेवेय-सचित्र मू० ॥) सजिल्द *' ॥॥-) 
तुल्सीदल-सचित्र मूल्य ॥) सजिद **' ॥%) 
भक्त बालक-सचित्र मू० *** |») 
भक्त नारी-सचित्र मू० *** |“) 
भक्त-पञ्चरत्ष-सचित्र मू० ** >) 
भजन-संग्रह पॉचयो भाग (पत्र-पुष्प)-सचिद्र सू ० >) 
मानव-घर्म-मू ० &>) 
साधन-पथ-सचित्र मू ० *** #)॥ 
सत्री-घमंप्रश्नोत्तरी-सचित्र मू० मा] 
आनन्दकी लहरें-सचित्र मू० “* >)॥ 
मनको वश करनेके उपाय-मू० *' >)। 
ब्रह्मचय-मू ० ४०९ ४) 
समाज-सुघार-मु ० डक लो 
दिव्य सन्देश-मू ० 55% , ५ .)] 


पता-मगीताप्रेस, गोरखपुर 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥9॥00५९॥९॥।॥8०॥॥ 


सटीक एवं मूल संस्कृत-शाख्र-ग्रन्थ 


श्रीविष्णुपुरण-सटीक, | विवेक-चुडामणि- 
८ चित्र, पृष्ठ ५४८, सचित्र, सटीक, पृष्ठ 
मू० २॥), कपड़ेकी २२४, मू ० ।%) स०॥>) 
जिल्‍्द “' २॥) , प्रबोधसुधाकर-सचित्र, 
अध्यात्मरामायण- । सटीक, मू० ** &)॥ 
( सातों काण्ड ) पृष्ठ. अपरोक्षानुभूति-सचित्र, 
४०२, ८ रंगीन | सटीक, मू० “* »)॥ 
चित्र, मू० १॥), ' मनुस्मृति-दूसरा 
कपड़ेकी जिल्‍द २) | अध्याय साथ, मू० -)॥ 
श्रीमक्भागवत एकादश | विष्णुसहस्लनाम-मूल, 


स्कन्ध-सचित्र, सटीक, | मू० )॥ स०« -)॥ 
मू० ॥।) स० ** १) । रामगीता-सटीक,मू ० )॥॥ 


विष्णुसहल्लननाम-शांकर- ' बलिबेश्वदेवविधि-मू ० )॥ 
भाष्य, सचित्र, सटीक, | पातझ्ञलयोगदर्शन- 
पृष्ठ ३६०१ मू ० ॥#) 


| मूल, मू० '” ) 
श्रुतिरलावली-मू ० ॥) ' सन्ध्या-विधिसहित )॥ 
पता--गीताप्रेस, गोरखपुर 


9 5000५0५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥90८0५९॥९॥।८॥8०॥॥॥ 


वोर सेवा भन्दिर 
पुस्तकालेय 


9 500५५ 396॥ 9॥0॥ | (00५ ॥॥॥60॥2॥॥9॥00५९॥९॥।॥8०॥॥॥